आखिरी चैप्टर
खाने—पीने और मेहमानो की आवभगत का दौर देर शाम तक चलता रहा।
रात में जब हमारी और रोहित की फैमिली डाइनिंग टेबल पर डिनर के लिए बैठी तो मैंने उन सवालों को पूछ ही लिया जो कि रोहित से फोन पर हुई बातचीत के दौरान मेरे मन में उमड़े थे। जैसे कि उसकी इस कामयाबी का राज क्या है? उसने इतनी बड़ी रकम जुटाई कैसे? आदि—आदि।
तब रोहित ने बेहद नरम आवाज मे बताया कि उसने अपने पिता की बीामारी को देखते हुए आत्मनिर्भर बनने का फैसला कर लिया था। उसने पंचर की दुकान को संभालने के गुर और ऐसा ही काम करने वालों के अनुभव से सीखे। वह एक डायरी रोज लिखता है। इसमें वह दुकान से होने वाली आय और सामान वगैरह खरीदने में होने वाले व्यय को दर्ज करता है। उसने पंचर के काम से शुरुआत करके इतने सालों में अपनी दुकान को एक साइकिल स्टोर के रूप में बदल लिया है। उसके पास साइकिल का हर सामान मिल जाता है।
वह ग्राहकों से मीठा बर्ताव करता है और अपने नौकरो को भी हिदायत दे रखी है कि वे ग्राहक को पूर्ण संतुष्टि देने की कोशिश करें। वह जो भी सामान बेचता है उससे हुए लाभ का आधा हिस्सा घर खर्च में उठाता है। बाकी आधे हिस्से को बीमा, मासिक आय योजना और एफडी आदि में निवेशित करता रहता है।
उसने डबडबाई आंखों से यह भी बताया कि उसके पिताजी के इलाज मे ही उनके द्वारा बचाई गई तमाम रकम साफ हो गई थी। फिर भी उसने और उसकी फैमिली ने हिम्मत नहीं हारी और वे सुनियोजित तरीके से अपनी आय को बढ़ाने में लगे रहे। उसके पिताजी ने उसे पंवर के धंधे को जमाने का मंत्र दिया था कि ग्राहक को जाने मत दो। वह इस मंत्र का अब तक पालन कर रहा है।
वह परेशान हाल ग्राहक की हर तरह से परेशानी दूर करने की कोशिश करता है। काम को लेकर कोई बहाने नहीं बनाता और न ही ज्यादा रेट लेने की कोशिश करता है। अगर किसी के पास पैसे नहीं हों, तो वह उनका काम अटकने नहीं देता बल्कि उनकी हरसंभव मदद कर देता है। इससे उसके ग्राहक सदा उसे याद रखते हैं और बार—बार उसी की दुकान पर आते हैं।
रोहित ने बताया कि उसने अपने छोटे बेटे चंदू को टेक्नीशियन का कोर्स कर दिया है और वह बीएचईएल फैक्ट्री में काम कर रहा है। उसने अपनी बेटी सुलभा को भी कंप्यूटर का कोर्स करा कर उसे भी स्किल्ड बना दिया है। उसकी बीबी रंजना उसके घर को संभाले रहती है और यदा—कदा फुर्सत मिलने पर दुकान के काम में भी हाथ बंटा देती है। उसे फिजूलखर्ची का कोई शौक नहीं है और वह घर खर्च के लिए मिलने वाली रकम में से भी कुछ हिस्सा बचाकर रखती है।
मुझे रोहित की स्टोरी सुनकर मजा आ गया। मैने जान लिया था कि उसकी तरक्की का राज क्या है? इससे मुझे अपने भीतर गहन संतोष का अनुभव हुआ क्योंकि मुझे भी अपनी जिंदगी की गाड़ी को सुचारू रूप से चलाने के लिए उसे पंचर रहित बनाने की प्रेरणा मिल गई थी। मैं इस प्रेरणा से उत्साहित होकर कुछ कर गुजरने की तमन्ना लेकर कोटा में नई शुरुआत करने की ठान चुका था।
(काल्पनिक कहानी)