विजय कुमार तैलंग, जयपुर
कॉलेज लाइफ है तो हंगामा भी है, मस्ती भी है, गुटबाजी भी है तो कहीं कहीं एकांत में अपने सहज बर्ताव से गुल खिलाने वाले भी हैं। कहते हैं युवाओं-युवतियों के लिए कॉलेज लाइफ, जीवन का एक गोल्डन पीरियड होता है।
शुरू शुरू में कई दिन आपसी परिचय में गुजरते हैं। बाद में पढ़ाई का माहौल बने न बने सचिव के चुनाव और कार्यकारिणी के सदस्यों के चयन का समय आ जाता है। कुछ पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं ढूंढते फिरते हैं कि कौन विषय की क्लास कहाँ लग रही है, लग भी रही है या नहीं, माहौल क्या है? बाहर बसों पर सचिवों के बैलेट नम्बर व फोटो के साथ सेकडों पोस्टरों की भरमार। जीपों पर कतिपय राजनैतिक दलों का भी प्रभाव दिखाई देता, और कभी भी नारेबाजी के साथ साथ जंगी संघर्ष का भी ऐलान हो जाए तो आश्चर्य नहीं।
गुप चुप अध्ययन प्रेमी अपने बैग में दो किताबें छिपाये कोलेज द्वार में ऐसे प्रवेश करते हैं जैसे कोई अपराधी हों। शोर-शोराबे में उनकी हँसी भी उड़ती जाती है, “जाने दो भाई जाने दो। पढ़ाकू हैं बेचारे! हा… हा…! “
सुयश गंभीर स्वभाव का एकांत में पढ़ने वाला खूबसूरत नौजवान था। वह कॉलेज के वर्तमान माहौल से कोई संबंध नहीं रखता था। चुनावी वातावरण में जब कॉलेज में क्लासेज लगने की संभावना कम होती थी,
सुयश घर पर ही पढ़ाई करता था। वह बी. ए. द्वितीय वर्ष में था।
इशिता उसी के मोहल्ले में रहती थी और उसी के कॉलेज की बी.ए. प्रथम वर्ष की छात्रा थी किंतु कभी दोनों ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया। इशिता औसत रंग रूप वाली साधारण सी लड़की थी और सेल्फ स्टडी में विश्वास करती थी। कॉलेज के लैकचर पर भी ध्यान देती थी।
इशिता ने कई बार सुयश को दूर से मार्केट आते जाते देखा था, वह जानती थी कि वह उसी के कॉलेज का सीनियर स्टूडेंट है किन्तु उसने कभी उसका बढ़कर सामना नहीं किया। उसे नहीं मालूम था कि सुयश ने भी कभी उसे नोटिस किया था या नहीं।
इत्तफाक से उस दिन मार्केट में भीड़ के चलते दोनों सामने से एक दूसरे से भिड़ गये।
“ओह, आप इशिता शर्मा हैं न? बी. ए. प्रथम वर्ष! “
सुयश ने उसे पहचानते हुए पूछा।
“यस! ” इशिता ने अभिवादन करते हुए स्वीकारा।
“मैं, सुयश…! “
“जानती हूँ। ” वह जल्दी से बोली और अपने ही उतावलेपन पर शरमा गयी।
क्रमश:
Highly relatable!