पल्लवी त्रिपाठी, दुर्ग
जाने अनजाने चेहरे
भीड़ में घुम हो जाते है
ये जाने अनजाने चेहरे
अकेले में याद आते है
ये जाने अनजाने चेहरे
उदास मन हो या
मौका खुशी का
आंखों में नाचते है
ये जाने अनजाने चेहरे
जिंदगी होगी ना जाने कैसी?
बिना इन जाने अनजाने चेहरों के
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इकरार: हाल-ए-बयां
आदत सी है अब तो
शब्दों को जोड़कर
तोड़ मरोड़कर, हेर फेर कर
एक ढांचे में संजोकर
कभी पहेली तो कभी
सवाल का हल कर
खेल कर, खिलवाड़ बन कर
उस ऊपरवाले से
इस नीचेवाले को मेल कर
बात कहने की
सुनी अनसुनी
करवटों की तरह
बदलती, रंग बिखेरती
आदतों में शुमार
कुछ कही अनकही
एहसासों, हसरतों
की कहानी जो
खुदको खुदी से बयां करती है
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कोई तो हो
कोई तो हो जिसके
लिए हम भी कविता रचे
कोई तो हो जिसपर
हमारी नजर टिके
कोई काव्य शक्ति
कोई काव्य प्रतिभा
जो उंगलियों से
स्याही समान बहकर
पन्नों में उकेर ले
या चित्रफलक में
बन जाए एक चित्रकारी
कोई तो हो
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