चैप्टर-3
टीआई बनकर आने के बाद मंजरी ने अपने थाने के तहत होने वाले अपराधों का जायजा लिया। इन सब अपराधों का उसे एक ही कारण दिख रहा था- अन्नपूर्णा और उसके प्रोपराइटर यतीश और रवीना! उसने उनके खिलाफ कार्रवाई करने का मानस बना लिया।
इसके लिए उसने अपने दो विश्वस्त सहयोगियों – शरद पांडेय और कमालुद्दीन को तैयार किया। उन्हें पहले इस रेस्तरां में चल रही अवैध गतिविधियों का पता लगाने को कहा। जब शरद और कमालुद्दीन ने करीब एक हफ्ते दिन-रात एक करके अन्नपूर्णा में संचालित की जा रहीं अवैध गतिविधियों की जानकारी खुफिया तरीके से जुटा ली तो मंजरी ने पूरे दलबल के साथ छापा मारने का निश्चय किया।
फरबरी की एक सर्द रात में अन्नपूर्णा पर छापामारी की गई। यतीश और रवीना ने सोचा कि हर बार की तरह पैसे फेंककर वे बच जाएंगे, पर मंजरी के दृढ़ रवैये ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया! यतीश और रवीना ने मंजरी के आंगे बहुत हाथ-पैर जोड़े, उसे और उसकी टीम को 50 लाख रुपये तक आफर कर दिए पर मंजरी टस से मस नहीं हुई।
जब यतीश और रवीना कोर्ट में पेशी से पहले लाकअप में थे तो मंजरी उन्हें देखने गई थी। मंजरी के सामने यतीश ने रिरियाते हुए कहा – मैडम! हम जियो और जीने दो में यकीन करते हैं। आप हमारा धंधा चलने दीजिए और इसके बदले जो चाहे सो मांग लीजिए-दस, बीस, पचास लाख! कुछ भी! पर मैडम हमें छोड़ दीजिए!
यह सुनकर मंजरी ने पहले तो यतीश की खूब धुनाई करवाई। फिर तैश भरे स्वर में बोली- मुझे नहं चाहिए तुम्हारी पाप की कमाई में हिस्सा! तुम इस रेस्तरां की आड़ में लोगों की जिंदगियों से खेल रहे हो! धिक्कार है, तुम्हारे जैसे कुल कलंक पर! जिसने समाज को, खासकर यंग जनरेशन को खोखला करने का बीड़ा उठा रखा है। तुम लोगों को नशीले पदार्थ, ड्रग्स आदि देकर और जुआ खिलवाकर उनको न केवल तन से बल्कि मन और धन से भी खोखला कर रहे हो! अरे! तुम्हारे जैसे लोगां को तो समाज की पूरी एक पीढ़ी को खोखला बनाने के लिए ताउम्र जेल में रखना चाहिए।
उन दोनों को अपनी भूल समझ में आने लगा था कि मैडम के सामने सिर पटकने से कुछ मिलने वाला नहीं। तीर कमान से निकल चुका था और उसने सही समय पर सही जगह पर घाव बना दिया था।
मंजरी द्वारा पेश ठोस सबूतों और गवाहो के बयानों के आधार पर यतीश और रवीना दोनों को दो साल की जेल हुई। बाद में जब जेल से दोनों छूटे तब तक सतीश का लालन-पालन गोलघर के पास रहने वाली सुलेखा चाची ने किया। रवीना और यतीश को अपनी जीवन की गाड़ी फिर से पटरी पर लाने के लिए पहले तो दोनों ने चाइनीज एप से कर्ज की शरण ली। पर कर्ज के सूद ने उन्हें निचोड़कर रख दिया। नतीजतन दो ही साल में अन्नपूर्णा रेस्तरां बेचने की नौबत आ गई।
क्रमशः
(काल्पनिक कहानी)