चैप्टर—1
पापा! पापा! एक बहुत बड़ी खुशखबरी है। मेरा सेलेक्शन पूगल कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में हो गया है। न्यूयार्क गए अपने बेटे मनीष की खनकती आवाज में यह संदेश सुनकर उसके पिता उमाकांत मालवीय की खुशी का पारावार नहीं रहा। उनकी आंखों में आंसू आ गए। उनकी यह हालत देखकर पास ही खड़ी फोन वार्ता सुन रहीं राजेश्वरी की भी आंखें छलक आईं। उन्हें लगा कि उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा स्वप्न पूरा हो गया है।
अपने बेटे द्वारा दी जा रही खुशखबरी सुनकर उमाकांत कुछ सेकेंड तक हैरान रह गए। वे बोलना चाहते थे पर शब्द कंठ में ही अटक जाते थे। उनके मुंह से गौं—गौं टाइप की आवाज सुनकर मनीष को भी लगा कि पापा की खुशी का बांध टूट गया है और वे इमोशनल हो रहे हैं। अत: उसने उन्हें संयत करने के लिए कहा — पापा! प्लीज! मम्मी को फोन दो न!
उमाकांत ने बेटे का आग्रह सुनकर अपनी पत्नी को फोन पकड़ा दिया। फिर क्या था? मम्मी चहकने लगीं— और बेटा! क्या हाल हैं न्यूयार्क के? हमें तुम्हारी बहुत चिंता थी पर अब जाकर दिल को सुकून मिला है। बधाई हो! बेटा! तुमने मालवीय खानदान का नाम रोशन कर दिया है। वैसे ये पूगल वाले कितने का पैकेज देंगे?
मनीष — सब आप लोगों का आशीर्वाद और भगवान की कृपा है मम्मी! मुझे साल भर में करीब 50 लाख रुपये का पैकेज मिलेगा और आपको यह जानकर और भी खुशी होगी कि छह माह बाद मेरी पोस्टिंग इंडिया में बेंगलूरु में ही होगी।
राजेश्वरी — यह तो बहुत ही बढ़िया है। एक तुम्हीं हमारे बुढ़ापे के सहारा थे और तुम कम से कम छह माह बाद यहां तो आ ही जाओगे। बेटा, वैसे जब भी छुट्टी—छपाटी मिले घर जरूर आना। यहां जबलपुर में बाकी सब तो ठीक—ठाक है पर पापा को ही लंग्स का इन्फेक्शन है। ये जब से रिटायर हुए हैं तब से बीमार ज्यादा रहने लगे हैं। पता नहीं कब क्या हो जाए? मेरे भी घुटनों में दर्द बना रहता है। बड़ी मुश्किल से घर के कामकाज निबटा पाती हूं। अब जब तेरी नौकरी लग ही गई तो एकाध साल में बहू जरूर ले आना। ताकि हम सब भी अपना बुढ़ापा सुकून से गुजार सकें।
मनीष — मम्मी! चिंता मत करो! बहू भी आ जाएगी। फिर हम सब मिलकर एक ही जगह रहेंगे। मैं और बहू मिलकर आपकी ऐसी सेवा करेंगे कि सारे दुख—दर्द गायब हो जाएंगे।
जब उमाकांत ने देखा कि उनकी पत्नी मनीष से बहुत देर से बातें ही किए जा रही हैं तो उन्हें थोड़ी खीझ होने लगी। वे अपनी हर्षातिरेक वाली भावनाओं को कुछ दबाते हुए चिढ़ते हुए बोले — बस करो भागवान! रात के दो बज रहे हैं। यह ठीक है उसकी नौकरी लग गई है तो क्या पांच साल आगे की और उसके शादी—ब्याह की तमाम बातें आज ही कर लोगी।
इतना कहते—कहते वे जोर से खांसते हुए हांफने लगे।
उनकी खांसी की आवाज सुनकर राजेश्वरी ने मनीष से फोन पर कहा — बेटा! अपन कल बात कर लेंगे। मैं जरा इनको संभाल लूं।
उनके यह कहते ही मनीष ने बाय—बाय, प्रणाम मम्मी—पापा! कहकर फोन रख दिया।
क्रमश:
(काल्पनिक कहानी)