चैप्टर-2
पैसा हाथ में आते ही यतीश के मन मेें दमित इच्छाएं और विकराल रूप लेनी लगीं। उसने इन इच्छाओं की पूर्ति के लिए पैसे को पानी की तरह बहाना शुरू कर दिया। यतीश जो काम पहले चोरी-छिपे करते था वह अब बेधड़क होकर करने लगा।
उसने पटना जंक्शन के पास दिखावे के लिए एक छोटा-सा रेस्तरां खोला था- अन्नपूर्णा! इस रेस्तरां की आड़ लेकर वह अपने काले मंसूबों को अंजाम देने लगा।
शुरू-शुरू में इस रेस्तरों में छोले-भटूरे और राजमा चावल, लिट्टी चोखा आदि मिलते थे। पर बाद में धंधा और बढ़ाने के लिए यतीश ड्रग्स वगैरह भी रखने लगा। पुलिस वाले यदा-कदा छापामारी करके कभी यतीश को और कभी उसके ग्राहकों को एक दो दिनों के लिए हवालात में रख देते थे पर जैसे ही उन्हें चंदे के तौर पर अच्छी-खासी रकम मिल जाती, वे उन्हं छोड़ दिया करते थे। इस तरह की धरपकड़ के बेपटरी हुई जिंदगी दो-तीन दिन के बाद ही पटरी पर आ जाती थी और यतीश के वही रंग-ढंग हो जाते थे।
यतीश अपने रेस्तरां में बिना लाइसेंस के डिनर के साथ शराब भी परोसने लगा। पुलिस का रवैया हर बार वही रहता! वे छापामारी की औपचारिकता करके चंदा वसूली करके यतीश और उसके ग्राहको को कुछ देर लाॅक अप में रखने के बाद छोड़ देते थे।
यह सिलसिला बढ़ता ही जा रहा था और इसके साथ ही रवीना और यतीश का गुरुर भी! उन्हें लगने लगा था कि वे इतने पैसे वाले हो गए हैं कि कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। अतः उन्होंने अपने धंघे को और बढ़ाने के लिए तीन पत्ती का गेम भी होटल में चलाना शुरू कर दिया। इसमें लोग दांव लगाते, पैसा कमाते थे। लेकिन जितने ज्यादा लोग इस गेम को खेलते थे उनमें से दो-चार ही कमाते थे बाकी सब तो गंवाने के उस्ताद थे! यतीश का यह धंधा भी अच्छी गति पकड़ गया।
लेकिन समय कब एक सा रहता है! काली अंधेरी रात के बाद सूरज निकलता ही है। जब यतीश के काले धंधो की कालिमा क्लाइमेक्स पर पहुंच गई तो संयोग ऐसे हुए कि यतीश क्या, यतीश के पुरखे भी पनाह मांगने लगे। इन संयोगों को गति दी बेली रोड थाने में नई टीआई मंजरी साहूकार की नियुक्ति ने!
मंजरी कोई तीस साल की युवती थी। बिलकुल बेधड़क और कड़क! स्मार्ट और ईमानदार! उसके पिता दीनदयाल ने उसकी परवरिश अच्छे से की थी। बचपन से ही उसमें संस्कार भरने का जो सिलसिला शुुरू किया था वह यौवनावस्था में आकर परवान चढ़ने लगा था।
मंजरी के पिता भागलपुर के गांव थावे में किसान थे। उन्होंने अपनी बेटी को तमाम अभावो के बावजूद अच्छे से पाला था और उसकी शिक्षा-दीक्षा में कोई कसर नहीं छोड़ी थी! इससे जब मंजरी को टीआई के रूप में पटना में पोस्टिंग मिलने का समाचार दीनदयाल को मिला तो वे खुशी से फूले नहीं समाए और अपनी आंखों मं आंसू लिए, पूरे गांव में लड्डू बांटते फिरे। मंजरी की माता वेदवती का इस खुशखबरी सुनने से कुछ समय पहले ही कोरोना की वजह से इंतकाल हो गया था। मां के निधन के बाद मंजरी ने न केवल घर को बखूबी संभाला बल्कि अपने करियर को भी मुकाम तक पहुंचा दिया था।
टीआई बनकर आने के बाद उसने अपने थाने के तहत होने वाले अपराधों का जायजा लिया। इन सब अपराधों का उसे एक ही कारण दिख रहा था- अन्नपूर्णा और उसके प्रोपराइटर यतीश और रवीना! उसने उनके खिलाफ कार्रवाई करने का मानस बना लिया।
क्रमशः
(काल्पनिक कहानी)