बांसुरीवाला चैप्टर – 1
जन्माष्टमी के दिन मोहित सुबह जल्दी उठ गया था। इसकी वजह थी चिनार अपार्टमेंट में हर साल की तरह होने वाला कन्हैया बनो कम्पटीशन। इस कम्पटीशन में मोहित को भी भाग लेना था। उसे सिर पर मोर मुकुट लगाकर और धोती पहनकर इसी तरह से सज—धजकर आए अपने हम उम्र अन्य बच्चों से कम्पटीशन करना था।
इस अपार्टमेंट में हर साल हर प्रतियोगिता होती थी। सबसे अच्छे कन्हैया बनने वाले बच्चे को बतौर इनाम पांच हजार रुपये और एक सर्टिफिकेट मिलता था। इस कम्पटीशन की तैयारियां करीब एक महीने पहले से ही शुरू हो जाती थीं।
मोहित केवल छह साल का था। जन्माष्टमी आने से काफी पहले ही उसकी मां शालिनी ने उसे हर रात सोने से पहले भगवान कृष्ण की कहानियां सुनाना शुरू कर दिया था। साथ ही वे सुबह और शाम श्रीकृष्ण के भजन अपने साउंड सिस्टम पर लगा देती थीं ताकि बच्चे को इस कम्पटीशन के पहले श्रीकृष्ण के बारे में अच्छे से जानकारी हो जाए।
जब कम्पटीशन में केवल छह दिन बाकी रह गए तो शालिनी ने सोचा कि क्यों न मोहित को श्रीकृष्ण की ड्रेस दिलाकर फुल ड्रेस रिहर्सल कराया जाए और इसे वीडियो आदि दिखाकर बेहतरीन कन्हैया बनने की और अच्छी प्रैक्टिस करा दी जाए।
यही सब सोचकर शालिनी मोहित को उसके पापा शिवेंद्र के साथ बाजार ले गई। जब वे लोग शॉपिंग के लिए कार से बाजार में उतरे तो मोहित को एक बांसुरीवाला दिखा। वह एक पुराने गाने – यशोमति मैया से बोले नंदलाला, राधा क्यों गोरी मैं क्यों काला? की धुन बेहद मीठे अंदाज में बजा रहा था। उसकी बांसुरी के स्वर सुनकर मोहित स्वयं मोहित हो गया। वह अपने मम्मी—पापा से बांसुरी खरीदने की जिद करने लगा।
मोहित— मम्मी! देखो न वो कितनी अच्छे तरीके से बांसुरी बजा रहे हैं। मै जब कन्हैया बनूंगा तो ऐसी ही बांसुरी बजाउंगा। मुझे भी एक बांसुरी ले दो न।
मोहित के पापा ने पहले तो ना—नुकुर की। उन्होंने कहा — मोहित बांसुरी तो मैं दिला दूंगा पर मुझे संदेह है कि तुम उतनी बढ़िया बजा पाओगे। बेटा! यह ठीक है श्रीकृष्ण के पास भी बांसुरी थी और बिना बांसुरी के कन्हैया बनो प्रतियोगिता में कन्हैया बनकर जाना अच्छा नहीं लगेगा पर बेटा अभी तुम बहुत छोटे हो। केवल छह साल के हो। तुम्हें अभी बांसुरी पर सुर साधना नहीं आएगा। इसलिए बांसुरी लेने से कोई फायदा नहीं होगा।
यह सुनकर शालिनी बोली — डियर! बिना बांसुरी के मोहित का कन्हैया बनेगा जंचेगा नहीं। अत: बांसुरी तो तुम खरीद ही दो। बाकी सब मुझपर छोड़ दो। मैं देख लूंगी कि मोहित को कैसे बांसुरी बजाने में ट्रेंड करना है।
आखिरकार शिवेंद्र ने मां—बेटे की जिद के आगे हथियार डाल दिए और मोहित को एक बढ़िया सुंदर सी बांसुरी खरीद दी।
मोहित के हाथ में जैसे ही बांसुरी आई उसका चेहरा खिल उठा। उसने बांसुरी वाले के सामने ही बांसुरी होंठों से लगाई और उसमें जोर से फूंक मारी।
फूउउउउउउउउउउउउउउउउ फूउउउउउउउउउउउउउ!!
मोहित ने कई बार ट्राई किया पर वह फूउउउउ, फूउउउउउ के सिवा बांसुरी से कोई स्वर नहीं निकाल सका।
उसकी ये हरकतें देखकर बांसुरी वाला भी मुस्करा दिया। पापा बोले — मैं तो पहले ही कह रहा था कि बांसुरी कितनी भी अच्छी हो अगर बजाना नहीं आता तो खरीदना व्यर्थ है।
शालिनी— बस करो! मोहित अभी छोटा है। उसने पहली बार तो बांसुरी हाथ में पकड़ी है। उसे एकदम से कैसे बजाना आ जाएगा?
मोहित ने सात—आठ बार कोशिश की पर बांसुरी ने फूं—फां आदि के अलावा वह कोई सुर नहीं निकाल सका।
यह सब देखकर बांसुरी वाला बोला— बेटा! तुम्हे प्रैक्टिस करने की बहुत जरूरत है।
मोहित — पर अंकल आप तो एकदम आसानी से गाना बजा लेते हो। यह कैसे होता है?
बांसुरी वाला — बस, सीधा सा तरीका है। मैं रोज दो घंटे बांसुरी बजाने की प्रैक्टिस करता हूं। मैं यह काम पिछले चार साल से कर रहा हूं। तब कहीं जाकर ऐसे सुर निकालना सीख पाया हूं।
शालिनी — तुम्हारे बजाने में जादू है, भैया! क्या तुम मेरे मोहित को बांसुरी बजाना सिखा दोगे? मैं चाहती हूं कि मेरा बेटा भी अच्छे से बांसुरी बजाना सीख जाए!
बांसुरी वाला — हां, हां क्यों नहीं? मुझै बेहद खुशी होगी अपना यह हुनर इसे सिखाकर!
शिवेंद्र — अच्छा है। मैं भी चाह रहा था कि मोहित पहले बांसुरी बजाना सीखे और फिर बांसुरी खरीदे। तुम इसे सिखा दोगे तो अच्छा ही रहेगा। अच्छा तुम्हारा नाम क्या है? कहां रहते हो? मोहित को पांच दिन बाद कन्हैया बनो प्रतियोगिता में भाग लेना है। क्या तुम इसे इतने कम समय में कुछ बजाना सिखा दोगे? सिखाने के कितने पैसे लोगे?
बांसुरी वाला — मेरा नाम कन्हाई है। मैं गोकुलधाम झोंपड़—पट्टी में रहता हूं। मोहित अभी कम उम्र का है और इसके भीतर लगन है। अत: यह कम समय में ही सीख लेगा। बस,प्रैक्टिस के लिए थोड़ा ज्यादा समय देना होगा।
क्रमशः (काल्पनिक कहानी )