चैप्टर – 2
इन दोनों के मन में राहुल की जिंदगी से जुडे दृश्य चलचित्र की तरह घूमने लगे।
अमिताभ की डबडबाई आंखों के सामने वह दृश्य घूम गया जब मेरठ में रहने के दौरान राहुल ने रश्मिका की जान बचाने के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी थी। रश्मिका यों तो अमिताभ की बड़ी बहन थी पर उसकी जिंदगी बहुत छोटी रही।
तब अमिताभ के पिता संतोष त्रिपाठी साहू गुड्स करियर में हेडक्लर्क थे और उसकी मां आशा देवी एक कालेज में बाई का काम करती थीं।राहुल के पिता धरमचंद विरमानी साइकिल पर फेरी लगाकर रेडीमेड कपड़े बेचते थे। वे अमिताभ के पड़ोसी थे और उनके बगल वाले मकान में किराये से सपरिवार रहते थे। अमिताभ के पिता ने किराये के घर में रहने के बजाय खुद का घर बनवाना ज्यादा बेहतर समझा था और उन्होंने राहुल के घर के पास खाली पड़ी जमीन को खरीदकर एक छोटा सा मकान बनवा लिया था। इन दोनों घरों की छतें आपस में मिली हुई थीं।
रश्मिका एक सरकारी स्कूल में पढ़ती थी। उससे एक साल छोटा अमिताभ एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ता था। उससे दो साल करीब बड़ा राहुल अक्सर अमिताभ के घर आता—जाता रहता था। एक दिन ऐसा कुछ हुआ कि ऐसा लगने लगा कि राहुल और रश्मिका मानो एक दूजे के लिए ही बने हों।
उस दिन अमिताभ के माता—पिता अपनी अपनी ड्यूटी पर गए हुए थे। घर में केवल अमिताभ और रश्मिका ही थे। राहुल अपने घर की छत पर पतंग उड़ा रहा था। रश्मिका बारिश होने का अंदेशा जानकर छत पर सूख रहे कपड़े उठाने आई हुई थी। थोड़ी ही देर में जोरों की हवा चलने लगी और काले—काले बादलों से आकाश घिरता जा रहा था। अमिताभ नीचे के कमरे में बैठकर पढ़ाई कर रहा था। जब हवा ने जोर पकड़ लिया तो राहुल पतंग की डोर आदि समेटकर छत से नीचे उतरने ही वाला था। टीनएजर रश्मिका बारिश में कपड़े नहीं भीग जाए इस डर से जल्दी—जल्दी कपड़ों को समेटकर नीचे पहुंचने को उतावली हो रही थी। इसी हड़बड़ी में उसका पैर बिना मुंडेर वाली छत से फिसल गया। वह जोर से चिल्लाई — बचाओ! बचाओ! उसकी चीख राहुल ने सुन ली। वह जोरों से रश्मिका—रश्मिका चिल्लाता हुआ उसकी तरफ भागा। उसने जैसे—तैसे रश्मिका का हाथ पकड़कर उसे ऊपर खींचने की कोशिश शुरू कर दी। तेज होती बारिश ने राहुल की मुश्किलें और बढ़ा दी थीं। उसे लग रहा था कि कहीं वे दोनों ही फिसलकर नीचे न गिर पड़े।
इस बीच, अमिताभ के कानों तक इन दोनों की चीख—पुकार पहुंची। वह किताब वहीं छोड़कर छत की तरफ भागा। उसने वहां देखा कि राहुल रश्मिका को बचाने की पुरजोर कोशिश कर रहा है और अपनी इस कोशिश में वह भी गिरने—गिरने को हो रहा है। यह देखकर अमिताभ ने फौरन उन दोनों को थामा और फिर राहुल की मदद लेकर रश्मिका को छत के उपर खींच लिया। इस घटनाक्रम में रश्मिका और राहुल दोनों ही जख्मी हो गए थे और उनके हाथ—पांव बुरी तरह से छिल गए थे। अमिताभ इन दोनों को आटो में बिठाकर अस्पताल ले गया और उनकी मरहम—पट्टी कराई। इस घटना की खबर राहुल के पिता धरमचंद विरमानी ने भरी बारिश में भागदौड़ करके अमिताभ के माता—पिता तक पहुंचाई। वे दोनों धरमचंद के साथ जैसे—तैसे अस्पताल पहुंचे। करीब छह घंटे अस्पताल में बिताने के बाद डाक्टरों ने राहुल व रश्मिका की स्थिति पहले से बेहतर मानते हुए उन्हें डिस्चार्ज कर दिया।
इसके बाद त्रिपाठी परिवार और विरमानी परिवार के रिश्तों में और प्रगाढ़ता आने लगी। धीरे—धीरे राहुल का रश्मिका से मिलना—जुलना काफी बढ़ गया और रश्मिका के मन में राहुल के प्रति कोमल भावनाएं जगने लगीं। एक दिन तो राहुल ने एक किताब में गुलाब का फूल रखकर रश्मिका को भेज दिया। जब संतोष त्रिपाठी को यह बात पता चली तो वे खूब लाल—पीले हुए। उन्होंने रश्मिका को खूब डांटा और साफ—साफ कह दिया— तुम्हें सबसे पहले करियर और पढ़ाई को रखना है। फिजूल की बातों में यदि मैंने तुम्हें वक्त बर्बाद करते देखा तो मैं तुम्हें बिलकुल माफ नहीं करूंगा। हालांकि तमाम धौंस—धमकियों के बावजूद राहुल और रश्मिका को कोई फर्क नहीं पड़ा।
क्रमशः