विजय कुमार तैलंग, जयपुर
जाने क्यों इशिता सुयश को मना नहीं कर सकी, सिर्फ “हूँ” कहकर रह गई।
शाम को खूबी, इशिता को अखबार में कवर किया एक पैकेट सौंप कर जाने लगी तो इशिता ने सवाल किया – “इसमें क्या है? “
खूबी इस सवाल से थोड़ी हड़बड़ाई फिर बोली – “नहीं जानती! ” वह जाने लगी तो इशिता ने दूसरा सवाल किया – “रोज ये पैकेट तुम्हें कौन देता है? “
“मेरा आदमी। ” कहकर खूबी तेजी से निकल गई। हालांकि इशिता को पूरा यकीन हो चुका था कि यह सुयश के काले धंधे का
ही एक रूप है फिर भी पैकेट में क्या है इस जिज्ञासा को शांत करने के लिए पैकेट ले लिया। वो पैकेट तो उसी शहर के राजकीय उच्चतम माध्यमिक विद्यालय के प्रिंसिपल के नाम था। इशिता के लिए यह एक और चौंकाने का विषय था। सुयश का व्यक्तित्व उसके लिए एक पहेली सा बन गया था।
असल में वह सुयश से प्रेम करने लगी थी अत: इशिता नहीं चाहती थी कि सुयश किसी स्मैक, चरस या हीरोइन जैसे खतरनाक नशे या ड्रग्ज के धंधे में लिप्त मिले। वह सुयश को इस काले धंधे से निकालने का मन बना चुकी थी! लेकिन चाहते हुए भी वह पैकेट को न खोल पाई!
पिछले दिनों जब इशिता कॉलेज पहुंची थी तो कॉलेज में बड़ी गहमागहमी थी। वहाँ पुलिस आई हुई थी और उसने दो सीनियर छात्रों के साथ साथ एक राजनैतिक दल के नेता टाईप छात्र (जो उस कॉलेज का नहीं था) को पकड़ लिया था और हथकड़ी पहना कर पुलिस जीप में ठेलकर ले जा रही थी। इशिता ने अपनी खबरची सहेली शालू जो सब कांड आरंभ से देख रही थी, उससे इस बारे में पूछा तो वह बोली – “स्टूडेंट्स को ड्रग्ज़ सप्लाई किया करते थे, खुद भी लेते थे और बेचते भी थे। आज इनका भांडा फूट गया। “
“क्या इनमें सुयश का नाम आया? ” इशिता ने दबे लहजे में पूछा!
“दो चार नाम और थे उनका नाम पता पुलिस कॉलेज के ऑफिस ले गई है लेकिन सुयश…
ऊँहूँ… इस बंदे का नाम कहीं सुनने में नहीं आया। न जाने क्यों मन ही मन इशिता ने ईश्वर का धन्यवाद दिया!
सुबह-सुबह काल-बैल बजी। घर में इशिता ही सबसे पहले उठती थी। उसने दरवाजा खोला और एक 54-55 वर्षीय सभ्रांत व्यक्ति को सामने पाया। सभ्रांत व्यक्ति ने पूछा -“क्या तुम्हीं इशिता हो? “
क्रमश:
Suspense!