रचनाकार: शबनम मेहरोत्रा, कानपुर
दूरी सही न जाए ( गीत )
दिल की लगी कही न जाए
उनसे ये दूरी सही न जाए
जब से वे परदेस गए हैं
चैन भी मन का लेते गए है
शीतल शांत हमारे मन में
विरह अग्नि जलाते गए है
डर है पांव से गही न जाए
उनसे ये दूरी सही न जाए
दिन का यह उजियारा भी
मुझको काली रात लगे
सारी दुनिया लगे पराई कोई
न अपना साथ लगे
कोई कहानी गहीं न जाए
उनसे ये दूरी सही न जाए
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नजरें मिलाते नहीं (गजल )
आज कल हमसे नजरें मिलाते नहीं
सपनों में भी वो अब पास आते नहीं
झूठ उनका मैं पहले समझ न सकी
जब से समझी हूँ वो आते जाते नहीं
आँसुओं की अब कीमत समझ आ गई
वो तो पहले से ही आँसू बहाते नहीं
बात कर कर के वो मुझसे थकते न थे
भूल कर अब फोन मेरा उठाते नहीं
जैसे शबनम को उसने भूला ही दिया
उस तरह हम किसी की भुलाते नहीं
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ठोकर लगी तो (गजल)
ठोकर लगी तो अपनी ये आदत चली गई
गोया की मेरे सर से ये आफत चली गई
वो अपनी बात कहने को चक्कर लगाते थे
मेरी निगाह उठ्ठी तो हिम्मत चली गई
सच्चाइयों का साथ भला छोड़ती कैसे
जानेंदो सच के वास्ते दौलत चली गई
अपने वकार के लिए मै कुछ भी करूँगी
कहने दो लोग कहते है किस्मत चली गई
अब भी तो दोनों प्यार में आँसू बहाते है
शबनम वो कह रहे है मोहब्बत चली गई
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शरमाती आँखें (गजल)
अपनो से है शरमाती आँखें
झुक कर के मुस्काती आँखें
थोड़ी हृदय पर चोट लगी तो
बरबस आँसू बहाती आँखें
हद को किसी ने पार किया तो
हो कर लाल दिखाती आँखें
प्यार के चक्कर में खुद पड़ के
इधर उधर भटकाती आँखें
ढेरों ही दिलफेंक आशिक को
बीच राह पिटवाती आँखें
शबनम इससे क्या बोलूँ मैं
ये क्या है लिखवाती आँखें
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अलौकिक प्रेम (गीत)
अलौकिक प्रेम प्रिय,,,,
अलौकिक है प्रेम प्रिये जनम जनम का बंधन है।
इसीलिए तो हर जन्मों से मैं सजनी तू साजन है ।
हीर और रांझा लैला मजनूँ रोमियो जूलियट हम ही थे
जहाँ मिले थे पूर्वजन्म बन राधा कृष्ण यमुना तट पे
वही आत्मा वही भावना रूप में बस परिवर्तन है
इसीलिए तो हर जन्मों से मैं सजनी तू साजन है
पुनर्जन्म की ये मान्यता गीता में बतलाए हैं
उसीसे प्रभावित होकर हम धरा पर मिलने आए हैं
भारत माँ की गोद में खेले कितना पावन आंगन है
इसीलिए तो हर जन्मों से मैं सजनी तू साजन है
अमर प्रेम अपना है शबनम ये दुनिया दोहरायेगी
पुस्तक में भी आने वाली पीढ़ी यह पढ़ पाएगी
अमर प्रेम का गीत ही गढ़ना हम दोनों का जीवन है
इसीलिए तो हर जन्मों से मैं सजनी तू साजन है