हेमन्त पटेल, भोपाल
सुबह के 8 बजे हैं। दिव्या किचन में खाना बनाने में मशगूल है। पति मुकेश नहा करके आया है। घर के पूजा मंदिर में दीया, अगरबत्ती लगाई। हाथ जोडे़ और अगले कमरे में रखे कपड़े पहनना शुरू कर किए।
दिव्या टिफिन लाकर देती है, लो…, आज तीन ही रोटी रखी हैं। रोज एक बचाकर लाते हो और सलाद में प्याज नहीं है और खाना भी मत।
क्यों? मुकेश बोला।
आज से पवित्र मास शुरू हो गया है।
ठीक है।
मुकेश दिव्या के आटे से सने सूट को देखता है। मुकेश कुछ कहता, उससे पहले दिव्या बोली तुम ऐसे न देखो…, कल रात की बात से नाराज़ हो। दोनों पहले कमरे में आते हैं।
तुम ये बद-रंगे सूट न पहना करो। कुछ मॉर्डन पहनो, कुछ वेस्टर्न। ऐसे कोई देख के क्या कहेगा कि ये दिल्ली के मिरांडा हाउस कालेज की लड़की है, जो सब भूल गई।
मुकेश जूते पहनता है। पत्नी कहती है, बस दो सूट रख कर सब फेंक रही हूं। और बस पांच दिन की तो बात है। अगली सेलरी में, मैं वेस्टर्न लुक कुर्ते ही लूंगी।
ठीक है…, मूड ठीक करके जाओ। मुह…आ…
………………..
ऑफिस- गुड मॉर्निंग… गुड मॉर्निंग
सुगंधा – मुकेश की चेयर के पास आते हुए। सर, ऑटोमिक हेबिट बुक हो गई क्या?
मार्केट में क्लॉइंट पूछ रहे हैं, कब आ रही है। हिन्दी वाली बुक।
मैं प्रिटिंग पर भेज दूं, तो नेक्ट वीक से डिस्ट्रीब्यूट हो जाएगी।
मुकेश- सुगंधा मैं, हॉफ एन ऑवर तक एडिटर को भेज दूंगा।
सुगंधा – सर, आप पूरी कर दो। एडिटर सर को तो आप पर भरोसा करते हैं। कोई ग़लती थोड़े होगी।
मुकेश- मुस्कुराते हुए… बट लास्ट डिसीजन इस एडिटर।
सुगंधा – ओके, वैसे सर बुक कैसी है। आपने तो पढ़ी है। हाँ! अच्छी है। सीधे तौर पर लेखक ‘आदतों का आवरण बनाने को कहते हैं।’ मुकेश बोला।
(मुकेश सुगंधा के वेस्टर्न लुक कुर्ते को देखता है।)
सुगंधा – मतलब…
मतलब! आपको किसी भी फील्ड में सफल होना है, तो आदतों को बदलो। आपके हिस्से जो कुछ भी आता है, वह सिर्फ और सिर्फ आपकी आदतों के परिणाम होते हैं। आपको परिणाम बदलना है तो आदतों को बदलना होगा। वर्ना आदतें आपको बदल देंगी।
ओह…
सर, काफी लेंगे। नहीं, आप लो।
चलो सर, कभी हमारे साथ भी चाय-काफी पी-लिया करो। माना की हम एडिटोरियल के नहीं हैं, पर हैं तो एक ही कंपनी के।
मुकेश-चलो भाई, षर्मिदा ना करो। दोनों कैफे-टेरिया की तरफ बढ़ते हैं। टेबल पर, काफी लेते हैं।
मुकेश- सुगंधा तुम ये वेस्टर्न लुक कपड़े सिर्फ ऑफिस में पहनती हो या घर में भी।
सुगंधा – सर, ऐसे ही पहनती हूँ। घर में ये कपड़े थोड़े लूज होते हैं। पर डिजाइन और कलर में कोई कंप्रोमाइज नहीं करती।
एंड, सर क्लोथ ग्रूमिंग यूआर पर्सनेल्टी…
हाँ… हाँ… (दोनों हंसते हैं।)
और सर, आपने तो कहा था- आदतों को बदलो, नहीं तो (दोनों एक साथ बोलते हैं।) आदतें आपको बदल देंगी…
और दोनों हस देते हैं।
वैसे सुगंधा ये खरीदती कहाँ से हो।
सर, इंदौर को मिनी मुम्बई कहते हैं। राजवाड़ा, विजय नगर, अहिल्या मार्केट स्पेषली वूमन्स के लिए डेडिकेटेड षॉपस हैं।
आपको मैडम के लिए खरीदना है।
हाँ! उनको लेकर जाना है। वो दिल्ली से हैं, उन्हें यहां का आइडिया नहीं है। और मुझे वूमन्स डेडिकेटेड षॉपस का।
दोनों अपनी-अपनी चेयर पर पहंुचते हैं।
टेलीफोन बजता है। ट्रिन-ट्रिन।
हेलो! मुकेशजी
जी सर, एटोमिक हेबिट्स हो गई। हाँ सर, बस आपको फ़ाइल भेज रहा था।
ओके-ओके। (मुकेश फोन रखता है।)
कुछ सेकंड बाद। फिर टेलीफोन की आवाज़ ट्रिन-ट्रिन।
हेलो! मुकेश जी
हाँ सर, भेज दी फाइल।
ठीक है। आप ये बताइए आपके पास सिस्टम या लेप-टॉप है। क्यों सर!
दरअसल, कोरोना के बढ़ते केस के चलते हमारे पुणे ऑफिस को आज प्रषासन ने कल से अगले आदेष तक बंद करने को कह दिया है।
ऐसी संभावना है, आने वाले दिनों में यहां भी कुछ ऐसा ही हो। हमें तैयार रहना चाहिए।
हाँ, सर मेरे पास सिस्टम है।
उसमें आपके उपयोग के सॉफटवेयर जैसे- इनडिजाइन वगेरा है?
काल्पनिक रचना
(क्रमश:)
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