चैप्टर – 2
ब्रजेश ने पार्टी के रंग में भंग पड़ने के बाद घर लौटने में ही भलाई समझी और सुरेश के साथ आई टेन में बैठकर वापस आ गए।
जब सुगंधा को इस पार्टी के हंगामे के बारे में पता चला तो वह हैरान रह गई और उसने कहा — स्टार होटलों की पार्टियों में ऐसा होता है! अच्छा हुआ पराग वहां नहीं गया नहीं तो वह हगामा करने वाले को वहीं धो डालता! मेरा प्यारा एंग्री यंग मैन!
कुल मिलाकर ब्रजेश ने दो बड़ी पार्टियां एक महीने के भीतर अटेंड की पर मजा एक में भी नहीं आया। ये पार्टियां अटेंड करने के बाद जब वे घर बड़बड़ाते हुए अपनी कार से घर लौटते तो सुरेश उनका गुस्सा ठंडा करने की हर मुमकिन कोशिश करता। कभी वह उनके मनपसंद गाने कार के स्टीरियो पर चला देता तो कभी चुटकुले सुनाता। उसके इस सदाशयता से भरे व्यवहार के कारण मानो ब्रजेश के गर्म हो रहे दिमागी तवे पर पानी की कुछ फुहारें से पड़ जातीं और उन्हें कुछ राहत मिलती।
तीसरी बार उन्हें एयरपोर्ट के एक और इंजीनियर दोस्त परमिंदर सिंह ने अपनी 50वीं वर्षगांठ पर फाइव स्टार होटल भोजपाल एक्सप्रेस में डिनर के लिए न्यौता पर वे एयरपोर्ट में इमरजेंसी ड्यूटी लगने के कारण इस पार्टी में नहीं जा सके। हालांकि उन्होंने अगले दिन फोन लगाकर परमिंदर से पार्टी में शरीक नहीं होने का कारण बताते हुए माफी मांग ली थी।
इस पर परमिंदर ने कहा कि ओए ब्रजेश! चिंता न करीं। फिर अपन बाद में कभी पारटी—शारटी कर लेंगे! बस अपनी दोस्ती चलती रहना चाहिए। हां, इतणा जुरूर है कि उस पारटी विच पलेट दा हिसाब बड्डा महंगा था। यही कोई 3000 रुपे दी पलेट थी। पर इमरजेंसी ड्सूटी के कारण तू न आ सका तो मैं कुछ नहीं कहूंगा। तेरे को अपनी ड्यूटी वैसे ही बजाणी पारटियां तो हुंदी रहंदी हां!
ब्रजेश समझ गए कि परमिंदर ने पूरी गणित लगाकर इशारों—इशारो में कह दिया है कि भले ही तुम पार्टी में आओ या नहीं आओ पर 3000 रुपये प्लेट के हिसाब से एक अच्छा सा गिफ्ट जरूर भिजवा देना। यही सब सोचकर वे नेक्स्ट संडे को परमिंदर के यहां गए और उसे बतौर गिफ्ट चांदी का एक गिलास देकर आए। परमिंदर गिलास देखकर खुश हो गया। उसकी खुशी देखकर ब्रजेश भी मन ही मन मुस्कराने लगे। वे समझ गए कि महंगे होटल में पार्टी करने का मतलब इतना जरूर होता है कि गेस्ट भी महंगे गिफ्ट देकर होस्ट को खुश कर दें।
ब्रजेश ने परमिंदर के घर से अपने घर लौटते समय सुरेश से यह अनुभव भी शेयर किया। सुरेश को उनकी बात सुनकर लगा कि साहब स्टार होटलों की पार्टियों में जाकर वैसे खुश नहीं दिखते हैं जैसा कि अन्य लोग दिखते हैं। उसका दिमाग अब इस दिशा में चल रहा था कि वह कैसे साहब को अधिकतम खुशी पहुंचा सके और उन्हें जिंदगी के पलों को एंजॉय करना सिखा सके।
13 अक्टूबर को सुरेश के दस वर्षीय बेटे मनोज का जन्मदिन था। उसने इस मौके को अपने साहब की खुशी के लिए इस्तेमाल करने का प्लान बनाया। उसने काफी सोच—विचारकर एक योजना बनाई और बर्थ डे से एक दिन पहले अपनी पत्नी मालती से इसके बारे में चर्चा की।
क्रमशः
(काल्पनिक कहानी )