चैप्टर – 3
सुरेश ने काफी सोच—विचारकर एक योजना बनाई और बर्थ डे से एक दिन पहले अपनी पत्नी मालती से इसके बारे में चर्चा की।
योजना सुनकर मालती बोली — पिलान तो अच्छा है पर देखना कहीं साहब झल्ला नहीं बैठें और तुम्हारी डराइवरी खतरे में पड़ जाए। हां, मैं इतना जरूर कहूंगी कि साहब को उस जगह के बारे में पहले से मत बताना।
अगले दिन सुरेश नहा—धोकर तैयार हुआ और ठीक समय पर ब्रजेश साहब के बंगले पर आधा घ्ंटे पहले पहुंच गया ताकि उन्हें अपने बेटे के जन्मदिन पर इनवाइट कर सके और समय पर एयरपोर्ट भी छोड़ सके। ब्रजेश भी उस दिन अच्छे मूड में थे। अत: जब सुरेश ने उन्हें अपने बेटे की बर्थडे पार्टी में आने का न्योता दिया तो वे खुश होकर बोले — अरे वाह! सुरेश, मुझे बेहद खुशी हुई कि तुम मुझे सपरिवार अपने बेटे की बर्थडे पार्टी में बुला रहे हो। पर जाना कहां है? किसी स्टार—विस्टार वाले होटल में तो पार्टी नहीं कर रहे हो?
सुरेश — वो साहब! मालती की बीसी इस बार खुल गई थी। अत: आपकी और दो—तीन अड़ोसियों—पड़ोसियों की फैमिली के साथ मिलकर बेटे की बर्थडे पार्टी करने का पिलान बना लिया। वो जगह कौन सी है मैं आपको शाम को ही बताउंगा। आप से बस एक रिक्वेस्ट है।
ब्रजेश — क्या?
सुरेश — आज हम सब आपकी गैरेज में कई दिनों से जो खुली जीप रखी है उसमें आपकी पूरी फैमिली और पराग भइया को भी आज पार्टी के लिए ले जाना चाहता हूं।
ब्रजेश — श्योर! पर तुम्हारी फैमिली वहां कैसे आएगी?
सुरेश — वो लोग तो आटो करके आ जाएंगे।
ब्रजेश — ठीक है तो मैं सुगंधा, मंजरी और पराग को यह बात बता देता हूं।
इसके बाद ब्रजेश ने सुरेश के बेटे की पार्टी के बारे में जानकारी दी और फिर अपनी ड्यूटी बजाने एयरपोर्ट निकल गए।
शाम को जब ब्रजेश बंगले पर पहुंचे तो पराग वहीं मिला। उसने ब्रजेश को नमस्ते की और पूछा — अंकल! ये सुरेश ने पार्टी कहां रखी है?
ब्रजेश — वह तो उसने बताया नहीं है। बस वह मुझे यहां छोड़कर यह कहकर अपने घर निकल गया है कि साहब! मैं एकाध घंटे में तैयार होकर आता हूं। पार्टी की जगह के बारे में पता नहीं वह क्यों नहीं बता रहा है?
पराग — शायद सुरेश सरप्राइज देने के मूड में है।
ब्रजेश — हां, वो तो मुझे भी लग रहा है। तुम यहीं ड्राइंगरूम में बैठो। मैं देखता हूं कि बाकी लोग तैयार हुए या नहीं?
शाम के 7 बजने तक सब तैयार होकर बेठ गए। फिर सुरेश आया। उसने गैरेज में रखी खुली जीप को झाड़ा—पोंछा और अच्छे से चेक किया ताकि आगे के सफर में कोई परेशानी नहीं आए। इसके बाद ब्रजेश, मंजरी, सुगंधा और पराग उस जीप में बैठकर सुरेश के साथ अज्ञात गंतव्य की ओर चल पड़े।
अक्टूबर का महीना होने से गुलाबी ठंडक धीरे—धीरे आकाश से उतरने लगी थी। यह ठंडक ऐसी थी कि ज्यादा कुछ ओढ़ने—पहनने की जरूरत नहीं थी। ब्रजेश और उनकी फैमिली बहुत दिनों के बाद खुली जीप में बैठी थी। अत: उन्हें जीप चलने के साथ आ रहे हवा के हल्के ठंडे झोंकों से काफी सुकून मिल रहा था। सुरेश भी पूरे इत्मीनान से जीप चला रहा था। नेहरू नगर से पॉलीटेक्निक चौराहे तक का कोई पांच मिनट का सफर पूरा करने में करीब बीस मिनट लग गए थे। लेकिन चूंकि सबलोग आपस में बातें करते हुए जा रहे थे अत: इतना समय बीतने का किसी को पता ही नहीं चला।
क्रमशः
(काल्पनिक कहानी )