चैप्टर-1
किसी स्थान पर एक वित्र प्रदर्शनी लगी हुई थी। वहां प्रदर्शित एक चित्र के इर्द-गिर्द काफी भीड़ जमा हो रही थी। वह चित्र इतना जीवंत और सुंदर था कि सब उसकी तारीफ कर रहे थे। उस चित्र में एक नवयुवक दिख रहा था जिसका चेहरा किसी फिल्मी हीरो जैसा दमक रहा था। उसे चित्रकार ने नीली सफेद शर्ट पहना रखी थी और चेहरे पर थोड़ी-बहुत दाढ़ी-मूंछ भी बना दी थीं। नीले बैकग्राउंड में बनाए गए इस चित्र को जो भी देखता उसका मन प्रसन्न हो जाता और लोग चित्रकार की तारीफ किए बिना रह नहीं पाते थे। पूरी प्रदर्शनी में सबके आकर्षण का केंद्र बने इस चित्र को देखकर लोग दांतों तले अंगुली दबा लेते थे।
जब इस चित्र के आसपास ढेर सारी भीड़ लग गई तो एक अनूठा वाकया हुआ। भीड़ को चीरकर एक पंडितजी निकले और उन्होंने चित्र की ओर देखते हुए कहा – वाह! क्या चित्र है। पर इसमें कौन है यह किसका चित्र है यह बताना शायद चित्रकार भूल गया है। काश! इसके माथे पर तिलक लगा होता और कंधे पर जनेउ दिख रहा होता तो यह बिलकुल हिंदू ब्राह्मण लगता!
अजी जनाब! छोड़िए हिंदू-बिंदु को! जनाब मुझे यह चित्र किसी ईमानपरस्त मुसलमान का लगता है। बस थोड़ी सी कमी रह गई है! पेंटर यदि इसके माथे पर वैसा ही दाग बना देता जैसा कि हमारे माथे पर मत्था टेककर नमाज पढ़ने से बन जाता है, तो यह शक्लो-सूरत से पूरा मुसलमान लगता। इसके साथ ही पेंटर इसके गले में कोई ताबीज लटका सकता था या सिर पर जालीदार सफेद टोपी भी लगा सकता था। यदि वह वैसा कर लेता तो इसके मुसलमान होने में कोई शको-सुबहा नहीं रह जाता! इसे देखकर हमारी तबीयत भी खुश हो जाती। वहीं खड़े एक मौलवी साहब ने प्रतिकार किया।
मैनूं अचरज हुंदा है! अजी आप सब लोग एनूं नईं पिच्चाण सके! अरेए ये तो किसी सरदारजी का फोटो है! बस चित्रकार ने एक ही गलती कर दी है कि इस वित्र विच बणे इंसान नूं पगड़ी नईं पिणाई है! हां, मैं यह नहीं सकता कि यह पगड़ी किस रंग दी होणी चाहिए। वैसे, चित्रकार ने इसे बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। प्रदर्शनी देखने के लिए अपनी पत्नी और बच्चों के साथ आए एक सरदारजी ने विचार जताए।
यहां मौजूद सज्जनों! ये तीनों ही झूठे हैं। यह वाक्य जब किसी ने कहा तो सबकी नजरें उस तरफ घूम गईं जिस तरफ से आवाज आई थी। लोगों ने देखा कि सफेद ड्रेस पहने खड़े एक पादरी यह बात कह रहे थे।
क्रमशः
(काल्पनिक कहानी)