कांटों के बीच खिला गुलाब
हमने अपने दर्द को अपनी मुस्कान तले दबा रखा है
और दुनिया सोचती है कि हमें कोई दर्द नहीं होता!
यह बात लागू होती है – हमारे पैतृक गांव के निवासी जमना प्रसाद पर! मैंने उन्हें 1970-80 के दशक में देखा था। उनकी जिंदगी में दर्दों की कमी नहीं थी।
शादी एक दिव्यांग महिला से हुई थी। कोई संतान हुई नहीं। खेती-किसानी का काम। झोपडी नुमा घर में रहते थे। आय बेहद कम! अतिरिक्त आय के लिए बकरी पालन का काम! लेकिन जैसे कांटों के बीच गुलाब खिला रहता है वैसा ही जमना प्रसाद का स्वभाव!
जब भी बकरियां चराने निकलते पूरे गांव में खुशी की लहर दौड जाती। वे अपनी मनोरंजक बातों और हरकतों से तमाम तरह के दर्द झेल रहे ग्रामवासियों के चेहरे पर मुस्कान ला देते। उनकी हास्यास्पद और चुटीलेपन से भरी हरकतें देखकर हम हंस-हंस कर लोटपोट हो जाते।
गांव वालों के लिए उनके चुटकुले मरहम जैसा काम करते थे। धीरे-धीरे जमना ने अपने आप को आगे बढाया। आय के नए-नए स्रोत निकाले।
मैंने ऐसा सुना था कि उन्होंने तीन दशक पहले अपने भांजे की शादी में एक लाख रुपये खर्च किए थे। खुद लाखों दर्द झेलकर कई लोगों के चेहरे पर मुस्कान लाने वाले जमना मुझे सदा याद रहेंगे।
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बंसी कक्का
मेरा कहना यह है कि कोई भी आम इंसान भलमनसाहत ओर इंसानियत की राह पर चलते हुए अपनी जिंदगी से महानता का परिचय दे सकता है। इसके लिए कोई आवश्यक नहीं है कि वह व्यक्ति कोई सेलिब्रेटी हो या महापुरुष हों।
मुझे एक ऐसे ही आम इंसान की महानता याद आ रही है। वह थे. हमारे पैतृक गांव रेवई के निवासी बंसी कक्का। मैंने उन्हें 1970.80 के दशक में देखा था।
गांव वालों के लिए वह छोटी जात के थे पर मेरी नजरों में उनके कई काम ऐसे थे जो उंची जाति वाले करने में भी उनके सामने उन्नीस ही साबित होते थे। चाहे ठंड हो या गर्मी, बसंत हो या बरसात हर मौसम में उनकी रुटीन एक जैसी रहती।
रोज सुबह जब हम नींद के झोंकों के तले सपने देख रहे होते तब वह चार बजे तडके के आसपास पास के कुए पर नहाने जाते. प्रभु का नाम जोर.जोर से बोलते हुए। फिर स्नान ध्यान के बाद अपने खेतों पर काम करने निकल जाते। वह जबर्दस्त साफ.सफाई से रहते और अपने आसपास के इलाके को भी साफ.सुथरा रखते थे।
वह निस्संतान थे। वह ज्यादा पढे.लिखे नहीं थे लेकिन उन्होंने अपने भांजे.भतीजों को पढाने के लिए खेती से हो रही खून.पसीने की कमाई से खर्च करने में कोई कसर नहीं छोडी। वह न केवल अपनी पत्नी और परिजनों का खयाल करते बल्कि अन्य गांव वालों के सुख.दुख में भी काम आते।
वह देसी इलाज करने में माहिर थे। चाहे बिच्व्छू काटने से जहर फैलने का मामला या बालतोड फोडा होने की तकलीफ! वह एक से एक उपाय करके पीडित व्यक्ति को राहत पहुंचाते। इसके लिए कभी कोई फीस भी नहीं लेते।
वह मनोरंजक व शिक्षाप्रद कहानियां सुनाकर हम सबको सच्चाई और ईमानदारी की राह पर चलने को प्रेरित करते। मैंने कभी उन्हें दूसरों के सामने हाथ फैलाते नहीं देखा और न ही किसी तरह के विवादों में उलझते हुए देखा।
ऐसे लोग सच में दुर्लभ ही होते हैं!