आखिरी चैप्टर
यहां मौजूद सज्जनों! ये तीनों ही झूठे हैं। यह वाक्य जब किसी ने कहा तो सबकी नजरें उस तरफ घूम गईं जिस तरफ से आवाज आई थी। लोगों ने देखा कि सफेद ड्रेस पहने खड़े एक पादरी यह बात कह रहे थे।
जब पादरी महोदय ने देखा कि सबका ध्यान उनकी तरफ खिंच गया है तो वे गला खंखारते हुए बोले- ये तीनों ही गलतबयानी कर रहे हैं। कोई तिलक लगाने की और कोई पगड़ी पहनाने की तो कोई इस चित्र में बने व्यक्ति के माथे पर काला दाग बनाने की बात कर रहा है। अरे! जब चित्रकार ने इन सब चीजों को इस चित्र में जगह नहीं दी तो इस बारे में क्या सोचना? फिर भी मुझे लगता है कि पेंटर किसी सच्चे ईसाई का चित्र बना रहा था। अत: उसने आंख. नाक, कान, भौंहें, बाल आदि सब तो बना दिए पर इसके गले में एक सलीब लटकाना भूल गया! यदि इसके गले में वह सलीब बना देता तो यह व्यक्ति पूरा ईसाई दिखता! वैसे भी इस चित्र में बने व्यक्ति के चेहरे पर ईसाई होने के बहुत सारे लक्षण मुझे दिखाई दे रहे हैं।
पादरी की ये बातें सुनकर चित्र प्रदर्शनी का माहौल गरमा गया और पंडितजी, मौलवी साहब और सरदार जी भी नाराज हो गए और आपस में तू-तू, मैं-मैं करने लगे। कुछ ही देर में चारों एक-दूसरे से उलझने लगे और बात बहुत बढ़ गई। दर्शकों की भीड़ में खड़े लोग भी अपने-अपने धर्म गुरुओं का पक्ष लेने लगे। तभी भीड़ में से एक सुंदर बांका सा नौजवान निकला और मधुर आवाज में बोला – अरे! आप लोग बेकार में ही आपस में लड़ रहे हैं। क्या आप लोग इस चित्र को बनाने वाले से यह नहीं पूछ सकते कि वास्तव में वह किसका चित्र बना रहा था? लोगों को यह युक्ति पसंद आई और वे चित्रकार से मिलने जा पहुंचे।
सब लोगों ने एक स्वर में पूछा – महोदय! आपने ये किसका चित्र बनाया है? यह चित्र देखकर हम बेहद उलझन में पड़ गए हैं! अब आप ही हमारी जिज्ञासा का समाधान कर सकते हैं।
यह सुनकर चित्रकार थोड़ा मुस्कराया और थोड़े हल्के-फुल्के अंदाज में बोला – अरे भोले-भाले इंसानों! तुम सबने दरअसल, एक हिंदू, एक मुस्लिम, एक सिख या एक ईसाई के नजरिए से इस चित्र को देखा है। इसलिए तुम सबको समझ में नहीं आ सका कि यह चित्र किसका है? अच्छा आप सब बताओ क्या तिलक, जनेउ, माथे पर दाग, सिर पर सफेद टोपी या पगड़ी, गले में सलीब आदि रहने या नहीं रहने से कोई इसान इंसान नहीं रह जाता? क्या आपने किसी इंसान के बच्चे को तिलक, जनेउ, माथे पर दाग, सिर पर सफेद टोपी या पगड़ी, गले में सलीब आदि के साथ पैदा होते हुए देखा है? नहीं न! तो फिर इसे एक इंसान की तस्वीर कहने में क्यों संकोच कर रहे हो? अरे! ये सब चीजें तो हम अपने आप को अलहदा दिखाने के लिए धारण करते हैं। इससे विशिष्ट पहचान बनती है। लेकिन यदि इन चीजों को हटा दिया जाए तो हम दूसरों के जैसे हाड़-मांस के ही पुतले हैं। हमें बनाने वाले ने थोड़े ही यह कहा था कि तुम्हें इन सब चीजों को धारण करना ही है तभी तुम इंसान कहला सकोगे।
चित्रकार की ये बातें सुनकर वहां मौजूद सभी लोगों के सिर शरम के मारे झुक गए और वे चित्रकार की बात समझ में आते ही बुदबुदाकर कहने लगे – हमं माफ कर दें चित्रकारजी! दरअसल, हम बाहरी चिह्नों के आधार पर ही किसी की पहचान तय करने की जुर्रत कर बैठे! हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भले ही हम ये बाहरी चिह्न धारण करें या नहीं, रहेंगे तो इंसान ही!
(काल्पनिक कहानी)