चैप्टर – 4
लेकिन चूंकि सबलोग आपस में बातें करते हुए जा रहे थे अत: इतना समय बीतने का किसी को पता ही नहीं चला।
पॉलीटेक्निक चौराहे से भारत भवन की तरफ जीप के मुड़ते ही शहर का हैवी ट्रेफिक और जगमगाहट कुछ कम होने लगी। फिर जीप जैसे ही सीएम के निवास के पास पहुंची एकदम सामने तेज मोड़ के साथ बड़े तालाब का विहंगम नजारा दिखा। तालाब के दूसरे छोर पर बनी मल्टी स्टोरीज की रोशनियां बड़े तालाब के आगोश में बौनी होकर समाती हुई लग रही थीं। इन बिल्डिंगों के सामने वीआईपी रोड पर हेडलाइट जलाकर आते—जाते वाहनों का मंजर ऐसे लग रहा था मानो नन्हे—नन्हे हजारों जुगनू एक साथ एक कतार में चल रहे हों। ब्रजेश और उनकी फैमिली इन नजारों को अपनी आंखें फैलाकर कैद करने की कोशिश कर रहे थे। हालांकि उन्हें भोपाल में रहते हुए तीनेक साल हो गए थे पर शहर का इस एंगल से नाइट व्यू इतने इत्मीनान के साथ पहली बार ही देखा था।
इसके बाद सुरेश जीप को तालाब के किनारे की सड़क पर और धीमे चलाते हुए बोट क्लब के पास पहुंचा। ब्रजेश और उनकी फैमिली के नथुनों में आसपास लगे पेड़ों और छोटे—मोटे फूड स्टालों की सुगंध तालाब की गंध से मिलकर एक बेहद खूबसूरत सा अहसास जगाती हुई समाने लगी। सुरेश ने जीप को एक पेड़ के नीचे पार्किंग की जगह पर रोक दिया। उसके जीप रोकते ही ब्रजेश और उनकी फैमिली पर पेड़ से तीन—चार फूल गिरे। यह देखकर वे लोग इतने खुश हुए कि पूछो मत। सुगंधा बोली — पराग! देखो पेड़ हमारा वेलकम कर रहा है।
पराग ने उसे छेड़ने की गरज से कहा — हमारा नही, केवल मेरा क्योंकि मेरा नाम पराग है और पराग और फूलों का गहरा संबंध होता है।
इस पर सुगंधा चिढ़ते हुए बोली— जब से तुमने सेल्स और मार्केटिंग का जॉब पकड़ा है हर वक्त बस अपनी मार्केटिंग में लगे रहते हो। अरे! मेरा नाम भी सुगंधा है। मेरा भी फूलों से गहरा संबंध है।
पराग ने कुछ मुस्कराते हुए कहा — हां मेरे जैसे फूल से!
सुगंधा — यहां फूल का मतलब हिंदी वाला फूल नहीं बल्कि अंग्रेजी वाले फूल से है। यह सुनकर दोनों हंसने लगे। जब ब्रजेश और मंजरी को भी इस बात का पता चला तो वे भी हंसने लगे।
इस बीच सुरेश की फैमिली बर्थडे बॉय मनोज और अड़ोस—पड़ोस की दो फैमिलीज के साथ बोट क्लब पर बड़े वाले आटो से उतरी। नमस्कार—चमत्कार के बाद ब्रजेश ने मनोज को शुभकामनाएं देते हुए एक बड़ा सा गिफ्ट भेंट किया। मनोज ने थैंक्यू अंकल कहते हुए कुछ शरमाते हुए वह गिफ्ट ग्रहण किया। ब्रजेश और उनकी फैमिली को मनोज का शरमाते हुए गिफ्ट लेने का सीन दिल को छू गया। सुगंधा ने अपने मोबाइल फोन के कैमरे से इस दृश्य का वीडियो बना लिया।
फिर वे लोग बोट क्लब के पास छोटी सी हट में बने सनराइज ढाबे के पास पहुंचे। ढाबे के पास बड़े तालाब के पानी में बीस—पच्चीस सफेद बड़ी—बड़ी बत्तखें तैरती दिखीं। वे क्वैं—क्वें की आवाजे करते हुए अपने पंखों से पानी उड़ाने में लगी थीं। पानी की कुछ बूंदें ब्रजेश और उनकी फैमिली पर गिरीं। उस सुखद अहसास को उनलोगों ने अपने मन में बसा लिया।
क्रमशः
(काल्पनिक कहानी )