रचनाकार : सुशीला तिवारी पश्चिम गांव, रायबरेली
देवी आराधना
इस मानव जीवन का , मूल मंत्र है योग साधना,
आओ सब मिलकर करें ,देवी मां की आराधना ।
देवी मां की कृपा द्रष्टि से बदले जीवन की धारा ,
वो ही जग की पालन कर्ता , हर लेती दुख सारा ।
महिषासुर का मर्दन कर, शुम्भ निशुंभ को मारा ,
कालजयी मां कालरात्रि, कर दो कल्याण हमारा।
भक्त खड़ा मां दर पर तेरे लेकर आशा की झोली,
भर दो मइया सुख शान्ति सब हे ! माँ मैहर वाली ।
सदा ही रक्षा करी भक्त की बल बुद्धि विद्या देकर,
सही दिशा दिखला दो माता , लगे न दुख ठोकर ।
हम है मैया बालक तेरे राह भटक कर अब आये ,
कृपा द्रष्टि बरसाओ माता जीवन सफल हो जाये।
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नारी तू नारायणी
नारी तू नारायणी है , तुझसे ही जहान है,
तू ही आधार जगत की तेरी ममता महान है ।
तू ही दुर्गा , तू ही काली , तू ही मीरा, राधा है,
तुझसे है पुरुषत्व पुरूष का वरना वो आधा है।
चंद्र सी है शीतलता तुझमें सूरज सा है तेज ,
ममता-करूणा हृदय में शान्त सरल परिवेश ।
हर रिश्ते में बांधती खुद को हो जाती सम्पूर्ण,
नारी बिन “नारायण” भी हो जाते हैं अपूर्ण ।
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जीवन मंथन
नित सुबह – सवेरे उठकर उस परम ब्रम्ह का वंदन ।
फिर क्या खोया क्या पाया करते #जीवन का मंथन ।।
ये जीवन तो दुःख का सागर पर इससे क्या घबराना ,
थोड़ा समझ – बूझ कर चलना फिर पार उतर जाना ।
चलते- चलते जीवन में थके कुछ भी हांथ न आया,
अंत में पश्चाताप हुआ ये “जीवन” क्यों व्यर्थ गंवाया ।
परिवार में खुद को खपा दिया ये मेरी ही नादानी ,
मोह के बस न समझ सके ये काया तो आनी-जानी ।
ध्यान करो उस ईश्वर का जो मोक्ष द्वार तक ले जाये ,
इस जीवन रूपी नइया की पतवार जो बन कर आये।
हम तो मूढ मनुज धरा के हम क्या मंथन कर पायेंगे,
वो परम पिता “परमेश्वर है जहां भेजेगा वहाँ जायेंगे ।