चैप्टर—2
उमाकांत की खांसी की आवाज सुनकर राजेश्वरी ने मनीष से फोन पर कहा — बेटा! अपन कल बात कर लेंगे। मैं जरा इनको संभाल लूं।
उनके यह कहते ही मनीष ने बाय—बाय, प्रणाम मम्मी—पापा! कहकर फोन रख दिया।
फिर राजेश्वरी उमाकांत के लिए एक गिलास पानी और दवा लेकर लीं। जब उन्होंने पानी के साथ दवा ली तो थोड़ी देर में आराम पड गया।
इस फोन वार्ता के बाद मनीष ने पूगल में अपनी नौकरी जॉइन कर ली और इसके साथ ही वक्त ने तेजी से पंख पसारकर उड़ना शुरू कर दिया। इधर जबलपुर में उमाकांत की तबियत दिन प्रति दिन नाजुक होती जा रही थी। पांचवें महीने में उनकी तकलीफ बेहद बढ़ गई और सांस लेने में बहुत ज्यादा तकलीफ होने लगी। उनकी हालत बिगड़मी देखकर नर्मदा हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने उन्हें कुछ दिन वेंटिलेटर पर रखने की सलाह दी। इसके बाद राजेश्वरी ने बेहद घबराते हुए मनीष को फोन लगाया।
मनीष ने बड़े बेमन से फोन उठाया। दरअसल, उस दिन मनीष का पूरा दिन आफिस के कामकाज में मगजमारी करते बीत गया था और शाम को वह अपने आफिस में असिस्टेंस कार्ला की बर्थडे पार्टी के सिलसिले में ग्रांड इम्पीरियल होटल गया हुआ था। इस बर्थडे पार्टी में मनीष ने कार्ला को इम्प्रेस करने के लिए जमकर धमाल किया था। अत: जब वह थकान से चकनाचूर होकर कार्ला के खयालों में खोया हुआ,अपने किराए के फ्लैट में सोने की तैयारी कर रहा था कि तभी उसकी मम्मी का फोन आ गया। असमय आए फोन कॉल से उसे बड़ी कोफ्त हुई। ऐसा लग रहा था मानो राजेश्वरी के फोन कॉल आने से उसके आराम में खलल पड़़ गया हो।
वह बड़े बुझे स्वर में बोला — क्या है मम्मा! मैं दिनभर काम करके थक हारकर सोने की तैयारी कर रहा था और आपने फोन लगाकर मेरे सोने की तैयारियों पर पानी फेर दिया।
अपने बेटे के ऐसे कमेंट्स सुनकर राजेश्वरी बोलीं — बेटा! मुझे क्या मालूम कि तू सोने जा रहा था। खैर! यह तो तुझे मालूम है कि तेरे पिताजी की तबियत कई दिनों से खराब चल रही है। उनकी तबियत इतनी बिगड़ गई है कि डॉक्टरों ने उन्हें वेंटिलेटर पर रखने की सलाह दी है। बेटा! तू छुट्टी लेकर जल्दी आजा!
मनीष ने अपनी मां की बात को इस कान से सुना और दूसरे कान से निकाल दिया। वह बनावटी उदासी भरे स्वर में बोला — मां! आपको मालूम है मैं न्यूयार्क में हूं। प्लेन से इंडिया पहुंचने में काफी समय लग जाएगा। अब जब आप पापा के पास हो तो उन्हें संभाल लो ना! क्यों बेकार में मेरा समय और पैसा बर्बाद कराओगी!
मनीष के ऐसे कड़े बोल सुनकर राजेश्वरी के दिल में गहरी टीस उठी और वे फूट—फूटकर रोने लगीं। वे बोलीं — बेटा! नौकरी के पीछे ऐसा निर्मम नहीं होना चाहिए कि जब मां—बाप को जरूरत हो, उनकी जान पर बन आए तो तुम अपना फर्ज अदा कर ही नहीं सको। बेटा, बुढ़ापे में तुम्ही तो हमारा सहारा हो! यदि तुम ही पीछे हट गए तो हमारा क्या होगा?
मनीष— मम्मी! आप मेरी मजबूरी समझो! मुझे बॉस ने एक प्रोजेक्ट दिया है। उसे चार दिन में पूरा करके सबमिट कराना है। अगर मैं सबमिट नहीं कर पाया तो मेरा सब मिट जाएगा। मेरा करियर बर्बाद हो जाएगा। मेरे बेंगलूरु आने के चांस कम हो जाएगे। मां, ऐसा नहीं है कि मैं पिताजी की सेवा नहीं करना चाहता पर मेरी कुछ मजबूरियां हैं। प्लीज कॉपरेट करो ना!
राजेश्वरी अपने बेटे की ऐसी बातें सुनकर गहरे अवसाद में डूब गईं और उन्हं लगा कि इस मामले में मनीष से और बातचीत करना बेकार है। अत: वे बेहद भर्राये गले से इतना कह सकीं — ठीक है बेटा! जैसा तुम्हें दिखाई दे, तुम करो! जैसा मुझे दिखाई देगा मैं करूंगी! पर बेटा मैं एक बात कहना चहूंगी कि तुम काबिल हो! तुम्हें नौकरी तो दूसरी मिल जाएगी पर जिस बाप ने तुम्हें इस मुकाम पर पहुंचाया, वह यदि चला गया तो दूसरा उनके जैसा बाप नहीं मिल पाएगा!
क्रमश:
(काल्पनिक कहानी)