रचनाकार : उत्तम कुमार तिवारी ‘उत्तम’ , लखनऊ
आखिरी चैप्टर
क्या उनका जीवन रहा। माँ अस्पताल में भरती थी। अस्पताल घर से कम से कम 7-.8 किलोमीटर दूर था।
अम्मा का नाश्ता और खाना लेकर पैदल जाना पड़ता था और फिर वापस आना पड़ता था – अपने स्कूल। फिर 5 बजे छूट्टी होती थी। घर आना फिर उसी काम में लग जाना फिर रात में बैठ कर पढ़ना फिर सुबह वही सब काम।
हम हमेशा अपनी दीदी के पास ही सोते थे। उनके पैर बहुत दर्द करते थे तो उनके पैर दबाते थे, तब वो सो जाती थीं।
इतने संघर्षें के बावजूद वो प़ढने में बहुत तेज थीं। नृत्य कला और गायन कला में भी पारंगत थी। उनका प्रोग्राम लखनऊ स्टेडियम में हुआ था तो पूरा स्टेडियम फुल हो गया था।
हम सभी भाई बहन को ज़ितना प्यार दीदी का मिला उतना माँ का नहीं।
उन दिनों बिजली की भी बहुत समस्या थी। कभी-कभी अम्मा-बाबूजी को कहीं शाम को जाना पड़ता था तो हम लोग दीदी के ही सहारे रहते थे और कहीं रात में बिजली चली जाती थी तो हम सब लोग रोने लगते थे और आँख बंद करके दीदी से इस प्रकार से लिपट जाते थे कि मानो एक स्तंभ से कई रस्स्यिां लिपटी हों । जब हम कहते थे कि दीदी ड़र लग रहा हैं तो वो हम सबको लिपटा कर आगे वाले कमरे मे आ जाती थीं। हम सबको ढ़ांढ़स देती थीं। जब उनको भी डर लगता था तो वो हम सबको लेकर बाहर आ जाती थीं और लेकर बैठी रहती थीं जब तक बिजली नहीं आ जाती थी।
नेरी दीदी का विवाह श्री ऋषि कुमार पांडे जी से हुआ जो कि उप्र चीनी निगम मे स्टेनो थे। दीदी के विवाह के एक माह पूर्व मेरे छोटे भाई का जन्म हुआ था।
यह एक बहुत हास्य का विषय हैं कि मेरे जीजा जी शादी से पहले घर आए थे घर देखने के लिए क्योंकि बारात घर पर ही आनी थी। उस समय बारात घर तो हुआ नहीं करते थे तो जब जीजा आये तो दीदी उनको चुपके से देखने के लिए आई और खिडकी के पास जैसे ही खडी हुई वैसे ही बिजली चली गई और बिजली तब आई जब जीजा जी चले गए। तब हम लोगों ने उनको खूब चिढ़ाया। उस समय मेरे जीजा जी गांव में रहते थे तो दीदी को भी गांव म ही रहना था।
अब सोचिए कि जो लडकी शहर में रही हो वो कैसे गांव में रह कर गोबर से लिपाई करना, चूल्हे मे खाना बनाना और उस समय की कट्टर जेठानियों के साथ रहना जो कि शिक्षा रहित हों, तमाम जिम्मेदारियां निपटाती होगी। लेकिन मेरी दीदी ने बहुत ही अच्छी तरह से दो वर्ष निर्वाह किया। फिर दीदी के बच्चे होने वाले हुए तो उनको हम लखनऊ ले आए क्योंकि दीदी की सास नहीं थी, इसलिए।
फिर उनके दो जुडवां बेटे हुए। फिर धीरे-धीरे वो लखनऊ में ही रहने लग गईं।
लखनऊ में रहने के लिए दीदी के ससुर जी ने ही जीजा को प्रेरित किया था। जीजा जी का प्रमोशंन होता गया और अंत में वो मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश शासन हो कर सेवा निवृत्त हुए।
आज मेरी दीदी कई देशों का भ्रमण कर चुकी हैं। उनके तीन लडके हैं। एक इंजीनियर हैं। एक उप्र शासन में प्रमुख सचिव हैं और सबसे छोटा एक विश्व विख्यात कंपनी मे बिक्री विभाग में अच्छे पद पर हैं।
आज नेरी दीदी का जीवन बहुत खुशहाल हैं। मेरी श्री नारायण जी से प्रार्थना है कि हर जन्म में हमारी ही दीदी हम सबको मिले।
हमारी दीदी को हमारे सभी भाई बहनों की तरफ से नमन हैं और हम सबलोग उनके इस त्याग को भूल नहीं सकते हैं। आज उनकी ही कृपा से में भी अखिल भारतीय विक्रय प्रमुख के पद से त्याग पत्र दे कर अपनी माँ की सेवा में रत हूं।
इस रचना को मेरे लिखने का मूल उद्देश्य ये है कि सभी छोटे भाई-बहन अपने से बड़े के त्याग को समझें और उनका वंदन करें। सभी पाठको से मेरा निवेदन हैं कि कम से कम वर्ष मे एक दिन ऐसा रख लें जिस दिन सभी भाई-बहन मिल कर अपने बडे की पूजा-अर्चना करें। उनकी आरती उतारें , उनका तिलक करें। उनको सभी लोग अपने हाथों से दिव्य भोजन कराएं। सभी लोग उनके चरणों में बैठकर उनके द्वारा किए गए त्याग का वर्णन करें जिससे उनको आप सबसे प्यार मिले। ये मेरा वादा हैं कि फिर देखिए कि कैसे आप सबके घर में सुख शांति आती है।
श्रीराम चरित मानस की एक-एक चौपाई मंत्र है।
उसमे लिखा हैं – जहाँ सुमति तह सम्पति नाना। जहाँ कुमति तह विपति निधाना।।
(सत्य घटनाओं पर आधारित)