चैप्टर – 4
उस रोज हर दिन की तरह धरमचंद राहुल के साथ अपनी—अपनी साइकिलों पर बैठकर फेरी लगाने के लिए निकले थे। राहुल के मन में रश्मिका की यादें उमड़ रही थी उसे वह सीन याद आ रहा था जब उसने किताब के अंदर गुलाब का फूल रखकर रश्मिका को दिया था।। जब वे श्वेता के घर के सामने से गुजर रहे थे तो एक कार वाले ने राहुल की साइकिल को टक्कर मार दी। दुर्घटनास्थल पर ढेरों तमाशबीन इकट्ठे हो गए। पर किसी ने न तो कार वाले का नंबर नोट किया और न ही राहुल को उठाने की कोशिश की। अपने घर के बाहर भीड़ लगी देखकर श्वेता बाहर आ गई और उसने देखा कि राहुल जमीन पर गिरा पड़ा हुआ है और कराह रहा है। उसके पिता धरमचंद उसे उठाने की कोशिश कर रहे हैं। राहुल के हाथ—पैरों से खून टपक रहा था। यह दृश्य देखकर श्वेता कुछ देर के लिए चकित रह गई पर उसने जल्द ही अपने को संभाला और अपनी मम्मी और पापा को आवाज लगाई
श्वेता — पापा! मम्मी!! अपने घर के बाहर एक्सीडेंट हो गया है! कोई घायल पड़ा है। जल्दी बाहर आ जाओ।
अपनी बेटी की पुकार सुनकर मम्मी—पापा भागे—भागे आए। उन्होंने सड़क पर गिरे हुए राहुल को जैसे—तैसे धरमचंद का सहयोग लेकर उठाया और अपने घर ले जाकर उसकी मरहम—पट्टी की। श्वेता इस दौरान उन दोनों का अच्छे से खयाल रखती रही। जब राहुल को कुछ अच्छा महसूस हुआ तो वह अपने पापा के साथ घर जाने को हुआ। राहुल और धरमचंद ने श्वेता व उसके माता—पिता का शुक्रिया अदा किया। धरमचंद ने श्वेता के लिए अपने कपड़ों के ढेर में से एक सुंदर सा सलवार सूट भेंट किया था। उस घटना के बाद से ही श्वेता के मन के तार राहुल से जुड़ने लगे थे।
धरमचंद की बीबी छाया को जब इस घटना का पता चला तो उन्होंने भी श्वेता को लेकर सपने देखने शुरू कर दिए। उन्हें लगने लगा कि श्वेता शायद इस दुनिया में राहुल की पत्नी बनने आई है। उन्हें लगा कि शायद श्वेता के राहुल की जिंदगी में आने से वह रश्मिका का गम भूल जाएगा और अपने—आप को संभालकर विरमानी खानदान का सच्चा वारिस साबित करके एक दिन पूरी दुनिया को दिखा देगा।
इस घटना के बाद वक्त मानो पंख लगाकर उड़ने लगा। श्वेता कालेज की पढ़ाई पूरी करके सेंट्रल स्कूल में टीचर बन गई। छाया ने श्वेता के घर राहुल के लिए रिश्ता भी भिजवाया। पर श्वेता और उसके मम्मी—पापा ने जब यह सुना कि रश्मिका के गम का मारा राहुल अपनी जिंदगी को बुरी आदतों के जाल में उलझाता जा रहा है तो उन्होंने यह रिश्ता स्वीकारने से इनकार कर दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी बेटी के जीवन की डोर मेरठ कालेज के अस्टिटेंट प्रोफेसर अमिताभ के हाथों में सौंप दी। श्वेता का ट्रांसफर जयपुर हो गया तो अमिताभ ने भी वहां के केएलएम कॉलेज में नौकरी ज्वाइन कर ली।
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उधर धरमचंद ने अपनी मेहनत और काबिलियत से तरक्की की सीढियां चढ़ते हुए रेडीमेड गारमेंट्स के काम को एक बड़े बिजनेस में बदल लिया और धीरे—धीरे वे करोड़पति बन गए। राहुल के पापा जैसे—जैसे तरक्की करते जा रहे थे, वैसे—वैसे राहुल का पतन होता जा रहा था। उसने पिता की कमाई को अपनी अय्याशियों को पूरा कराने में उड़ाना शुरू कर दिया। शराब, जुआ, घोड़ों की रेस में दांव लगाने आदि में वह अपना वक्त जाया करने लगा। उसकी बुरी संगति को देखते हुए धरमचंद ने मेरठ को सलाम करके जयपुर आना उचित समझा और धीरे—धीरे वहां अपना कारोबार जमा लिया। जगह बदली। कारोबार बदला। पर राहुल को न तो बदलना था और न ही वह बदला। बल्कि उसकी हरकतें और बढ गईं।
क्रमशः (काल्पनिक कहानी )