रचनाकार : शबनम मेहरोत्रा, कानपुर
हलो हलो कौन?
मैं मानसी।
सुन प्रीति आज जश्न पर 50% सेल लगी है चलोगी ?
हाँ हाँ ज़रूर!
तैयार हो जाओ मैं तुम्हें लेने आ रही हूँ।
शो रूम जश्न पर पहुँच कर –
मानवी बोली देख प्राची तो सूट तो सूट, साड़ियां भी कितनी सुंदर हैं।
प्राची – मैं तो बेटी के लिये और अपने लिए सूट लूँगी ।
मानसी – मैं भी दो सूट लूँगी, और सोचती हूँ मम्मी ( सास ) के लिये दो साड़ी भी ले लूँ ।
अरे वाह तू तो बहुत अच्छी है ऑंटी का कितना ख़्याल रखती हो अंकल कि कमी न खलती होगी ।
हॉं यार सबकुछ उन्हीं का तो है ।
ओह यार ढाई बजे गये चल फ़ूड कोर्ट से कुछ खा लें फिर तुझे ड्रॉप करती हूँ ।
मानसी घर पहुंची तो सास बोली – बेटा बहुत देर हो गई पहले कुछ खा लो।
मानसी – नहीं भूख नहीं है।
सास – अरे मैं तो इंतज़ार में बैठी रहीं थोड़ा सा कुछ खा लो।
मानसी – नहीं मम्मी आप खा लिजिये ।
मानसी- मम्मी जी देखिये मैं आपके लिये साड़ी लाई हूँ कैसी हैं ?
सास- अरे इसकी क्या ज़रूरत थी ।
मानसी- देखिये तो।
सास बोलीं – बेहद सुंदर है सफ़ेद और प्रिंट बहुत खूबसूरत है ।
मानसी- और ये ? ये भी सुंदर पर गहरा फ़िरोज़ी रंग लोग न कुछ कहें विधवा होकर गहरा रंग ।
मानसी- ये तो प्रीति को बहुत पसंद आई थी तो ले ली चलो कल बदल लूँगी ।
अगले दिन मानसी – मम्मी ज़रा साड़ियां देना फाल लगने दें आऊँ व दूसरी का रंग बदल लूँ ।
सास दे देती है ।
दूसरे दिन बहू — मम्मी मैं दो दिन के लिये बरेली ( मायके )जा रही हूँ बच्चों को टाइम से स्कूल भेज दीजियेगा और बच्चों का ध्यान रखियेगा समय से खाना खिलाकर ट्यूशन भेज देना ।
चौथे दिन दोपहर में वापस आती है। बोली — मम्मी सफ़र में बहुत थक गई हूँ मैं सोने जा रही हूँ , सुनील ( ड्राइवर) समान उतार लें तो बक्शीश दे छुट्टी कर दीजिये वो भी थक गया है ।
बच्चों को ट्यूशन पाल ( दूसरा ड्राइवर ) छोड़ आयेगा ।
पाँचवें दिन सास बोली – मानवी साड़ियों में फॉल लग गया होगा ले तो आओ ।
मानसी- अरे वो मैं अपनी मम्मी को दे आई आपको पसंद कहॉं थीं ।
सास – और सफ़ेद वाली ? हाँ दोनों दे आई ।
सास चुप ।
रात में खाना खाते वक्त सब साथ होते हैं तब।
मानसी बोली – देखो गौरव मैं तुम्हारी मम्मी के लिये कितने मन से इतनी सुंदर साड़ियाँ लाई और इनको पसंद ही नहीं आई ।
विधवा सास – वाक चेहरे पर स्तब्धता भाव1
गौरव – अरे ज़रूरत क्या थी मानसी तुम लाई ही क्यूँ ? तुम बहुत सीधी हो ।
सुनकर माँ किंकर्तव्यविमूढ़!
(आँखों में आँसू भर आये ।)
माँ निःशब्द!!
(काल्पनिक रचना )