रचनाकार : उत्तम कुमार तिवारी ” उत्तम “, लखनऊ
कुछ दिन बीत गये कोई सूचना नही आई उप- जिलाधिकारी महोदय के कार्यालय से तो जगदेव प्रसाद चिंतित होने लगे । इधर गाँव वाल उनसे पूछने लगे कि प्रधान जी क्या हुआ अस्पताल के लिए । जगदेव जी हमेशा गाँव वालो को सांत्वना प्रदान करते रहते थे कि सरकारी कार्य मे कुछ समय लगता है आप लोग चिंता न करो ।
एक दिन लगभग ग्यारह बजे होंगे । सरकारी गाड़ियों का काफिला जगदेव के घर के सामने आकर रुका । पूरा गाँव जगदेव के घर के सामने जमा हो गया । गाडी पर से उप – जिलाधिकार महोदय और उनके साथ तहसील दार साहेब कानूनगो लेखपाल भी उतरे । चाय पानी की सबके लिए व्यवस्था की गई , फिर उप – जिलाधिकारी महोदय ने अपनी घोषणा सभी गाँव के सामने कर दी कि इस गाँव को एक अस्पताल के लिए सरकारी जमीन और अस्पताल बनवाने के लिए ५० लाख रुपया सरकार के द्वारा स्वीकृत कर दी गई । इतना सुनते ही गाँव के सभी लग खुश हो गये और फूल माला लेकर आ गये उप – जिलाधिकारी महोदय को पहनने के लिए , लेकिन उप – जिलाधिकारी महोदय ने सभी गाँव वालो से कहा कि इन फूलो के हकदार है जयदेव प्रसाद जी अतः आप सभी लोग जगदेव प्रसाद जी को माल्यर्पण करे और अस्पताल का नाम होगा जगदेव प्रसाद जी और उनकी पत्नी के नाम का । अतः अस्पताल का नाम है ” जगदेव जानकी चिकित्सालय ” । इतना सुनते ही सभी गाँव वाले उप – जिलाधिकारी महोदय को साधुवाद बोलने लग गये ।
भूमि का आवंटन हुआ । भूमि पूजन के लिए शुभ मुहर्त निकलवा कर भूमि पूजन की तिथि निश्चित कर दी गई । सरे सरकारी अमला को भूमि पूजन मे बुलाया गया । भूमि पूजन मे उप- जिलाधिकारी महोदय ने जगदेव प्रसाद और उनकी पत्नी को बैठाया उनसे ही पूजा करवाई । कुछ दिनों मे अस्पताल बन कर तैयार हो गया । इधर जगदेव के डाक्टर बेटे ने अपने सभी डाक्टर मित्रो से अस्पताल मे सहयोग देने की प्रार्थना कि जिससे सभी लोग तैयार हो गये अपनी अपनी सेवा प्रदान करने के लिए और वो भी निशुल्क । उस अस्पताल मे जच्चा बच्चा विभाग , ह्रदय रोग विभाग , अस्थि रोग विभाग और मेडसिन विभाग खोला गया ।
मरीजों की देखभाल के लिए निशुल्क रख्खा गया । पर्चा बनने वाले काउंटर पर एक दान पेटी रख दी गई जिसकी जो श्रद्धा हो वो उस दान पेटी मे दाल दे बस यही फीस थी । जगदेव के गाँव के लोग भी बहुत अच्छे थे सभी लोग अपनी यथाशक्ति से दान देने लग गये अस्पताल को । जितने गाँव के लोग नौकरी करते थे उन सभी लोगो ने अपनी अपनी वेटा का कुछ हिस्सा अस्पताल की दान पेटी मे डालने लग गये ।
इधर उनकी बेटी रुक्मणि ने जो शीर्ष न्यायालय मे वकील थी उसने भी अस्पताल के नाम की दान पेटी न्यायलय के बाहर रख दी और सभी को दान देने के लिए प्रेरित करने लगी जो भी पैसा वहाँ से मिलता था वो सारा पैसा अस्पताल को प्रदान कर दिया जाता था । उनका बेटा जो फौज मे था उसने भी एक मुहीम चला दी अस्पताल के लिये दान की वो भी अच्छा खासा पैसा इकठ्ठा करके के अस्पताल को प्रदान करने लग गया । जिससे अस्पताल का कार्य बढ़िया चलने लगा गाँव क्षेत्र के लोग अस्पताल को निःशुल्क सेवाएं प्रदान करने लग गये । उस अस्पताल मे गंभीर गंभीर रोगी भी ठीक होने लगे और अस्पताल का नाम होने लगा । जिससे दूर दूर के लोग भी उस अस्पताल मे इलाज के लिए आने लगे । गाँव समाज के लोगो को उस अस्पताल से अच्छा खासा रोजगार भी मिलने लगा । आज वो गाँव एक सम्पन्न गाँव हो गया । जब जगदेव प्रसाद जी की पत्नी का देहांत हुआ तो उनकी मूर्ति अस्पताल के प्रांगन मे स्थापित की गई कुछ समय पश्चयात जगदेव प्रसाद जी की मूर्ति भी उसी अस्पताल के प्रांगन मे स्थापित कर दी गई ।
ये थी कहानी जगदेव प्रसाद जी की परवरिश कि , कि उनकी परवरिश एक अच्छे संस्कार से हुई और उन्होंने भी होने बच्चो की परवरिश अच्छे संस्कारो से की । जिसकी वजह से आज उनका नाम रोशन हो गया ।
(काल्पनिक रचना)