रचनाकार: शबनम मेहरोत्रा, कानपुर
तिरंगा झंडा
नील गगन में जब से तिरंगें झंडे को फहराया है ।
खून शहीदों ने दे दे कर रंग इसको गहराया है ।
इसको दो गज भर कपड़े का मामूली टुकड़ा न समझो
यही हमारे गौरव और क़ुर्बानी का सरमाया है ।
इसका रंग धूमिल हो इस से पहले वीर जवानों ने
कई बार दुश्मन के तोपों से सीना टकराया है
जिसको युद की मंशा हमसे पूछो मेरे पड़ोसी से
उसकी शक्ति मिली धूल मे जब जब वह टकराया है
दुश्मन की सारी शक्ति को ईंट से ईंट बजा देँगे
गर भिक्षा में पाए हुए हथियारों पर इतराया है
कश्मीर भारत का अंग है “शबनम”इसे न छोड़ेंगे
अपने शहीदों से यह ज़ज़्बा संस्कार में पाया है ।
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आजाद वतन (गीत)
आजाद वतन ये अपना है
आजाद वतन ये अपना है
चिड़ियों की चहक फूलों की महक
आजाद चमन ये अपना है
यहाँ हिंदू मुस्लिम सिक्ख ईसाई
मिल कर रहते हैं जैसे हो भाई
हर घर में जैसे खिचखिच है
वैसे ही यहाँ बस झिकझीक है
नहीं ये दुश्मन अपना है
आजाद चमन ये अपना है
इधर हाल के वर्षों में सत्ता के पुजारी ये नेता
स्वघोषित बन बैठे हैं अपने धर्मो के प्रणेता
मौसम जब आता चुनाव का
वातावरण होता तनाव का
शांत आंगन ये अपना है
आजाद चमन ये अपना है
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अपने वतन में (गजल)
क्या क्या न हुआ, हो रहा है अपने वतन में
गुलचीं ने खेला रोंधने का खेल चमन में
लूटने वालों ने यह पर ऐसी लूट मचादी
लूट लिया कपड़े जो लिपटी थी कफन में
मंजिल हमारे कदमों के कुछ पास खड़ी थी
पा न सके शायद कुछ कमी रही लगन में
हम कहते हैं कुछ और पर करते हैं कुछ और
फिर भी ये दावा करते बड़ा दम है वचन में
शबनम यही एक विनती मेरी है मेरे भगवन
जब अंत समय आए तब ले लेना शरण में
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रात भर (ग़ज़ल)
मेरी यादें कसकती रही रात भर
वो न आए तरसती रही रात भर
रात गुज़री मेरी करवटें ले ले कर
चूड़ियाँ भी खनकती रही रात भर
नींद आती तो आती मुझे किस तरह
बिजलियाँ चमकती रहीं रात भर
क्या बताऊँ किस बैचेनी में रात बीती
भावनाएँ लरजती रहीं रात भर
ये करिश्मा है उनकी नज़र का लगा
मेरी आँखें तरसती रहीं रात भर
मैं बिखरती नहीं शबनम जाने वो
वास्ते उनके बिखरती रही रात भर
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शंकर आँखें खोल (गीत)
हे शिव शंकर आँखें खोल,, हे शिव शंकर आँखें खोल
दुखियारी तेरे द्वार खड़ी है देने धीरज कुछ तो बोल
न चाँदी न सोना माँगूँ ना यश
का ही दान
बस इतना ही देना प्रभु जी तुम
से हटे ना ध्यान
मैं हूँ अकींचन दुर्बल नारी नहीं पूजापे से तू तौल
दुखियारी तेरे द्वार खड़ी है देने धीरज कुछ तो बोल
कर में कमल का पुष्प ले आई
और नहीं है थाल
और तुम्हारे भक्त के जैसा नहीं
गर्व भरी चाल
दुख से बरसे नैन हमारे प्रभु दया कर मुझ पर डोल
दुखियारी तेरे द्वार खड़ी है देने को धीरज कुछ तो बोल