आखिरी चैप्टर
राहुल को न तो बदलना था और न ही वह बदला। बल्कि उसकी हरकतें और बढ़ गईं। उसने अपने जैसे स्वभाव के चार—पांच दोस्त और बना लिए। उनके साथ वक्त बर्बाद करना, ड्रग्स लेना, शराबखोरी आदि करना उसकी रोजमर्रा की आदत हो गई। जब धरमचंद और छाया को राहुल की हरकतें बेहद नागवार गुजरतीं पर वे उसे तमाम डांट—फटकार,धमकियां देने के बावजूद बदल नहीं सके।
उम्र बढ़ने के साथ—साथ राहुल के बारे में सोचकर धरमचंद और छाया के दिल पर बोझ भी बढ़ता जा रहा था। वे जल्द ही हाइपरटेंशन और दिल के मरीज बन गए। दो साल पहले ही धरमचंद इस दुनिया से कूच कर गए और इसके बाद गमजदा छाया ने धीरे-धीरे अपनी जिंदगी कभी घर तो कभी अस्पताल के चक्कर काट—काटकर गंवा दी।
मां—बाप के निधन के बाद राहुल और खुल गया। उसे लगा कि वह आजाद हो गया है और इसके साथ ही उसने और भी कई बुरी आदतें पाल लिए। इन आदतों के चक्कर में उसके पिता जो विरासत में करोड़ों का कारोबार छोड़ गए थे वह पूरी तरह ठप पड़ गया। पहले विरमानी खानदान का शोरूम बिका। फिर राहुल ने कर्ज लेकर अपनी मौज—मस्ती की गाड़ी दौड़ाने की कोशिश की पर ये कोशिशें नाकाम होती गईं। कुछ समय बाद शहर की पाश कालोनी मालवीय नगर में स्थित बंगला बिक गया और राहुल करोड़पति से रोड़पति होकर सड़क पर आ गया। इसके साथ ही उसके जीवन की उल्टी गिनती चालू हो गई। और वह ट्रक दुर्घटना का शिकार होकर अपना जीवन गंवा बैठा।
………….
श्वेता और अमिताभ की आखों में ऐसे ही दृश्य चलते रहते और वे गम के सागर में डूबने ही वाले थे कि दरवाजे पर बजने वाली घंटी ने उन्हें चौंका दिया। श्वेता ने जैसे—तैसे अपने को संभाला और भागकर दरवाजा खोला। सामने देखा कि अमिताभ के कॉलेज में फिलॉसफी के प्रोफेसर गिरीश द्विवेदी खड़े हैं। दरवाजा खुलने के बाद गिरीश अंदर आए और श्वेता तथा अमिताभ की रोने जैसी शक्ल देखकर वे सोच में पड़ गए। उन्होंने पूछा..
प्रोफेसर गिरीश द्विवेदी — भई क्या बात है? तुम दोनों इतने परेशान क्यो दिख रहे हो?
अमिताभ राहुल के साथ हुए भयानक हादसे की खबर भर्राये स्वर में उन्हें बताने लगा। जब पूरी खबर की जानकारी द्विवेदी को हुई तो वे बोले..
प्रोफेसर गिरीश द्विवेदी— भाई, यह तो सचमुच अत्यंत दुखद समाचार है। राहुल का जो हश्र हुआ, भगवान किसी का भी ऐसा हश्र नहीं करे और ईश्वर उसकी दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें। पर आप स्वयं ही सोचो राहुल ने अपनी जिंदगी किस तरह निकाली। सबकुछ होते हुए भी सबकुछ गंवा दिया। गंवाया तो अमिताभ ने भी था पर अपनी सकारात्मक सोच और दृढ़ निश्चय के बल पर अपने आप को बुलंद कर लिया और दीदी तथा माता—पिता को गंवाने के बावजूद जिंदगी की गाड़ी को सही ट्रैक पर चलाता रहा। गम दूर करने के लिए ना ही कोई बुरी आदतों का सहारा लिया और ना ही कोई बुरी आदत पालीं। फिर श्वेता ने उसे भरपूर प्यार और सहयोग देकर एक नई कहानी ही लिख दी।
अमिताभ भर्राये स्वर में बोला — हां गमों से भरी जिंदगी के इस सफर में श्वेता मेरी सच्ची हमसफर साबित हुई। उसने राहुल से बिछड़ने के बावजूद मुझे पूरी तरह अपनाया। मुश्किल दिनों में मेरा साथ दिया और मेरी हिम्मत बढ़ाई।
द्विवेदी बोले— यही होना चाहिए! हमें गमों के बीच से रास्ता निकालना चाहिए तभी जिंदगी सही राह पर चल सकती है। रश्मिका का साथ गंवाने के बाद यदि राहुल अपने—आप को संभालकर अपनी लाइफ पाजिटिव ढंग से बिताने का निश्चय कर लेता तो आज तस्वीर कुछ और होती। काश! वह बुरी संगति समय रहते छोड़ देता! मुझे जानकर बेहद अफसोस हुआ कि गमजदा होकर उसने अपनी जिंदगी को बुरी आदतों के हवाले कर दिया। दौलत गंवाई, मां—बाप को गंवाया और समाज के प्रति अपनी वैभवशाली जिंदगी से जो कुछ भी कर सकता था, उसे करने का मौका गंवा दिया। अरे! आप तो यह सोचिए कि राहुल की जिंदगी की ज्योति भले ही बुझ गई हो पर वह जाते—जाते औरों के जीवन को रोशन करने का सबक दे गया है। वह सबक यह है कि निगेटिव सोच और गम के बहाने लेकर अपनी जिंदगी को अय्याशियों या बुरी आदतों में बर्बाद मत करो। सच कहा जाए तो हमारा शरीर अनमोल है। पुराणों में कहा गया है कि 84 लाख योनियों में भटकने के बाद कोई आत्मा मानव का रूप ले पाती है। जब इतनी मुश्किलों से हम अपना शरीर पाते हैं तो इसे नशाखोरी, बुरी आदतों आदि से छलनी करके गंवाना कहां तक उचित है। यदि इंसान इस देह का सदुपयोग नहीं कर पाए तो किसकी गलती है। मानव होने के नाते हमें अपने जीवन का सदुपयोग करना ही चाहिए और इसका उपयोग समाज व देशहित में करना चाहिए।
श्वेता – सर राहुल हम दोनों की ज़िंदगी में आया था अब पूरी कहानी आपको मालूम हो ही गयी है आप बताइये कि आपकी नज़रों में रियल हीरो कौन हैं।
श्वेता का सवाल सुनकर प्रोफ़ेसर द्विवेदी बोले। ..
प्रोफ़ेसर द्विवेदी – मेरी नज़र में रियल हीरो अमिताभ है जिसने पूरी शिद्दत के साथ मुसीबतों का सामना किया और तमाम परेशानियों के बीच ना तो अपना चरित्र छोड़ा और ना ही बुरी आदतों का शिकार हुआ।
प्रोफेसर गिरीश की बातें सुनकर श्वेता और अमिताभ राहुल की मौत के सदमे से उबर रहे थे और उनकी आंखों में भर आया पानी धीरे—धीरे सूखता जा रहा था।
(काल्पनिक कहानी )