चैप्टर – 3
ऐसी बातचीत राजसमंद के इस परिवार में अक्सर होती रहती थी। न स्मिता को कोई रास्ता सूझ रहा था और न ही उसके बच्चे बड़े होने के बावजूद उसकी कोई मदद करते थे। विनायक ने खुद को एक प्राइवेट आफिस में सेक्शन आफिसर के रूप में समर्पित कर रखा था। उसके पिता जगदीश्वर और मां नर्मदा देवी भी साथ ही रहती थीं। स्मिता के पापा लखनउ के सचिवालय में अपनी सेवाएं देने के बाद रिटायर्ड जीवन बिता रहे थे। सब अपनी—अपनी दुनिया में मगन रहते थे। स्मिता अपनी जिंदगी में आगे बढ़ना चाहती थी पर ससुराल वालों और अपने मायकेवालों से भी पर्याप्त सपोर्ट न मिल पाने से उसकी तमाम ख्वाहिशें अधूरी सी रह गई थीं। विनायक की स्मिता से अपेक्षा यही रहती थी कि वह बस, घर—गृहस्थी ठीक से संभाले रहे। लेखन वगैरह में समय बर्बाद नहीं करें। उसका मानना था कि वह इतना तो कमा ही रहा है कि स्मिता को कमाई करने की जरूरत नहीं है। वह यह भी चाहता था कि स्मिता उसके बूढ़े तथा डायबिटीज और हार्ट संबंधी बीमारियां झेल रहे माता—पिता राजरानी देवी और देवेंद्र सिंह का खयाल रखे। उनकी सेवा—टहल समय—समय पर करती रहे। उनकी दवाइयां आदि ला दिया करे। विनायक की सोच थी कि कमाना घर के पुरुषों का काम है और औरतों को बस घर और परिवार की जिम्मेदारी संभालनी चाहिए।
पर समय कब एक सा रहता है। स्मिता के जीवन में हुई एक घटना ने,जिसे दुर्घटना कहना ज्यादा उपयुक्त होगा, सब कुछ उलट—पुलटकर रख दिया। उस दिन विनायक अपने टू—व्हीलर से घर वापस आ रहा था। तभी एक बाइक वाले ने उसकी बाइक को टक्कर मार दी। विनायक के सिर पर पहने हेलमेट का फीता टूट गया और हेलमेट दूर छिटक कर गिर गया। विनायक लहू—लुहान होकर रोड पर गिर पड़ा। उसकी किस्मत अच्छी थी कि दुर्घटनास्थल पर जमा हुए कुछ लोग अच्छे स्वभाव के थे। उन्होंने इस दुर्घटना का वीडियो बनाकर वायरल बनाने के बजाय सरकारी आरएस अस्पताल को फोन लगाकर एंबुलेंस बुलवा ली और उसे आईसीयू में भर्ती करा दिया।
जब स्मिता और उसके घरवालों को विनायक के दुर्घटनाग्रस्त होने का पता चला तो उन्होंने अस्पताल में ही डेरा डाल लिया और विनायक की जिंदगी बचाने के लिए खून देने से लेकर, डाक्टरों के चक्कर काटने, दवााइयों—मरहमपट्टी आदि का इंतजाम करने में अपनी पूरी उर्जा लगा दी। करीब एक महीने के बाद विनायक की हालत कुछ सुधरी तो डाक्टरों ने उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया। साथ ही उसे एक साल तक घर पर आराम करने को कहा ताकि हाथ और पैर में हुआ फ्रैक्चर पक्के पलस्टर के खुलने के बाद ठीक हो सके।
हाथ और पैर में फ्रैक्चर के कारण विनायक का आफिस का कामकाज प्रभावित होने लगा। उसके आफिस वाले एक महीने तक बिना काम के सैलरी देते रहे पर अगले महीने से उन्होंने विनायक की सैलरी आधी कर दी। अब घर—गृहस्थी चलाना मुश्किल हो गया। विनायक की सैलरी के दम पर रोज बासमती चावल खाने वाला परिवार सस्ते चावल खाकर गुजारा करने लगा।
स्मिता को यह सब पसंद नहीं आ रहा था। उसे विनायक को तो देखना ही था साथ ही पूरी फैमिली को भी संभालना था। उसने चित—परिचित लोगों से कह सुनकर रतन की नौकरी कूल डाउन कंपनी में लगवा दी। जब रतन की नौकरी से आय बढ़ने लगी तो स्मिता ने घर के काम—काज के लिए एक बाई रख ली और खुद लेखनकार्य करने को समय देने लगी। पीड़ा की मुश्किलों से भरी घाटी से निकला उसका साहित्य धीरे—धीरे नई उचाइयां छूने लगा। पहले वह रोज एक—दो पैराग्राफ ही लिख पाती थी। पर कुछ समय में आदत बन जाने के बाद वह हर रोज एक कहानी लिखने लगी। उसे वह स्थानीय अखबारों या दिल्ली के अच्छी पत्र—पत्रिकाओं में छपने भेज देती। धीरे—धीरे उसकी लेखनी ने गति पकड़ ली और वह रागिनी को डिक्टेट करके उसके लैपटाप पर कहानियां लिखवाने लगी।
क्रमशः (काल्पनिक कहानी )