तेज बीर सिंह सधर, दसुया (पंजाब)
जब तक गुरुकुल व्यवथा से शिक्षा दी जाती थी, विद्यार्थी अपने गुरुओं के आदर्श पर चलते थे. उस दौर में नशीले पदार्थों का सेवन तो क्या, उनकी सोच भी उनके मस्तिष्क में नहीं आती थी. साथ में शिक्षा ग्रहण करते बालक और बालिका बहन भाईयों की तरह व्यवहार करते थे. समय के साथ खान-पान में बदलाव हुआ जिसने इक्कीसवीं सदी आते आते उनके व्यवहार में सोचनीय बदलाव आने लगे. लड़के लड़कियां बहुत कम उम्र में ही युवा होने लगे. फलस्वरूप, कालेज में दाखिला लेते ही एक चमकती हुई दुनिया उनके सामने थी.
व्यावसायिक शिक्षा में वैश्वीकरण होते ही छात्र-छात्राएं एक दूसरे के नजदीक होते चले गए. सहशिक्षा के चलन और आधुनिकीकरण के बीच दोनों में मेल मिलाप बढ़ने लगा. इस कारण आपस में प्रेम व्यहवार भी आसान हो गया. पब्स और होटल कल्चर बढ़ने से छात्र- छात्राएं एक दूसरे से स्वछंद प्रेम व्यहवहार में ज्यादा रूचि लेने लगे. स्वछन्द विचरण के कारण दोनों में प्रेम सम्बन्ध स्वाभाविक तौर पर बढ़ने लगे.
इसी बीच पब्स और होटल कल्चर के फैलाव में ड्रग्स के नशे और शराब ने अपना प्रवेश तेजी से करना शुरू कर दिया. ड्रग्स, सिगरेट, शराब और दूसरे नशीले पदार्थों की आसान उपलब्धता ने प्रेम या स्वाभाविक आकर्षण को एक शौक या स्टेटस सिम्बल के तौर पर पेश किया.
कालेज या व्यावसायिक संस्थानों में हर जगह छात्र-छात्राएं जोड़े के रूप में दिखाई देने लगे. विवाहपूर्व शारीरिक सम्बन्धों ने दोनों में प्रेम में विफलता भी दिखाई देने लगी. इसके कारण हैपी एंडिंग के साथ साथ ब्रेक अप के भी मौके दिखाई देने शुरू हो गए.
छात्र छात्राओं का कालेज में ही मिलना जुलना बुरा नहीं है और न ही सहशिक्षा बुरी है लेकिन भारतीय संस्कृति के दायरे में रहते हुए ही इसे स्वीकार किया जा सकता है. निश्चित रूप से ड्रग्स और विद्यार्थी जीवन में अपनाये गए शारीरिक सम्बन्धों ने सात्विक प्रेम में आग में घी का काम किया है और हैपी एंडिंग में भी ग्रहण लगाया है.
इस प्रकार, आज की इक्कीसवी सदी के छात्र-छात्राएं समय के दुष्चक्र में फंसते जा रहे हैं. नशे का दलदल उन्हें लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा. ऐसे में शिक्षण संस्थाओं का दायित्व है कि कालेजों में नैतिक शिक्षाओं का प्रचार प्रसार करे.
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