हेमन्त पटेल, भोपाल
उसमें आपके उपयोग के सॉफटवेयर जैसे- इनडिजाइन वगेरा है?
नहीं सर। कोशिश करता हूं। वैसे सिस्टम पुराना है। तो बस काम चल सकता है।
ठीक है। मैं आईटी वालों से बोलकर आपको सॉफटवेयर की सीडी दिलवा देता हूं। जी सर।
छह बजने को हैं। प्यून सीडी लाकर मुकेश को देता है। थैंक यू।
मुकेश चेयर से उठता है। तभी टेलीफोन की घंटी बजती है। ट्रिन-ट्रिन।
हेला! मुकेशजी, अभी सभी लोग हैं।
हां सर, सभी हैं। उन्हें रुकने को कहिए। मैं आता हूं।
सभी आपसे में खुसुर-फुसुर करते हैं।
एडिटर आते हैं। गुड ईवनिंग एवरी वन।
कल संडे है। इसे इनजॉय करिए। लेकिन हम मन्डे को कंटिन्यू मिल पाएंगे या नहीं कुछ नहीं कह सकते। सभी को इस बारे में वॉट्स एप्प ग्रुप में सूचित कर दिया जाएगा।
सरकार या जिला प्रशासन कोरोना केस को लेकर कोई निर्णय जल्द ले सकती है। तो हम घर से काम करने की तैयारी रखें।
गुड डे… ऑल ऑफ यू।
……………..
मुकेश खाने की टेबल पर है। सब साथ में हैं। एक बच्ची, मां-पापा और एक देवर।
मुकेश थोड़ा सोच में है। खाना खत्म होता है।
मुकेश और दिव्या, दोनों अपने कमरे में हैं। दिव्या बिस्तर पर रखे कपड़े अलमारी में रखने को अलग करती है। तभी मुकेश कहता है, यार ये तो वही टॉप है, जिसमें तुम मुझे मिलने राजीव चौक आई थीं। फिर हम अक्षरधाम गए थे।
ओर ये वाला पैंट और टॉप वो है, जिसमें हम वर्ल्ड बुक फेयर में गए थे।
हाँ! ये वही कपड़े हैं, पर मैं इन्हें अब नहीं पहन सकती। इसलिए अलग कर रही हूँ।
क्यों, क्यों?
यहाँ सास, ससुर हैं और बाकी लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे? बहु के पास संस्कार नहीं हैं। घर वाले कुछ कहते नहीं।
मुकेश- पता है तुम्हारी परेषानी क्या है?
क्या है? सबसे बड़ा रोग, क्या कहेंगे लोग…
मोहल्ले की दूसरी बहुएं भी वेस्टर्न पहनती हैं। उन्हें कोई कुछ नहीं कहता। और यह इंदौर की अच्छी कॉलोनियों में से एक है। कोई स्मॉल टॉउनशिप या संकुचित मानसिकता वाले लोगों की कॉलोनी होती तो एक बार सोचता।
मुकेश तुम-तो हमेशा लड़ने के मूड में रहते हो। बस तुम्हें तो मेरे पहनावे को लेकर बोलने का मौका चाहिए।
मुकेश- तो तुम बोलने का मौका ही क्यों देती हो…, तुम्हें पता है। आपकी छोटी-छोटी चीजें आपका पहनावा, आपका रहन-सहन, यही आपके व्यक्तित्व का निर्माण करती हैं। और तुम हो कि इसे हलके में ले लेती हो।
हाँ! बाबा मैं इसे कहाँ नकार रही हूँ।
कहाना… नेक्स्ट सैलरी में तुम्हारी पसंद का पूरा ख़्याल रखूंगी।
पत्नी मुकेश से कहती है, जाओ यशू को ले आओ। रात ज्यादा हो रही है। कल रविवार है, और मुझे काम ज्यादा रहता है।
……………….
दरवाजे पर घंटी बजती है। टिंग-टॉंग…
दिव्या, पति द्वारा लिखी इस कहानी की डायरी को बिस्तर पर किनारे रखती है। और दरवाजे पर पहुंचती है।
मुकेश घर में कदम रखता है। दिव्या बदरंगे सूट में है, मुकेश उसे देखता है। दिव्या, मुकेश से कंधे वाला बैग लेते हुए कहती है। कहानी बहुत अच्छी है।
तो क्या वो नेक्स्ट सैलरी में वेस्टर्न कपड़े लेने जाएंगे।
मुकेश- पता नहीं, ये तो लड़की पर निर्भर है।
मैं तुम्हारी साहित्यिक बातों को समझ नहीं पाती।
(काल्पनिक रचना)
No Comment! Be the first one.