आखिरी चैप्टर
इतना बुरा सपना देखकर देव साहब की मारे घबराहट के आंख खुल गई। वे पसीने से तरबतर हो उठे और पास रखे नाइट लैम्प को जलाकर आवाज लगाने लगे — सुहासिनी! मुकेश!! कोई है, अरे क्या कोई मेरी आवाज सुन रहा है? मेरा बेटा सही—सलामत तो है? उनकी चीख—पुकार सुनकर सुहासिनी बदहवास सी हालत में देव साहब के कमरे मे भागी—भागी आई।
सुहासिनी — क्या हुआ, मुकेश के पापा आप ठीक तो हैं? इसके बाद उसने देव साहब को घबराहट कम करने वाली दवाई दी और एक गिलास पानी पीने को दिया। घबराए हुए देव ने जैसे—तैसे पानी अपने हलक के नीचे उतारा।
जब वे थोड़े नार्मल हुए तो उन्होंने सुहासिनी को अपने बुरे सपने के बारे में बताया। फिर वे दोनों जल्दी से भागकर मुकेश के कमरे में पहुंचे।
उन्होंने देखा कि मुकेश अब भी कानों में हेडफोन लगाए सो रहा है। यह देखकर उनकी जान में जान आई।
देव साहब ने मुकेश के कानों से हेडफोन निकालने की कोशिश की। उनके द्वारा की जा रही खींचतान से मुकेश भी घबराकर जाग गया और उसने आंखें मलते हुए सवाल दागा ।
मुकेश— क्या हुआ पापा?
देव साहब ने जल्दी—जल्दी उसे अपने भयानक सपने के बारे में बताया। पर मुकेश को कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ा और वह बोला ।
मुकेश — पापा जब से यह हेडफोन आया है तब से आप दोनों मेरे पीछे पड़े हो। मैं कुछ भी हो जाए अपना हेडफोन अपने पास ही रखूंगा।
यह सुनकर देव साहब तैश में आ गए और उन्होंने मुकेश के पीछे खड़े होकर हेडफोन खींचा। मुकेश भी हेडफोन अपनी तरफ खींचने लगा। इस खींचतान में हेडफोन एक ईयर पीस किसी कच्चे घड़े की तरह टूट गया। आखिर मेड इन चाइना हेडफोन था — बाहरी चमक—दमक, लुभावने फीचर्स से भरपूर पर लिफाफिया माल से बना हुआ। अपने हेडफोन का यह हश्र देखकर मुकेश चिल्लाने लगा। वह बेहद नाराज होकर रोने लगा। अपने बेटे की आंखों में आंसू देखकर देव साहब कुछ पिघले। वे भर्राये गले से बोले ।
देव साहब —बेटा! यह हेडफोन तो बेहद खराब क्वालिटी का निकला। वह तो अपन दूसरा ले लेंगे। पर इसके कारण तुम्हारी बेशकीमती जिंदगी दांव पर लग जाए यह मैं हरगिज नहीं चाहूंगा। जिंदगी ऐसी चीज है जो दोबारा नहीं मिलती। फिर तुम तो हमारी आंखों का तारा हो,हम तुम्हें दुखी नहीं देखना चाहते।
सुहासिनी — हां बेटा, यह भी सोचे कि अपने इकलौते बेटे को दुखी देखकर हमारे दिलों पर क्या गुजरती है तुम टीनएजर हो। तुम्हें तो अभी जिंदगी का बहुत लंबा समय काटना है। हमारी तमाम खुशियों और आरजुओं के तुम्हीं सच्चे प्रतीक हो। बेटा पापा की बात मान लो। वे तुम्हें दूसरा हेडफोन दिला देंगे पर इससे पहले तुम्हें प्रामिस करना होगा कि नया हेडफोन आ जाने के बाद उसका सीमित इस्तेमाल करोगे। इतना बेजा इस्तेमाल नहीं करोगे कि जिंदगी ही दांव पर लग जाए। अपनी मां के द्वारा सुकून के साथ कहे इन शब्दों ने मुकेश पर मानो जादू —सा कर दिया। और उसका मन कुछ हलका होने लगा।
जब थोड़ी देर बाद नए हेडफोन के बारे में सोचकर उसे अच्छा लगने लगा तो वह कुछ झिझक से साथ बोला— ठीक है! मेरे प्यारे मम्मी—पापा। मै आपकी बात पर सहमत हूं। जो कुछ हुआ उसके लिए मुझे माफ करना।
अपने बेटे के ऐसी बातें सुनकर देव साहब और सुहासिनी के चेहरे पर मुस्कान तैर गई और उन्होंने उसे भाव—विह्वल होकर गले लगा लिया।
(काल्पनिक कहानी )