यशवन्त कोठारी, जयपुर
प्रेम, व्यक्ति, को व्यक्त करता है। स्वप्न विज्ञान, बच्चों, युवतियों और युवाओं के सन्दर्भ में और स्वभाव में आने वाली चीजे प्रेम जीवन से जुडी है। स्वप्न विज्ञान विश्लेषण और चिकित्सा में प्रेम को और भी प्रगाढ़ करता है। इच्छापूर्ति होना आवश्यक है।
चिन्ता, मनोग्रस्तता, आदि मनोरोगों में प्रेम का महत्वपूर्ण स्थान है।
प्रेम में प्रतिरोध का दमन होता है तो रोग उत्पन्न होते है व्यक्ति सेडिस्ट हो जाता है। इसके विपरीत कुछ लोग मैसोकिस्ट हो जातें है।
इनर्जी प्रेम त्याग का आवश्यक तत्व है, उर्जा है। बिना उसके प्रेम संभव नहीं है।
भय, डर, चिन्ता, मानवीय स्वभाव है। लेकिन अति होने पर रोग है। प्रेम में भी चिन्ता भय डर हो जाता है।
चिन्ता का दमन किया जाना चाहिये।
चिन्ता कमजोरी, दिल की धडकन, सांस रूकना, सामान्य से अधिक मन चंचल होना चिन्ता के रूप है। जो प्रेम में भी दिखाई देते है। चिन्ता, रागात्मक, कारणात्मक द्वेषात्मक, प्रेमात्मक हो सकती है। चिन्ता में राग द्वेष स्चरति होती है। प्रेम अहस्तान्तरणीय होता है। स्नायु रोग से ग्रसित व्यक्ति को प्रेम करने में परेशानी हो सकती है इसी प्रकार एक कुंवारे से प्रेम करने में रोगी ज्यादा समय नहीं लगाता है। स्नायू रोग और स्नायु स्वास्थय में ज्यादा अन्तर नहीं है। जिनियस और पागल में भी ज्यादा अन्तर नहीं है। प्रेम में व्यक्ति पागल या जीनियस कुछ भी हो सकता है।
स्त्री पुरूष सम्बन्धों की व्याख्या आज भी विचार करने को प्रेरित करती है। प्रेम के मामलों में प्रसंग और स्वप्न, स्नाय,ु स्नायुरोग, मनोरोग पर ही ज्यादा ध्यान दिया गया है। मगर विश्लेषण आगे के लिए रास्ता खोजते है, और यह सुखद है।
प्यार की केमेस्ट्री में हारमोन्स बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है। तन की चाहत, मन की चाहत से प्यार शुरू होता है। प्यार में हारमोन्स शरीर, मस्तिष्क में हलचल पैदा कर देते है।
श्री श्री रवि शंकर पूरी सृष्टि से प्रेम करने का आहवान करते है। प्रेम की इस सरल राह पर चलने की इच्छा होनी चाहिये। मनुष्य को स्वयं से मानवता से फूल पत्तों नदी नालों सुबह शाम पशु पक्षियों सबसे प्रेम करते रहना चाहिये।
(क्रमश:)
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