अब मुकेश को जब से हेडफोन मिला वह उसे लगातार कानों पर लगाए रखता। वह उसे कानों में लगाते ही बाहर की दुनिया से बिलकुल कट जाता और मनचाहे गाने तेज वॉल्यूम में सुनता रहता। वह उस हेडफोन की साउंड और उसके फीचर्स का दीवाना हो गया था। वह जब तक उस पर दस—पंद्रह गाने नहीं सुन लेता तब तक उसको चैन ही नहीं पड़ता था। हेडफोन आने के बाद न तो उसका कॉलेज की पढ़ाई में मन लगता, और न ही कोचिंग जाने की इच्छा होती।
अपने बेटे के ऐसे रंग—ढंग देखकर देव और उनकी पत्नी बेहद चिंतित बने रहते। सुहासिनी कई बार जरूरत पड़ने पर या खाना खाने के लिए मुकेश को आवाजें लगातीं पर हेडफोन पर बज रहे गानों की धम—धम में उसे कुछ सुनाई नहीं देता। देव साहब भी मुकेश को रोज इस बात के लिए डांट लगाते कि वह हेडफोन का ऐसा दीवाना क्यों बन रहा है? बार—बार की चीख—पुकार में कई बार तो उनका पारा इतना हाई हो जाता कि उनका मन करता कि वे हेडफोन मुकेश के सिर से हटाकर उसे दो—चार चपत लगा दें पर वे यह सोचकर अपने क्रोध में काबू कर लेते कि बच्चे का एक दिन बाद बर्थ डे आने वाला है। क्यों उसे मारपीटकर उसकी खुशी छीनी जाए।
अगले दिन मुकेश का बर्थ डे था। वह सुबह से ही नई—नई ड्रेस पहनकर हेडफोन पर बस बर्थ डे सांग बजाते हुए झूम रहा था। उस दिन तो उसके कानों से हेडफोन उतरा ही नहीं। यहां तक कि शाम को होटल नीलकमल में होने वाली पार्टी के दौरान भी वह हेडफोन कानों में लगाए रहा। उसने न मेहमानों को ठीक से अटेंड किया और न ही पार्टी को एंजॉय कर सका। देव और सुहासिनी भी मुकेश के ये रंग—ढंग देखकर मन मसोसकर रह गए। वे बस गुस्से से भरी निगाहों से उसे घूरते रहे पर मुकेश को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। वह जानता था कि वह इकलौता है, और आज उसका बर्थ डे है तो मम्मी—पापा उससे कुछ भी नहीं कहेंगे।
पार्टी रात 11 बजे तक चली। मेहमानों आदि को विदा कर देव साहब अपनी फैमिली को लेकर वापस घर आ गए। देव साहब और सुहासिनी दोनों बेहद गुस्से में थे उन्होंने मुकेश से पूरे रास्ते में जरा भी बात नहीं की। घर पहुंचकर ये तीनों अपने—अपने कमरों में सोने के लिए चले गए।
वह रात देव साहब के लिए बैचेनी भरी रात थी। वह सोच रहे थे कि यह मुकेश को क्या हो गया है? एक अच्छा और मेहनती लड़का कैसे हेडफोन के चक्कर में बर्बाद हो रहा है। जाने आगे क्या होगा? यही सब सोचते—सोचते उनकी कब आंख लग गई उन्हें पता ही नहीं चला।
आंख लगने के साथ ही आंखों की पलकों के पर्दे पर मन के प्रोजेक्टर से बुरे—बुरे दृश्य दिखने लगे। उन्हें सपना दिखा कि मुकेश कानों में हेडफोन लगाए कोचिंग जा रहा है। घर और कोचिंग के रास्ते वाली क्रासिंग पर ट्रेन आने वाली है और मुकेश इसकी परवाह किए बगैर आगे बढ़ता जा रहा है। ट्रेन के आने का सिग्नल हो चुका है और मुकेश क्रासिंग के नीचे से निकलकर पटरियों के पास आ गया है। इसी बीच तेजी से हार्न बजाती हुई ट्रेन आ रही है और मुकेश को उस हार्न की आवाज नहीं सुनाई दे रही है। वह गाने सुनते हुए और अपना बैग टांगे हुए पटरी पर कदम रख देता है और इंजन के आगे लगी लोहे की जाली से बस टकराने वाला है। वह ट्रेन किसी यमदूत सी मानो मुकेश की जान लेने के लिए, उसके परखचे उड़ाने के लिए बस उस पर चढ़ने ही वाली है।
क्रमशः (काल्पनिक कहानी )