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रचनाकार : सुशीला तिवारी पश्चिम गांव,रायबरेली
तुम कहो अयोध्या वासी
खुद को न्योछावर कर बैठा
वो नीति धर्म अभिलाषी।
फिर कैसी कुंठित मनोदशा
तुम कहो अयोध्या वासी ।।
कहो कैसी कहाँ पर भूल हुई ,
क्या समय मेरा अनूकुल नही,
क्यों मुझको धूल चटा दी ,
तुम कहो अयोध्या वासी ।
निज जीवन किया समर्पण ,
प्रभु को बिठाया आसन पर ,
ये सोंच लाज न आती ,
तुम कहो अयोध्या वासी।
वीर अकेला खड़ा रहा
जनमत का ही सहारा था
जिन पर बड़ा विश्वास किया
बस अपनो से हारा था,
फिर क्या मथुरा और काशी,
तुम कहो अयोध्या वासी।
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यादे
वक्त के साथ
ये यादे धुंथली क्यों हो जाती है
धीरे धीरे खोती ही जाती हैं
क्या इनमें भी होता है परिवर्तन
और बदल जाता है दिल और मन
कहाँ खो जाता है बचपन,
खेल गुड़िया का,रूठना मनाना सखियों का,
वो अल्हड़पन वो इतराना सौंदर्य रूप पर
वो निगाहों से बाते,वो राहो का तकना ,
किसी भी बहाने से जाकर वो मिलना,
फिर सुंदर से ख्वाब सजाना
जरा सी बात पर दिल धड़क जाना
पर अब उम्र के साथ
सबकुछ छोड़कर बदलाव आ जाना,
क्या सही मायने में
बदलता हुआ
यही जिंदगी का रूप है।
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तकती रही
एक आहट सी दिल में मचलती रही।
रात खामोशी से बस चांद तकती रही।।
जैसे कोई नदी अल्हड़ सी कामिनी,
यूँ सितारों ने छेड़ी है मधुर रागिनी ,
हाँथ रह – रह कर मैं बस मलती रही ।
रात खामोशी से यूं चांद तकती रही।।
और उदासी की रंगत रही रात भर ,
जैसे फूलों पर कांटो का पहरा रहा ,
टोली भंवरों की पर गुनगुनाती रही ।
रात खामोशी से बस चांद तकती रही ।।
सरसराहट ने पत्तों की कुछ कहा ,
कालिमा रात की भी कुछ कह गई ,
दिल की गलियों में यादें मचलती रही ।
रात ख़ामोशी से बस चांद तकती रही ।।
सरसराहट ने पत्तों की कुछ कहा ,
कालिमा रात की भी कुछ कह गई ,
दिल की गलियों में यादें मचलती रही ।
रात ख़ामोशी से बस चांद तकती रही ।।
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पहले जैसे गाँव न रहे
अब पहले जैसे गाँव न रहे
वो भी शहर की तर्ज पर चलने को मजबूर हैं,
क्योकि आज कल दिखावे का दौर चल पड़ा है ।
आधुनिकता की दौड़ में गाँव अपना स्वरूप खोता चला ज रहा है।
कारण जहां पर हरे भरे खेत और पेड़ हुआ करते थे,
वहाँ पर कारखाने और मशीन हो गए
इन्सान भी मशीनीकृत हो गया है।
पहले हमारे बचपन के दौर में कच्चे घर दरवाजे पर हरियाली से झूमते नीम के पेड़ हुआ करते थे।
अब गाँव से हरियाली विलुप्त होती जा रही है।
लोग शहर की तरफ भाग रहे है पर शहर से ज्यादा सुकून गाँव में कभी बसता था ।
शाम को दरवाजे पर सबका मिलकर इकट्ठा होना
कुएं पर लहलहाते पेड़ ,पास में मंदिर पानी भरती हुई पनिहारन ,हर तरफ खेतों की सुन्दरता
अब सब गायब हो गया बस आधुनिकता की दौड़ में भाग रहे हैं।
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जगत ये मतलब का यार
जगत ये मतलब का यार ,
प्रेम करो उस परमेश्वर से
हो जाये बेंडा पार।
कौड़ी कौड़ी माया जोड़ी,
ढ़ेर लगाया अंबार ।
महल दुमहले खूब बनाये,
सोया पैर पसार ।
पिता,पुत्र और पत्नी,भाई,
जिनसे मोह अपार।
अंत समय काम न आये
सब छोड़ चले संसार।
Shivika means palanquin and Jharokha means window. We have prepared this website with the aim of being a carrier of good thoughts and giving a glimpse of a positive life.
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One Comment
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Bahut hi sundar