आखिरी चैप्टर
बांसुरी वाला — मेरा नाम कन्हाई है। मैं गोकुलधाम झोंपड़—पट्टी में रहता हूं। मोहित अभी कम उम्र का है और इसके भीतर लगन है। अत: यह कम समय में ही सीख लेगा। बस,प्रैक्टिस के लिए थोड़ा ज्यादा समय देना होगा।
शिवेंद्र — कितना समय?
कन्हाई — बस, यही कोई सात—आठ घंटे रोज!
शालिनी — बेटा मोहित! तुम क्या सात—आठ घंटे रोज अंकल के साथ बैठकर बांसुरी बजाना सीख लोगे?
मोहित — ये अंकल मुझे बांसुरी बजाना सिखाएंगे तो मैं इतने समय प्रैक्टिस कर लूंगा। बस मम्मी—पापा आप मेरा हौसला बढ़ाते रहना।
शिवेंद्र — ठीक है, बेटा। तुम अंकल से बांसुरी बजाना सीख लेना। कन्हाई इस काम के लिए फीस क्या लोगे?
कन्हाई — बाबूजी, जो आपकी मर्जी हो दे देना! मैं आज शाम से ही आपके घर आ जाऊंगा ।
शिवेंद्र और शालिनी की हामी भरने के बाद कन्हाई रोज उनके घर पर सुबह से आकर शाम तक मोहित को बांसुरी बजाने की प्रैक्टिस कराने लग गया। कभी कभी मोहित की मम्मी भी उनके साथ बैठकर उनकी प्रैक्टिस देखने लगती।
कन्हाई का सिखाने का तरीका अच्छा था और वह मोहित को बड़े प्यार से सब बारीकियां बताता गया। मोहित का भी कन्हाई के मीठे व्यवहार के कारण बांसुरी सीखने में मन लगने लग गया। बांसुरी सीखने की प्रैक्टिस करते—करते पांच दिन कबके बीत गए कुछ पता ही नहीं चला।
आखिरकार जन्माष्टमी का दिन आया। अन्य बच्चों के साथ मोहित भी कन्हैया की ड्रेस पहनकर हाथों में बांसुरी थामे हुए अपार्टमेंट के ग्राउंड में पहुंचा। रात को आठ बजे से कन्हैया बनो प्रतियोगिता शुरू हुई। मोहित को छह बच्चों के बाद केवल दो मिनट का परफार्मेंस करना था। अपार्टमेंट के करीब तीन सौ रहवासी बतौर दर्शक ग्राउंड में बैठे हुए थे। इन दर्शकों की भीड़ में शालिनी और शिवेंद्र भी धड़कते दिल के साथ शरीक थे। शालिनी मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर रही थी कि मोहित ही इस कम्पटीशन में अव्वल आए। शिवेंद्र के चेहरे पर चिंता की लकीरें थीं। कन्हाई भी इन लोगों के साथ बैठा हुआ था।
मोहित से पहले छह बच्चों ने कन्हैया की तरह परफार्म करने की कोशिश की। कन्हैया बना कोई बच्चा भीड़ को देखकर रो दिया, तो किसी ने तोतली आवाज में यदा—यदा हि धर्मस्य जैसा संस्कृत का श्लोक बोलने की हिम्मत जुटाई। पर सही उच्चारण नहीं करने के कारण दर्शक हंस पड़े। एक बच्चे से तो स्टेज पर मुकुट ही नहीं संभला और वह शरमा कर भाग गया। चौथे बच्चा दो मिनट तक बोले जाने वाले डायलॉग भूल गया और दर्शकों के सामने कोई नया फिल्मी गाना गाने लगा। पांचवें बच्चा कन्हैया बनो की कई दिनों से प्रैक्टिस करते—करते इतना थका—मांदा दिख रहा था कि स्टेज पर बड़ी मुश्किल से चढ़ा और जब उसके परफार्म करने की बारी आई तो उसे स्टेज पर ही झपकी आ गई। वह नींद के मारे गिरने—गिरने को हो रहा था कि उसके मम्मी—पापा ने बड़ी मुश्किल से स्टेज पर पहुंच कर उसे संभाला और डांटते हुए घर ले गए। छठा बच्चा स्टेज पर गुमसुम ही काफी देर तक खड़ा रहा उसे दर्शकों ने हूट करके भगा दिया।
अब बारी आई मोहित की। उसने हर हाव—भाव की अच्छे से प्रैक्टिस कर रखी थी अत: वह पूरे आत्मविश्वास के साथ स्टेज पर चढ़ा। अपने माता—पिता और कन्हाई को प्रणाम किया। फिर अपने हाथों में थामी बांसुरी को होंठों से लगा कर ऐसी सुर लहरियां बिखेरीं कि सब लोग वाह—वाह कर उठे। लोग उसे बांसुरी बजाते देखकर दंग थे। इतनी कम उम्र! इतना अच्छा परफार्मेंस! उसका दो मिनट का परफार्मेंस पूरा हुआ नहीं कि लोग एक बार और, एक बार और का शोर करने लगे। मोहित ने कम से कम चार बार वैसी ही मधुर स्वर में बांसुरी बजाकर दर्शकों को खुश कर दिया। मोहित का परफार्मेंस पूरा होते ही पूरा ग्राउंड तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। यह देखकर शालिनी और शिवेद्र का सीना गर्व से चौड़ा हो गया और कन्हाई भी अपनी मेहनत को सफल देखकर बेहद खुश था।
मोहित के बाद तीन और बच्चों ने परफार्म किया पर वे मोहित की टक्कर का परफार्मेंस नहीं दे सके। जाहिर है, इस प्रतियोगिता में अव्वल मोहित ही आया। उसे पांच हजार रुपये का इनाम और सर्टिफिकेट देते हुए चिनार अपार्टमेंट सोसाइटी के अध्यक्ष पी षण्मुगम ने मोहित की जमकर तारीफ की। उन्होंने कहा — मोहित ने अपने फ्लुट से हम सबका दिल लूट लिया जी!
इनाम लेने के बाद मोहित ने स्टेज से उतरकर कन्हाई के पैर छुए। अपने प्रति मोहित का सदव्यवहार देखकर कन्हाई की आंखें छलछला आईं और उसने उसे भावविभोर होकर गले लगा लिया। इस समय ऐसा लग रहा था मानो स्वयं छोटे से श्रीकृष्ण सुदामा के गले मिल रहे हों। मोहित ने उसे इनाम की रकम देनी चाही पर कन्हाई ने यह कहकर उसे लेने से इनकार कर दिया — बेटा! तुमने मुझे जो खुशी दी और मेरी मेहनत को सफल बनाया यही मेरा सबसे बड़ा इनाम है। तुम तो बस एंजॉय करो और अच्छी प्रैक्टिस करके और नाम कमाओ। यही मेरी सबसे बड़ी चाहत है।
(काल्पनिक कहानी )