चैप्टर-2
सुनिधि ने सोचा कि गहनों के रूप में मिले इन सबके आशीर्वाद का ही यह नतीजा है कि पंद्रह साल से गृहस्थी की गाड़ी सही—सलामत चल रही है। लेकिन उसे पता नहीं था कि जल्द ही उसकी जिंदगी में नया तूफान आने वाला है!
यह तूफान किशोर के जरिए आया। किशोर सुनिधि के घर में सबसे छोटा होने के कारण सबका बेहद लाड़ला था। पापा आमोद त्रिवेदी उसकी हर फरमाइश पूरी करने में लगे रहते थे। बस, किशोर ने जरा सी भी जिद की नहीं कि पापा उसकी फेवरिट चीजें दिलाने में कोई कोताही नहीं करते थे। उसे कालेज जाने के लिए हीरो होण्डा चाहिए थी। पापा ने किश्तों में लेकर दिला दी। उसे कंप्यूटर का कोर्स करने के लिए कंप्यूटर चाहिए था। पापा ने कंप्यूटर भी लोन वगैरह कर कराके दिला दिया। फिर उसका हाथ खुला हुआ कुछ ज्यादा ही था। दोस्त वगैरह भी ज्यादा ढंग के नहीं थे। बुरी संगत के कारण शराब और जुआ की लत लग गई।
रात को दो—दो बजे तक घर आना, यार—दोस्तों के साथ खयाली पुलाव पकाते हुए जाम टकराते रहना, यही उसकी आदत हो गई। नई फरमाइश, नया लोन। इन लोनों के चक्कर और अपने बेटे की अय्याशी भरी आदतों के कारण जल्द ही आमोद त्रिवेदी जबर्दस्त कर्ज में डूब गए। यहां तक कि किश्तें भरने के लिए भी उन्हें लोन लेना पड़ जाता। बेहिसाब लोन के कारण न तो किशोर की तरक्की हो पा रही थी और न आमोद की गाड़ी पटरी पर आ पा रही थी।
किशोर के हाथ में पैसा आने से पहले ही पंख लगा कर पता नहीं कहां उड़ जाता था।
सुनिधि को किशोर की हरकतों के बारे में यदा—कदा जानकारी होती रहती थी पर वह मन मसोस कर रह जाती। वह मदद करने की इच्छा रहते हुए अपने भाई की कोई मदद करना चाहती थी और न ही यह चाहती थी कि पापा उसकी हरकतों को नजरअंदाज करते हुए हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें। लेकिन कोटा से निकली चिंगारी ने सुनिधि के घर को गिरफ्त में ले लिया।
हुआ यूं कि पापा पर कर्ज बहुत हो गया था। ऐसे में किशोर अपने एक दोस्त से लोन की किश्तें चुकाने के लिए डेढ़ लाख रुपये उधार लेकर आया था। उसने पापा को यह बताया कि जब वह नोटों से भरा बैग लेकर आ रहा था तो किसी ने बस में उसमें चीरा लगाकर सारे नोट निकाल लिए। पैसे चोरी चले जाने के कारण वह लोन की किश्तें नहीं भर सकता था। फिर ये डेढ़ लाख रुपये आज नहीं तो कल अलग से चुकाने ही थे। दोहरा संकट! दोहरी मुसीबत!
हालांकि यह बात और है कि उसने ये रुपये अपने दोस्तों को एक महंगे होटल में शराब और ड्रग्स की पार्टी देने में एक ही रात में उड़ा दिए थे। पर पापा ने ज्यादा पूछ—परख नहीं की वह भी किशोर की बताई स्टोरी पर यकीन कर बैठे। इसके बाद सीने पर हाथ रखकर चुपचाप बैठ गए यह सोचते हुए कि बेटे द्वारा उधार लिए गए पैसों को कैसे चुकाएंगे?
इस घटना के कोई एक हफ्ते बाद साहिल के पास पालनपुर से सुरेश का फोन आया। सुरेश को इन लोगों ने गांव में रजनीश त्रिवेदी की देखभाल के लिए रखा हुआ था। उसने घबराए स्वर में साहिल को बताया कि उनके पापा की टीबी की बीमारी बिगड़ गई है और वे सागर के अस्पताल में वेंटिलेटर पर हैं। अत: आप जल्दी से सागर पहुंच जाओ।
क्रमशः (काल्पनिक रचना )