चैप्टर-1
ज्योतिभान की शादी में रवीना मिली थी। मुरझाई हुई सी। थकी-थकी! मैंने गर्मजोशी भरे अंदाज में पूछा- और रवीना क्या हाल हैं? तो वह मायूस सी होकर बोली- कुछ नहीं! बस, जिंदगी यूं ही कट रही है!
उसकी ऐसी बात सुनकर मुझे बेहद हैरानी हुई। क्योंकि कोई तीन साल पहले ही मैंने सुना था कि रवीना के हसबैंड यतीश को कोई पांच करोड़ रुपये मिले थे- पटना की बेली रोड पर एक शानदार बंगला बेचकर! यह बंगला यतीश के पिता रामेश्वर की सबसे बड़ी अर्जित संपत्ति थी।
उनका यह बंगला बढ़िया झाडफानूस से सुसज्जित और तमाम अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस था। बंगले के सामने फव्वारे जब चलते थे तो एक दिलकश नजारा पैदा हो जाता था। बंगले को देखने वाले इसकी भव्यता को देखकर देखने वाले दांतों तले अंगुली दबा लेते थे।
रामेश्वर बिहार सरकार के ट्रेजरी आफिस में क्लास वन अफसर की पोस्ट से आठ साल पूर्व रिटायर हुए थे। रिटायरमेंट के बाद उन्हें अच्छा खासा एमाउंट मिला था और पेंशन भी अच्छी खासी मिलने लगी थी। उन्होंने इस पैसे का इस्तेमाल बंगला खरीदने में किया था। लेकिन यह बात अलग है कि इस बंगले में रहने का सुख उन्हें ज्यादा नसीब नहीं हुआ।
हुआ यूं कि जब यह बंगला लिया था तब उनका शरीर रोगों का घर बन चुका था। डायबिटीज, हार्ट की प्राब्लम और आखिर में टीबी ने उन्हें तोड़ कर रख दिया था। दरअसल, वे चाहते तो और जिंदा रह सकते थे अपने खान-पान और आहार-विहार को नियंत्रित करके! पर क्लास वन अफसर के पद से रिटायर होने के नाते उन्हें समाज में रुतबा बनाए रखने के लिए उनकी जिंदगी दिखावे से भरी थी और अक्सर किसी न किसी बहाने पार्टियां देते रहते थे और खाने-पीने में कोई कंजूसी नहीं करते थे। जब कोई उन्हें इस बात को लेकर रोकता-टोकता तो वे यही कहते- अरे यार! कहां लगे हो? मैं ढेरों दवाइयां तो रोज लेता ही हूं। जितनी चाबी राम ने भरी होगी, उतने दिन यह खिलौना चल ही जाएगा।
इसी बंगले में यतीश और रवीना की शादी हुई थी। और इसी बंगले में रवीना की गोद में नन्हा सा फूल खिला था- सतीश!
सतीश अब 5 साल का है। यतीश उम्र के चौथे दशक में प्रवेश कर चुके हैं और रवीना उनसे तीन साल छोटी है। यतीश ने अपने पिता के अंतिम दिनों में उनकी अच्छी सेवा-सुश्रूषा की। रामेश्वर यह बंगला दिवंगत होने से पूर्व वसीयत में यतीश के नाम लिख गए थे।
जब तक पिता थे तब तक यतीश छोटी-मोटी नौकरियां करता रहा। इसी दौरान उसकी कुछ बुरी संगति भी हो गई। जब पिता का निधन हुआ तो यतीश बुरी तरह से टूट गया। वह ड्रग्स लेने लगा। ऐसे शौकों के कारण उसे अपनी अय्याशियों के लिए पैसा कम पड़ने लगा। ऐसे में उसे आसान उपाय यही लगा कि छोटी-मोटी नौकरियों को तिलांजलि देकर लंबा हाथ मारा जाए। अतः उसने यह बंगला बेच खाया। बंगले को बेचने से उसे पांच करोड़ रूपये मिले।
पैसा हाथ में आते ही यतीश के मन मेें दमित इच्छाएं और विकराल रूप लेनी लगीं। उसने इन इच्छाओं की पूर्ति के लिए पैसे को पानी की तरह बहाना शुरू कर दिया। यतीश जो काम पहले चोरी-छिपे करते था वह अब बेधड़क होकर करने लगा।
(काल्पनिक कहानी)
क्रमशः