“आप लोग फ्रेश हो गए हों तो खाना लगवा दूँ?” करतार सिंह ने आकर पूछा।
प्रताप ये सुन तुरंत बोला – “लगवा दूँ? क्या तुम्हारे साथ कोई और भी है?”
प्रताप की बात सुनकर करतार सिंह हड़बड़ा गया, फिर संभलते हुए बोला – “ओह, मेरा मतलब था, मैं खाना लगा दूँ?”
“हाँ, लगा दो!” प्रताप बोला। करतार सिंह लौट गया। प्रताप ने मंगल से कहा कि रसोईघर में चुपके से देखकर आ कि खाना कौन लगा रहा है?
मंगल को भय सा लग रहा था फिर भी बॉस के आदेश का पालन करते हुए वह रसोईघर की तरफ गया। मंगल ने देखा वहाँ वही छरहरी कन्या लंबा सा घूँघट डाले दो थालियों में खाना लगा रही थी जिसने पहले उनको चाय लाकर दी थी। मंगल ने आँखें मलकर पुन: देखा तो अवाक् रह गया। वहाँ और कोई नहीं करतार सिंह थाली लगा रहा था। “हे भगवान्! ” बुद्बुदाता हुआ वह हाॅल की तरफ आया और प्रताप को सब बता दिया।
प्रताप को विश्वास न हुआ। इतने में करतार सिंह खाने की थालियां डाइनिंग टेबल पर रखते हुए बोला, “आइये साब! ”
“यह खाना क्या आपने बनाया है?” प्रताप ने पूछा।
“श्रीमानजी, मेरे अतिरिक्त यहाँ कौन है जो खाना बनायेगा? आपको क्या शक है?”
“ये रोटी लगता है किसी स्त्री ने बनाई है!”
“क्या बात करते हो हुज़ूर!”
“चलो, एक बार रसोई में मेरे सामने ऐसी ही रोटी बनाकर दिखाओ!” प्रताप खड़े होते हुए बोला।
करतार सिंह के साथ प्रताप भी रसोईघर में चला गया। करतार सिंह बोला, “आप खामखां में मुझ पर शक कर रहे हैं, साब!”
“ठीक है, ऐसी ही नरम, पतली और गोल रोटी बनाकर दिखाओ तो मेरा शक विश्वास में बदल जायेगा।” प्रताप बोला।
तमाम कोशिशों के बावजूद भी करतारसिंह वैसी रोटी नहीं बना सका तो प्रताप बोला, “अब सच बताओ कि वह कन्या कौन है?”
करतारसिंह को लगा अब और झूठ बोलने से कुछ न होगा तो हाथ जोड़ता हुआ बोला, “वह मेरे ही गाँव की बेटी है जो जात बाहर प्रेम संबंध के चलते अपने प्रेमी संग गाँव से भाग गई थी। गाँव वाले उसे ढूँढ रहे थे। वे दोनों भागकर जंगल में छुप गए लेकिन ये इलाका उन्हें सुरक्षित नहीं लगा।
क्रमश:
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