चैप्टर-4
साहिल यह खबर सुनकर चिंता में पड़ गए और बोले — जब किशोर कुछ करता—धरता ही नहीं है तो तुम्हारे पापा यह व्यर्थ का जंजाल क्यों पा रहे हैं? उन्हें किशोर को तो झेलना पड़ ही रहा है। अब उसकी बीबी के और खर्चे उठाने होंगे। सच में बिना सोचे—समझे सब काम करते हैं, ये लोग। फिर अपना भी हाथ तंग है। घर की किश्तें भरनी हैं। पिताजी के इलाज में करीब 50 हजार रुपये का खर्चा पड़ गया। मैं तो इसी चिंता में था कि कहीं से उधार—वुधार न लेना पड़ जाए। पर भगवान की दया से अपनी जमा—पूंजी से ही सब जुगाड़ हो गया।
सुनिधि — मैं भगवान को पूजा—पाठ करके मना लूंगी कि अपने उपर कभी लोन का साया भी नहीं पड़े। छोड़ो ये सब बातें। अपन तो कोटा जाने की तैयारी करते हैं।
साहिल— ठीक है! हां, पर जाने से पहले अपने को वो गहनों वाला संदूक हिफाजत से रखकर जाना होगा। चलो तुम संदूक उतारो। हम इसे चेक करके और अच्छी तरह से सीलबंद करके अपने विश्वस्त पड़ोसी दिवाकर यादव के यहां रख देंगे।
साहिल की यह बात सुनकर सुनिधि को मानो काटो तो खून नहीं। उसने मन ही मन सोचा कि उसने साहिल को तो गहनों को गिरवी रखे जाने के बारे में बताया ही नहीं है। वह क्या बोलेगी? उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। घबराहट के मारे बुरा हाल था। चेहरे की हवाइयां उड़ रही थीं। उसने जल्दी से एक गिलास पानी गटका और साहिल को कुछ बताने के लिए उसके होंठ फड़फड़ाने लगे। उसके मुंह से टूटी—फूटी आवाज निकली — वो वो ये ये वो गहहहह
साहिल ने थोड़े कड़े स्वर में कहा — क्या ये वो लगा रखा है? साफ—साफ बताओ न! क्या हुआ?
सुनिधि ने जैसे—तैसे अपने को संयत करके किशोर द्वारा कोटा से आकर उसके गहनों को गिरवी रखे जाने की पूरी दास्तान साहिल के सामने उगल दी। साहिल हैरान था।
जब उसके पिताजी वेंटिलेटर पर थे और वह जैसे—तैसे जमा पूंजी में से खर्च करके उनकी इलाज की व्यवस्था में लगा हुआ था तब उसकी गैर हाजिरी में किशोर ने यह कैसा कारनामा कर दिखाया? उसके चेहरे पर गुस्से और हैरानी के भाव निरंतर आ रहे थे।
उसने सुनिधि को डांटते हुए कहा — सुनिधि! तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी कि तुम अपनी शादी में तमाम परिजनों से आशीर्वाद के रूप में मिले गहनों को ऐसे किशोर के हवाले कर दोगी। वे कोई चीज नहीं थे! वे हमारी शादी की निशानी थे! हमारे बुजुर्गों के आशीर्वाद के प्रतीक! मुझे यह जानकर बेहद बुरा लगा कि तुमने इतने घिनौने काम में किशोर का साथ दिया। उन गहनों पर मैंने कभी बुरी नीयत नहीं डाली और न ही उनके बारे में कभी पूछा भी। पर तुमने तो सब मटियामेट कर दिया! कभी सोचा कि अपने साथ कोई इमर्जेंसी होगी तो क्या होगा? यदि मुझे कुछ हो गया तो तुम अपना होम लोन कैसे चुकाओग? तुमने और तुम्हारे भाई ने गहनों को नहीं बल्कि हम दोनो की नियति को गिरवी रख दिया है। यह काम करने से पहले कम से कम मुझसे पूछ लिया तो होता!
क्रमशः (काल्पनिक रचना )