आख़िरी चैप्टर
रवीना और यतीश को अपनी जीवन की गाड़ी फिर से पटरी पर लाने के लिए पहले तो दोनों ने चाइनीज एप से कर्ज की शरण ली। पर कर्ज के सूद ने उन्हें निचोड़कर रख दिया। नतीजतन दो ही साल में अन्नपूर्णा रेस्तरां बेचने की नौबत आ गई।
जिस अन्नपूर्णा की आड़ में वे लोगां की जिंदगी से खिलवाड़ करने में लगे थे, उस भयानक धंघे पर विराम लग गया। रेस्तरां के बेचने से उन्हें जो रुपये मिले थे वे भी उन्हें गंवाने पड़ गए।
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अब यतीश और रवीना दोनों हाईकोर्ट के पास किराए के एक छोटे से मकान में रहते हैं। उनका मकान मालिक भोलाशंकर हाजीपुर के एक गांव में रहता था। अतः उसे अपने मकान में हो रही अवैध गतिविधियों की सूचना नहीं मिल पाती थी। वो तो केवल तभी फोन लगाता था जब यतीश और रवीना को किराया उसके खाते में डालने में देर हो जाती। भोलाशंकर यह भी जानता था कि यदि वह इन दोनों से पंगा लेगा तो शायद उसकी जान पर ही बन आए। उसे यतीश और रवीना की पुरानी कारगुजारियों की भनक तो थी ही पर किराया मिलने के प्रलोभन के कारण उसने अपनी आंखों पर पट्टी बांध रखी थी।
भोलाशंकर के मकान में भी उनकी मुसीबतों का अंत नहीं हुआ क्योंकि रस्सी जल जरूर गई थी पर उसकी ऐंठन नहीं गई थी।
हुआ यूं कि यतीश ने इस किराये के घर से भी मादक पदार्थों के धंधे को फिर से शुरू कर दिया था। उसके इस घर पर आधी रात को लोग आते और पैसा देकर ड्ग्स लेकर चले जाते। पर एक दिन ऐसी घटना हुई कि यतीश और रवीना की रूह कांप गई।
वे लोग किचन के डिब्बों में ड्रग्स छिपाकर रखते थे। एक दिन गलती से करीब 2 ग्राम सफेद पाउडर की पुड़िया जमीन पर गिर गई। तभी वहां छोटा सतीश पहुंचा। उसने सोचा कि चीनी का बूरा है। उसने वह पुड़ि़या खोलकर निगल ली। इसके बाद सतीश की जो हालत हुई उससे यतीश और रवीना दोनों कांप उठे।
ड्रग्स के दुष्प्रभाव के कारण बच्चे की सांस अटकने लगी। हार्टबीट बेकाबू सी लगने लगी। चक्कर पे चक्कर आने लगे। अपने आंख के तारे की ऐसी हालत देखकर यतीश और रवीना बेहोश होते-होते बचे।
वे उसे लेकर फौरन अपने परिचित डाॅ मनसुख सोढी के क्लिनिक भागे। डाॅक्टर ने सतीश की स्थिति को भरसक काबू में करने की कोशिश की और करीब छह घंटे लगातार मशक्कत करके उसकी जान बचा ली। तब से रवीना और यतीश दोनो ने ड्रग्स के धंधे से तौबा कर ली। उन्हें समझ में आ गया था कि ड्रग्स का असर कितना घातक हो सकता है।
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मैंने उनकी पूरी स्टोरी सुनकर रवीना से पूछा- अब आगे क्या करने का इरादा है, तो वह कुछ सोचकर बोली – बस, अब तो सतीश पर ही भरोसा है। उसे अच्छी शिक्षा और संस्कार देने हैं ताकि वह एक सम्मान भरी जिंदगी जी सके और दूसरों के जीवन को भी रोशन कर सके!
उनका यह सेंटेंस खत्म होते ही ज्योति के दूल्हे राजेश की बारात मैरिज हाॅल के मेन गेट तक पहुंच चुकी थी और बैंड वालों द्वारा बजाए जा रहे इस गीत के बोल पर लोग थिरक रहे थे –
प्यार हुआ, इकरार हुआ,
प्यार से क्यों डरता है दिल
……………..
……………..
तुम न रहो, हम न रहें,
फिर भी रहेंगी निशानियां!
सतीश इस धूम-धाम से अनजान बनकर अपने हम उम्र दोस्तों के साथ मस्ती किए जा रहा था और यतीश उस पर दूर से नजर रखे हुए था।
(काल्पनिक कहानी)