चैप्टर – 2
सुबह—सुबह फोन पर हो रही यह गरमा—गरम बहस इससे पहले कि और तूल पकड़ लेती कि स्मिता को उसके पति विनायक ने आवाज लगाकर उसमें बाधा डाल दी। वह आफिस जाने की तैयारी में था और उसे अपना मोबाइल फोन नहीं मिल रहा था। वह झल्लाते हुए बोला ।
विनायक — स्मिता! देखो न मेरा मोबाइल फोन नहीं मिल रहा है। तुमने कहीं देखा है, क्या?
स्मिता — अब आपसे इतना भी नहीं हो सकता कि रतन के मोबाइल फोन से अपने मोबाइल फोन पर रिंग दे दो। फौरन पता चल जाएगा कि आपका मोबाइल फोन कहां है। तैश से भरी स्मिता ने जैसे—तैसे अपने को संभालते हुए कहा।
आखिरकार रतन का मोबाइल फोन लेकर विनायक के मोबाइल फोन पर स्मिता ने घंटी दी। तब कहीं जाकर पता चला कि विनायक का मोबाइल फोन उसी के बेड के तकिए के नीचे दबा हुआ है। विनायक फोन मिलते ही आफिस जाने की तैयारी में लग गया।
इस बीच, स्मिता ने फोन को होल्ड पर रखते हुए विनायक से कहा — सुनिए! जरा किचन में देखना। मैंने कुकर में छोले चढ़ा रखे हैं। सीटियां गिन लेना।
विनायक — अब वो तुम देख लेना। यदि मैं छोलों—शोलों में उलझा रहा तो आफिस में देर से पहुंचने पर बॉस की डांट सुननी पड़ेगी । और वह जूते पहनने में लग गया। स्मिता ने फोन झुंझलाकर पटक दिया और किचन की तरफ भागी। छोले जरूरत से ज्यादा देर तक चढ़े रहने के कारण बिलकुल गल गए थे। उसने जैसे—तैसे विनायक को टिफिन बनाकर दिया। इसके बाद विनायक जल्दी—जल्दी आफिस निकल गया।
अब रतन की बारी थी। वह स्मिता के पास आया और बोला— मम्मी! मम्मी आज मैं कूल डाउन कंपनी में इंटरव्यू देने जा रहा हूं। यह कोल्ड ड्रिंक बनाने वाली कंपनी है। मेरे फ्रेंड आरके के मामा इसके जनरल मैनेजर हैं। इस बार तो अपना सलेक्शन पक्का समझो। उसकी नरम स्वर में कही गई बातो से स्मिता को कुछ सुकून मिला। वह कुछ पिघलते सुर मे बोली — बेटा! ये अच्छी बात है। भगवान करे यह नौकरी तुम्हें मिल जाए। बेटा! इंटरव्यू अच्छे से देना और अपनी फाइल अच्छे से जमाकर ले जाना।
फाइल शब्द सुनकर रतन को कुछ याद आया। वह परेशान से स्वर में बोला— मम्मा! मेरी फाइल तैयार नहीं है। मैंने अपने फूड एंड कैटरिग के कोर्स का डिप्लोमा कहां रख दिया है, याद नहीं आ रहा है। आप उसे ढूंढ दो न, प्लीज! यह सुनकर स्मिता की त्योरियां फिर चढ़ गईं। वह गुस्से में बोली ।
स्मिता — अब तुम भी मुझे परेशान कर लो। साहब को अपना मोबाइल नहीं मिलता और उनके साहबजादे डिप्लोमा कहीं रखकर भूल जाते है। जाने कैसी आदतें बना रखी हैं। मां—बेटे में छोटी सी गरमागरम बहस के बाद स्मिता ने ही रतन का डिप्लोमा सर्टिफिकेट ढूंढ कर दिया। वह उसे लेकर इंटरव्यू देने चला गया।
इसके बाद स्मिता का ध्यान रागिनी की तरफ गया। वह अपने लैपटॉप को लेकर बैठी थी और कानों मे हेडफोन लगा रखा था। उसे घर मे सुबह से क्या चीख—पुकार मची है, स्मिता परेशान क्यों है, भइया घर में है या बाहर चला गया है, कुछ पता ही नहीं था। जब स्मिता ने उसे दो—तीन आवाजें लगाकर झिझोड़ा तब वह चैतन्य हुई। अजीब सी नजरों से घूरती हुई बोली
रागिनी — क्या हुआ मम्मी? उसके इस सवाल को सुनकर स्मिता को और गुस्सा आ गई वह रोष के साथ बोली
स्मिता — भले ही पूरी दुनिया इधर से उधर हो जाए पर इन राजकुमारी साहिबा को कुछ पता ही नहीं है! न तो यह पता है कि घर में कौन आया,कौन गया? न ही यह मालूम है कि घर में झाडू—पोंछा हुआ कि नहीं? जाने आजकल के बच्चे कैसे हो गए हैं? मम्मी के काम—काज में हाथ बंटाना तो उन्होंने जैसे सीखा ही नहीं। भले ही मां काम करते—करते, घर—गृहस्थी का बोझ ढोते—ढोते टूट जाए।
रागिनी ने देखा कि मम्मी का पारा हाई है तो वह लैपटाप छोड़कर अपने कमरे में झाडू लगाने चली गई।
क्रमशः (काल्पनिक कहानी )