आखिरी चैप्टर
डॉक्टर साहब — मेरे ताऊजी मुझे अपनी पीठ पर लादकर बारह किलोमीटर दूर वैद्य पचौरी के यहां ले चले। तुम्हें तो मालूम ही है कि रात में सन्नाटा पसर कर कैसे गांव के इलाके को अपने आगोश में ले लेता है। बस, कहीं—कहीं कुत्तों के भौंकने की आवाजें आ रही थीं। वैद्य के घर और हमारे गांव के बीच के रास्ते में केवल दो पुरवे (छोटा गांव) पड़ते थे। बाकी जगह छोटा—मोटा जंगल और कंटीली झाड़ियों की भरमार थी। गांव के रास्ते में सांप—बिच्छू का डर अलग रहता है। रास्ता भी कच्चा—पक्का था। एक जगह पर नाले पर छोटा सा पुल था। कुल मिलाकर बेहद सावधानी बरतते हुए हमें यह सफर करना था। ताऊजी मुझे लेकर जंगल—झाड़ियों वाले रास्ते से जा रहे थे तो दो—तीन बार सियार भी मिले। एक जगह तो कुत्तों ने भी घेर लिया। ताऊजी अपनी परवाह किए बगैर उन्हें जैसे—तैसे करके भगाते हुए चले। वे जहां कहीं थक जाते वहीं थोड़ी देर रुक कर तो कभी रास्ता सही मिलने पर तेजी से चलने लगते। यह सफर करीब छह घंटे में पूरा हुआ। रात को करीब तीन बजे हम वैद्य के पास पहुंचे। मेरे पीठ पर लदे होने और पैदल चलने से उनकी भी हालत बेहद खराब थी। वे बुरी तरह से थक गए थे और ज्यादा देर चलने तथा जूतों के काटने से पैरों में छाले हो गए थे। उन्होंने पचौरी का दरवाजा भड़भड़कार और उसे कई आवाजें देकर जगाया। वैद्यजी आंखें मलते हुए उठे और पूरा हाल जानने के बाद मेरे लिए दवाई दी। ताऊजी को चाय आदि पिलवाई। उनकी एक पुड़िया दवाई से मेरा बुखार कम हुआ। वह वैद्य दिल का अच्छा था। उसने दवाइयां देने के फौरन बाद हमें चलता—फिरता नहीं किया। बल्कि उसने अपने ही क्लिनिक में हमें ठहराने की व्यवस्था की और सुबह होने के बाद ही हम उसके बेटे के स्कूटर पर सवार होकर गांव वापस लौट सके।
अचला — सच! कितना कष्ट झेला होगा आपने और आपके ताऊजी ने उस दिन! ताईजी भी कितनी घबराई होंगी! अचला ने सहानुभूति स्वर में कहा।
डॉक्टर साहब — अचला! जैसे दिन मैंने देखे हैं मैं चाहता हूं कि वैसे दिन इस गांव और आसपास के गांव के लोग नहीं देखें। इसलिए मैंने यहां अपना अस्पताल खोलने का इरादा किया है। तुम्हें तो मालूम है कि ताईजी, ताऊजी अब दिवंगत हो चुके हैं और वे गांव की जमीन तथा घर मेरे नाम कर गए हैं। पिताजी भी पटना में कपड़ो के बड़े व्यापारी थे। वे भी विरासत में दो करोड़ रुपये मेरे लिए छोड़ गए हैं। विरासत में मिले इस धन का सही उपयोग यही रहेगा कि गांव में अस्पताल बनवा दिया जाए। जैसे ही अपना अस्पताल बनेगा वैसे ही गांववालों के जीवन में स्वास्थ्य को लेकर अक्सर होने वाली परेशानियां कम हो जाएंगी। मैं इस अस्पताल का नाम अपने ताऊजी—ताईजी के नाम पर ही रखूंगा। अब तुम देख लेना कि इस नेक काम में तुम्हारी भूमिका क्या होगी? डॉक्टर नागर ने गंभीर मुद्रा में एक सवाल अचला की तरफ उछाल दिया।
यह सुनकर अचला डॉक्टर नागर के हाथों को अपने हाथों में लेते हुए बोली — डियर! मैं तो आपकी छाया हूं। जहां आप, वहां मैं। मैं इस अस्पताल में रिसेप्शनिष्ट का काम संभाल लूंगी। अब यह आपकी मरजी है कि मुझे सैलरी कितनी दोगे। मैं तो एक पुरानी फिल्म का बस एक ही डायलॉग कहना चाहूंगी — ले तो आए हो पिया हमें सपनों के गांव में। बस प्यार की छांव में बिठाए रखना!
अचला का जवाब सुनकर डॉक्टर नागर के चेहरे पर मुस्कान आ गई और वे उस गांव में अपना अस्पताल खोलने की तैयारियों में जुट गए।
(काल्पनिक कहानी )