यशवन्त कोठारी, जयपुर
युनानी विचारकों के अनुसार प्रारम्भ में मनुष्य अर्ध नारीश्वर था और परम शक्तिशाली था देवों ने इसके दो टुकडें कर दिये थे ओर तभी से ये दो टुकडे मिलने के लिए आतुर और बेचैन रहते है। इसी प्रयत्न, चेष्टा, बेचैनी, को प्रेम कहा गया है यह प्रेम पवित्र होने पर ही ग्राहय है। स्त्री पुरूष की स्वाभाविक कामुकता को रखने के लिए समाज ने विवाह नामक संस्था का विकास किया।
विष्णु पुराण में स्त्री मर्यादा की स्थापना की गई है। जो श्रेष्ठ है। तथा व्यवहार में लाने योग्य है।
पुरूष स्त्री को इस पुराण में विष्णु लक्ष्मी के माध्यम से कहा गया है। रति और राग विष्णु और लक्ष्मी के स्वरूप है।
पुरूष अर्थ स्त्री वाणी है। पुरूष न्याय है, स्त्री नीति है। पुरूष सृष्टा है। स्त्री सृष्टी है। पुरूष भूघर है। स्त्री भूमि है। पुरूष संतोष है स्त्री तुष्टि है। पुरूष काम है। स्त्री इच्छा है पुरूष शंकर है। स्त्री गौरी है। पुरूष सूर्य है। स्त्री प्रभा है। पुरूष चंद्रमा है। स्त्री चांदनी है। पुरूष आकाश है। स्त्री तरंग है। पुरूष आश्रय है। स्त्री शक्ति है। पुरूष दीपक है। स्त्री ज्योति है। पुरूष नद है। स्त्री नदी है। पुरूष ध्वज है। स्त्री पताका है।
विवाह के आठ प्रकार है
ब्रह्मा, दैव, आर्ष, प्राजापत्य, आसुर, गन्धर्व, राक्षस, पैशाच। ये प्रेम के लिए ही है।
स्त्री वासना में भी मानव का कल्याण ही देखती है। स्त्री की सबसे बडी शक्ति आंसू है। इसकी शक्ति आज्ञाकारिता, धैर्य और सहिष्णुता है। स्त्री की शक्ति सौन्दर्य, जवानी और लावण्य में है।
स्त्री के प्रति उदार भाव रखा जाना चाहिये। उसकी भूलों के प्रति क्षमाशील होना चाहियें। उनके प्रति उपेक्षा भाव नही होना चाहियें।
कमना वासना से बचाने के लिए हिन्दू शास्त्रों में परम्परा, नियम, विधि सहायता आदि बनाये गयें है।
स्वभाव से ही पुरूष बहुस्त्री प्रेमी है। पोलीगेमी इस जन्तु का चरित्र माना गया है।
प्रेम में कंदर्प, काम, वासना, प्रसंग, चाह, निष्ठा, प्रीती, यारी, रति, राग, राधा, रूचि, रोमांस, श्रंगार, संग, साथ, सौभाग्य आदि शामिल है। प्रेम में पवित्रता, स्वार्थहीनता, निष्ठा, त्याग, सम्मिलित है। प्रेम अपना रास्ता खुद बनाता है। प्रेम का मार्ग कठोर कंटकाकीर्ण और गहन है।
प्रेम ईश्वर के हृदय में है। प्रेम सर्वत्र है। प्रेम अहसास है। वजूद है। मर्यादा है। प्रेम समर्पण है। सम्पूर्ण समर्पण सम्पूर्ण प्रेम का ध्योतक है। स्त्री पुरूष को प्रेम प्रेम के गहरे अर्थ देता है। यह सम्पूर्ण प्रेम की खोज का समर्पण मार्ग है।
खुसरो के अनुसार प्रेम की धारा उल्टी चलती है। जो उतरा सो डूब गया जो डूबा सो पार हो गया। प्रेम खुद से शुरू होकर खुदा पर जाकर समाप्त हो जाता है। प्रेम में आंखो का बहुत महत्व है। प्रेम का रसायनशास्त्र भी बहुत महत्वपूर्ण है।
आंखों में आंखे डालकर देखने मात्र से प्रेम हो जाता है। प्रेम में सौभाग्य और बुद्धि का होना आवश्यक है। बाडी लेंगवेज बिना कुछ कहे बहुत कुछ कह देती है। मुडकर देखने मात्र से हमेशा के लिए प्रेम हो जाता है। गलतियां करना प्रेम के समान है।
(क्रमश:)
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