रचनाकार : शबनम मेहरोत्रा कानपुर
प्रकृति (कविता)
प्रकृति की छटा निराली
कही मरू कही हरियाली
फूल और कलियाँ
भंवरो के गुंजन
बजता कितना सुंदर
सरगम
ढलती शाम गोधूली बेला
सूर्य करे सिंदूरी खेला
सुखद सवेरे मस्त हो पुरवा
आलौकिक प्रसन्नता भरता
बहुत मनोरम दृश्य सुहाना
होता नही है कभी पुराना
शाम को पक्षी घर को लोटें
जोर जोर चहचाहट करते
देख प्रकृति की सुंदरता
कविगण भी रचते है कविता
बनी रहे प्राकृतिक सुंदरता
प्रकृति है जीवन दाता
इसे बचाएँ प्राणी बचेगा
घुटके वरना प्राणी मरेगा
शबनम काम यही सच्चा है
करना प्रकृति की रक्षा है
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मेरी ऑंखों में (गीत)
मेरी ऑंखों में सदा दिखता है
इश्क में बस अदा दिखता है
आपने लिखने को पंक्ति दे दी
और किसी का लिखा दिखता है
प्यार में तल्खियाँ आ जाए अगर
कहा हरि और खुदा दिखता हैं
कैसे उस्ताद खुद को कहते हो
मुझको तो कम पढ़ा दिखता है
चोरियाँ तेरी पकड़ ली शबनम ने
गर्द में शेर चोरी का अटा दिखता है
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टेसू के फूल (कविता)
कुदरत का देखिए कैसा वसूल है
डालियों में पत्ते नहीं फूल फूल है
रसायनिक रंगो के प्रचलन हो रहा
टेसू रंग अब नही होता कबूल है
त्योहार भी अब शिष्टाचार होने लगा
कीचड़ और मिट्टी कहा अब धूल है
दिल में डर पाले हो अपनी दुश्मनी
होली का त्योहार नही तेरी भूल है
शबनम नहीं दिखावा है प्यार में मेरा
इसके लिए कुर्बान मेरा जीस्त समूल है
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