चैप्टर – 2
डॉक्टर साहब — यह मेरी स्टोरी का सबसे मार्मिक अंश है। इसमें ही तुम्हारे इस सवाल का जवाब छिपा है कि मैंने अस्पताल खोलने के लिए इस गांव का चुनाव क्यों किया। मुझे अच्छी तरह से याद है। तब मैं आठ साल का था। उस रात चांद बादलों से लुका—छिपी खेल रहा था। तभी किसी ने पता नहीं क्यों हमारे घर के सामने नीम के पेड़ पर लगे लाल बर्रों के छत्ते पर पत्थर मार दिया। हमलोग रात्रि के भोजन के तौर पर लिट्टी चोखा का आनंद ले रहे थे। तभी गुस्से से भरी वे बर्रें घर में घुसकर मुझ पर टूट पड़ीं। ताऊजी खाना छोड़कर कंबल लेने भागे। ताईजी चूल्हे में जलती लकड़ी पकड़कर बर्रों को भगाने में जुट गईं। पर बर्रें कहां मानने वाली थीं। उनके सारे कोप का शिकार मैं हुआ। तब मैं हाफ पैंट और हाफ शर्ट पहने हुआ था। उन्हें जहां भी मौका मिला उन्होंने मुझे काट—काटकर पूरा शरीर सुजा दिया। यह सब करीब दो मिनट मे ही हो गया। ताउजी ने जैसे—तैसे करके मुझे कंबल उढ़ाया और ताईजी ने घरेलू टोटके करके मेरे दर्द को कम करने की कोशिशें शुरू कर दीं। उनकी कोशिशों से थोड़ा आराम तो पड़ा पर जल्द ही मुझे तेज बुखार आ गया। मेरी सांस जोर—जोर से चलने लगी। पूरा शरीर अलग दुख रहा था। मैं खड़े होने की कोशिश करता पर खड़ा ही नहीं हो पा रहा था। ताईजी ने मेरे माथे पर कपड़े की पट्टी गीली करके रखी। कुछ देर में ही ताऊजी को आभास हो गया कि घरेलू उपायों से मेरी तबियत काबू में आने वाली नहीं तो वे जमना को तलाशने गए। पर उस दिन वह अपने ससुराल किसी फंक्शन में गया हुआ था। और लोगों को ताऊजी ने आवाज देकर पुकारा पर गांव के मेहनतकश लोग दिनभर के थके—हारे अपनी चारपाइयों और गुदड़ियों में दुबके रहे। थक—हार कर ताऊजी वापस घर आए और उन्होंने ताईजी से कहा ।
ताऊजी — लगता है सुधु की तबियत संभलेगी नहीं। मुझे इसे लेकर वैद्य बीएल पचौरी के पास जाना पड़ेगा।
ताईजी ने पूछा — बीएल पचौरी का अस्पताल तो बारह किलोमीटर दूर झरिया कस्बे में है। वहां तुम कैसे जाओगे?
इस पर ताऊजी बोले — मैं अपनी गाड़ी पर सुधु को बिठाकर ले जाउंगा। इस पर ताईजी उन्हें समझाते हुए बोलीं ।
ताईजी — रात का समय है। सावधानी से गाड़ी चलाना। कहीं ऐसा न हो कि और कोई समस्या आ जाए।
ताऊजी दृढ़ आवाज में बोले — अब जो होगा सो देखा जाएगा। तुम जल्दी से रात के खाने का बचा—खुचा सामान हमारे लिए बांध दो और पानी की एक बोतल दे दो।
ताईजी किसी अंदेशे से हम दोनों को बचाने के लिए भगवान से प्रार्थना करती हुईं ताऊजी की आज्ञापालन में लग गईं। ताऊजी ने मोटरसाइकिल स्टार्ट करके देखी। हाय री किस्मत! उसका स्पार्क प्लग खराब था। वह स्टार्ट ही नहीं हो सकी। ऐसे में ताऊजी ने एक निश्चय किया और वे ताईजी से बोले ।
ताऊजी — भागवान! सुधु की जान से बढ़कर इस समय कुछ भी नहीं है हमारे लिए। गाड़ी का तो भटृठा बैठा हुआ है। मैं ऐसा करता हू कि उसे अपनी पीठ पर लादकर पैदल ही वैद्य के पास ले जाता हूं। तुम मेरी लाल टॉर्च भी दे दो। इससे सही रास्ते पर चलने में आसानी होगी।
निश्चय से भरी उनकी आवाज में यह वाक्य सुनकर ताईजी बस इतना ही कह सकीं — ठीक है। पर सतर्क रहना। उन्होंने ताऊजी को टॉर्च व सफर के लिहाज से अन्य सामान एक थैले में डाल कर दिया। फिर वे घर की रसोई में रखे ठाकुरजी के सामने हाथ जोड़कर बैठ गईं और कुछ प्रार्थना करने लगीं।
क्रमशः (काल्पनिक कहानी )