मोहन – ‘अरे जानती हो अपने दिल्ली वाले ब्रजेश जीजाजी ने फिर फ़्लैट बदल लिया। और छह दिन बाद होने वाली उसकी नांगल में अपने को भी बुलाया है।’
मोहन ने चहकते हुए जब यह खबर आभा को सुनाई तो वह भी मुस्कराने लगी और कहने लगी ।
आभा – ‘बड़ा पैसा है तुम्हारे जीजाजी के पास। अपने को यह घर लिए हुए बारह साल हो गए पर अपना पता तो एक बार भी नहीं बदला। लेकिन तुम्हारे जीजाजी ने इस अवधि में तीन-तीन बार पता-ठिकाना बदल लिया। जब अपन वहां जाएंगे तो यह जरूर पूछेंगे कि वह ऐसा कैसे करते हैं।’
मोहन – ‘ठीक है तुम दिल्ली जाने की तैयारी करो। मैं आज ही अपने बॉस से छुट्टी के बारे में बात कर लेता हूं।’
आभा ‘हां-हूं’ कहकर सफर के लिए सामान जमाने में लग गई।
आभा और मोहन चार दिन बाद दिल्ली के लिए रवाना हो गए। वहां जीजाजी के फ़्लैट पर अच्छी खासी रौनक थी। धीरे-धीरे करके अन्य मेहमान भी आने लगे। आखिरकार वह दिन आ ही गया जब उनके फ़्लैट की नांगल होनी थी। जीजाजी और दीदी अपने बच्चों समेत पूजा-पाठ में बैठे। ब्राह्मण को दान दिया। खास रिश्तेदारों को तोहफे दिए और उन्होंने खाने-पीने की बेहतरीन व्यवस्था कर ही रखी थी जिसका दोस्तों, नाते-रिश्तेदारों ने जमकर लुत्फ उठाया। देर रात तक खाने-पीने का दौर चलता रहा।
जब जीजाजी को इन सबसे फुर्सत मिली तो मोहन और आभा उनके पास पहुंचे। आभा ने थोड़े मजाकिया अंदाज में कहा ।
आभा – ‘जीजाजी! हमें बारह साल हो गए लेकिन हम तो वहीं के वहीं पड़े हैं। आप इतने महंगे फ़्लैट कपड़ों की तरह कैसे और क्यों बदल लेते हैं?’
यह सुनकर जीजाजी थोड़ा मुस्कराए और बोले – ‘अरे! यह कोई खास बात नहीं है। फ़्लैट एक ऐसी प्रॉपर्टी होती है जो अगर समय रहते नहीं बेची जाए तो बाद में उसकी कीमत घटने लगती है। मैं एक फ़्लैट को अधिक से अधिक चार साल तक रखता हूं। इस अवधि में उसकी कीमत में अच्छा खासा इजाफा हो जाता है। जैसे ही कीमत बढ़ी मैं उसे निकालकर उससे थोड़ी कम कीमत का फ़्लैट शहर के दूसरे डेवलप हो रहे इलाके में ले लेता हूं। बस यही चक्र चलता रहता है। तुम्हें यह तो मालूम ही होगा कि कोई भी प्रॉपर्टी तीन साल कब्जे में रखने के बाद बेचो तो कैपिटल गेन टैक्स में भी अच्छी खासी बचत हो जाती है। इस खरीद-बिक्री से कमाई अच्छी हो जाती है और टैक्स भी ज्यादा देना नहीं पड़ता। फिर बदलाव किसे अच्छा नहीं लगता? नए-नए फ़्लैटों में सुविधाएं भी तो नई-नई मिलती जाती हैं। नए-नए पड़ोसी मिलते हैं। नए संपर्क बनते हैं।’
यह सुनकर मोहन और आभा भी उत्साहित हो गए। उन्हें जीजाजी के अमीर बनने का राज समझ में जो आ गया था। वे भी सोचने लगे कि जीजाजी ने उन्हें जो राह बताई है उस पर चलकर वे अवश्य देखेंगे।
मोरल ऑफ द स्टोरी : प्रॉपर्टी से अगर सही रिटर्न मिल रहा हो तो समय पर बेच दीजिए। इससे लक्ष्मी आने का रास्ता खुलता है।