रचनाकार : सुशीला तिवारी, पश्चिम गांव,रायबरेली
दिले गुलशन मेरा फिर आके संवारे कोई (गजल)
दिले गुलशन मेरा फिर आके संवारे कोई ।
लेके मेरा नाम मुझको फिर से पुकारे कोई ।।
थक कर मेरी ज़िन्दगी लड़खड़ाने लगी अब,
इस तरह मजबूर तरीके से न हारे कोई ।
हालात का मारा हूँ मैं कोई बेगैरत तो नही ,
मेरी नजरों में आके देखे , तो नजारे कोई ।
जिंदगी डूब चुकी गम के समन्दर में मेरी ,
मजबूर – ए हालात है मेरे, संवारे कोई ।
हालात बदल गए अब तो गम का मंजर है ,
शब्दों के चला तीर”सुशीला”को न मारे कोई ।
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खंजर अजीब था (गजल)
रानाइयों ने मारा ,,,,,,,,,,,,,,खंजर अजीब था ।
की साजिशें उसी ,,,,,,,,,,,,,,ने जो रकीब था ।।
दीवार उठ गई थी,,,,,,,मुहब्बत के बीच में ,
गिर सकी न फिर कभी, आशिक गरीब था । 1)
डोली उठी हमारी जब,,,,,सब बिछड़ गये ,
वो दूर हो गया पर,,,,,,,, दिल के करीब था । 2)
कीमत रहे बताते ,,,,,,,पानी की होती क्या ,
बोतल में बिक रहा था ,,,,,प्यासा गरीब था । 3)
मेरा प्यार जा रहा ,,किसी अजनवी के संग ,
मैं कुछ न कर सका ,,,,,,ये मेरा नसीब था । 4)
यादें दबा कर दिल में ,,,,,,,कर दिया दफन ,
अब दिल जल रहा है,,,,, समन्दर करीब था ।5)
सोंचा था इक गजल ,,मैं भी लिखूं मुकम्मल,
पर काफिया न आया,,,,,,, केवल रदीफ था । 6)
“सुशीला”बताऊँ कैसे दास्तान- ए मुहब्बत,
मिले, फिर बिछड़ गये ,,किस्सा अजीब था । 7)
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बेकार हो गये (गजल)
जब से पीने वाले दो चार हो गये ।
मयखाने इस शहर के बेकार हो गये । ।
वो मानते नही फिर भी हम कहेंगे,
इतना तुमको चाहा दिल दार हो गये । 1)
इतना बढ़ा था उनका दबदबा यहाँ ,
थे कभी मुलाजिम सरकार हो गये । 2)
शिकवा गिला हमने उनसे न किया ,
अब हमारे जीवन आधार हो गये । 3)
दी सारी चीजें जो काम की नही थी ,
पर हमारी खातिर उपहार हो गये । 4)
इतना प्यार आया”सुशीला”उन पर ,
प्यार से भी प्यारे वो प्यार हो गये ।5)
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सुकून ढूँढता रहा
सूकून जिंदगीभर ढूँढता रहा मैं जिन्दगी के साथ,
रास्ते में गम मिल गया एहतराम के साथ।
दर्द जमाने से मिला तो शिकायत क्या करना,
प्रेम ही कब मिला मुझे मेरे अपनों के साथ।
अंधेरा बहुत गहरा है पर रोशनी से डरते है,
दोस्ती बहुत पुरानी है मेरी अँधेरों के साथ।
तुम हैरान मत होना मेरी बर्बादी को सुनकर ,
अक्सर यही होता है एक नेक आदमी के साथ।
खुशी की दरकार तिवारी,क्यूं जब नसीब में नही,
ईश्वर कहां करता है इन्साफ ईमानदारी के साथ।
सुकून जिंदगी भर ढूँढता रहा मैं जिन्दगी के साथ ।
रास्ते में गम मिल गया था एहतराम के साथ ।।
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ये दर्द है हमदर्द मेरा
ये दर्द भी
बन जाता है हम दर्द मेरा
इससे तो हमारा रिश्ता है घनेरा,
ये एक सहमा सा अहसास है,
जो रहता हरदम हमारे आस-पास है।
जब से होश संभाला है
पड़ गया इससे हमारा पाला है,
दर्द ने हमेशा बखूबी साथ दिया है,
एक हम हैं कि कुछ न इसको दिया है।
कभी अलग नही होता जुड़ गया मेरी कहानी से,
मेरी समझदारी कहिये या मेरी नादानी से,
बहुत कोशिश की हटाने की पर नाकाम रहे,
उम्र भर जंग ठनी और लड़ते रहे।
पर दर्द न गया मेरे जीवन के फ़साने से ,
ये चुपके से आ ही जाता है किसी बहाने से,
इन चलती हवाओं की तरह है ये दर्द,
दिखाई दही देता पर असर बड़ा है सर्द,
बस हम ही बेखबर हैं नही है कुछ आभास,
ये है एक सहमा सा अहसास ,
दर्द का !