प्टर – 3
जब रश्मिका के पिता ने देखा कि मामला हाथ से निकलता जा रहा है तो उन्होंने असम के शहर गुवाहाटी में रश्मिका को एक रिश्तेदार के यहां पढ़ने भेज दिया। रश्मिका वहां पढ़ने तो चली गई पर दूर होकर भी उसका मन राहुल के पास था। अब यह वातावरण के बदलाव का असर था या फिर राहुल की जुदाई का असर वह धीरे—धीरे वहां कमजोर होती चली गई। राहुल से जुदाई उसके लिए नासूर सी बन गई और बीमार रहने लगी। उसे एक के बाद कई बीमारियां लग गई और डिप्रेशन का शिकार हो गई।
उसने इन बीमारियों से जूझते हुए एक दिन एलबी अस्पताल में दम तोड़ दिया। यह खबर मिलने पर अमिताभ के माता—पिता असम भागे पर अब क्या हो सकता था। जिसे जाना था वो चला गया। अमिताभ ने अपनी दीदी गंवा दी थी और माता—पिता ने अपनी बेटी! अमिताभ अपनी दीदी की याद में कई दिनों तक रोते रहा पर जल्द ही उसे समझ में आ गया था कि अब रश्मिका का लौटकर आना नामुमकिन है। अत: उसे अपना ध्यान करियर तथा पढ़ाई की ओर लगाना अधिक उचित लगा।
हां, त्रिपाठी दंपति यह देखकर और भी सन्न रह गए थे कि जो किताब राहुल ने रश्मिका को गुलाब का फूल रखकर दी थी वह किताब अंतिम समय में उनकी बेटी ने सीने से चिपका रखी थी! उसमें रखा गुलाब का फूल सूखकर टुकड़े—टुकड़े होने को हो रहा था। अमिताभ के माता पिता के दिल को बहुत बड़ा झटका लगा कि उनकी वजह से उनकी लाड़ली बेटी अब इस दुनिया में नहीं रही और यही गम झेलते झेलते एक साल के भीतर ही उसके माता पिता भी इस दुनिया से चले गए। अपने माता-पिता और दीदी को खोने के बाद अब अमिताभ का मन मेरठ से उठ गया था तो उसने जयपुर में रहने का निश्चय कर लिया। राहुल से जुड़ी इन्हीं सब यादों के कारण अमिताभ की आँखों में आँसू आ रहे थे।
…………………………………………………………………….
इधर श्वेता के मन में भी राहुल से जुड़ी यादों की फिल्म घूम रही थी उसे भी वो दृश्य याद आ रहा जब उसकी राहुल से पहली मुलाकात हुई थी। तब वह अपनी मम्मी कीर्ति देवी और पापा नरेंद्र सोलंकी के साथ मेरठ के दौलतगंज इलाके में रहती थी। श्वेता डीएलएफ स्कूल में पढ़ती थी। तब तक रश्मिका से बिछड़ने के गम के मारे राहुल ने भी कालेज की दहलीज पर कदम रख दिया था।
धरमचंद ने अपने बेटे को तब से ही बिजनेस के गुर सिखाने शुरू कर दिए थे। पर राहुल का मन इन सब बातों में कहां लगता था। वह तो बुरे दोस्तों की संगत में पड़कर रश्मिका का गम भुलाने के लिए एक से बढ़कर एक बुरी आदतों का शिकार होता जा रहा था।धरमचंद उसे बार—बार समझाते थे कि बेटा पढ़ाई कर लो। जीवन में कुछ बनकर दिखाओ उसके बाद मौज—मस्ती कर लेना पर राहुल इस कान से सुनता दूसरे कान से निकाल देता। वह धरमचंद के सुझावों पर एक ही जवाब देता— पापा, मेरी जिंदगी में कितनी बड़ी ट्रेजेडी हो चुकी है। मुझे अपने हिसाब से रहने दो न। अपने इकलौते बेटे को गमगीन देखकर धरमचंद का कलेजा पसीज जाता था।
हां, इस दौरान श्वेता की जिंदगी में एक वाकया ऐसा हुआ था जिसे न धरमचंद जिंदगी भर भूल सके थे और न ही श्वेता। उस रोज हर दिन की तरह धरमचंद राहुल के साथ अपनी—अपनी साइकिलों पर बैठकर फेरी लगाने के लिए निकले थे। राहुल के मन में रश्मिका को दी गई किताब और गुलाब के फूल को लेकर यादों का सैलाब उमड़ रहा था। जब वे श्वेता के घर के सामने से गुजर रहे थे तब……
क्रमशः (काल्पनिक कहानी)……..