रचनाकार उत्तम कुमार तिवारी ” उत्तम ” लखनऊ
फागुन
फागुन की मस्त बहारो मे
होरी खेले चौबरो मे
बाज रहे है ताल मृदंग
गावय फाग दुवारे मे ।।
खाय के भंग लोटी रहै
रंग उनके ऊपर डारी रहैं
टेसू के फूलन का रंग महकी उठा
सबके आज दुवारे मे ।।
खेली के रंग थकी गये
घर मा आय के लोटी गये
उबटन ते देही रगड़ी रहे
तालन मा खूब नहाय रहे ।।
पहिनी के कपड़ा नये नये
सजि धजि के बैठि दुवारे मा
लारिका बच्चा सब मौज करे
सब जाय रहे है मेले का ।।
दोहरा पान तमाखू रख्खा
सबके आजु दुवारे मा
कटै सुपारी बनै तमाखू
अरे गावै फागु होरी मा ।
होरी है बुरा न मनो होरी है ।।
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होली गीत
अरे मोहन ख्यालय ब्रज मा होरी
अरे राधा बची न ब्रज की छोरी ।
मोहन ख्यालय ब्रज मा होरी ।।
अरे ग्वाल बाल सब मिली रंग लगावत
करत सबन ते बरजोरी ।।
अरे मोहन ख्यालय ब्रज मा होरी ।
तकि तकि राधा श्याम निहारत
कहत बात कर जोरी
अरे भीग गई मोरी चुनरिया
भीग गई मोरी चोली ।।
मोहन ख्यालय ब्रज मा होरी ।
अरे श्याम राधिका रंग मे रंग गये
देखत रह गई ब्रज की छोरी ।।
ग्वाल बाल सब दौरि परे
करत श्याम बरजोरी ।।
मोहन ख्यालय ब्रज मा होरी ।
“उत्तम” कवि यहु दृश्य निहारत
धन्य कहत कर जोरी ।
मोहन ख्यालय ब्रज मा होरी ।