रचनाकार : उत्तम कुमार तिवारी ” उत्तम ” , लखनऊ
चलो जलाएं दीप प्यार के
चलो जलाएं दीप प्यार के
मानव, विद्या और समृद्धि के
अंतिम द्वेष पाखंड के अंधियारे को
दूर करे दीप जला के..
आस्था के अंधकार को
दूर करे जातिवाद
प्यार का दीया जला कर
दूर करे कुत्सित विचार को..
रावण के पुतले को जला दिया
न जला सके मन के रावण को
आओ मिल का ऐसी ज्योति जला दे
जिससे अग्नि लगे हरण राक्षस रावण को।।
सर्वेन भवन्तुः सुखिनः का
ऐसा दीप जला दे स्ट्रीट स्ट्रीट
महोख चीख़ मानवीय और शिक्षा की
मेरे देश की सुन्दर बगिया की काली-काली।।
दीप जलाये वीरो की गाथा की
रहे देश सुरक्षित हर घड़ी
उनके नाम की लड़ी बन कर
दीप जलाये गली गली ।।
राम कृष्ण की धरती आराध्य
सुर तुलसी की रचना से भरी हुई
मस्जिद का दरवाजा खटखटाया
करे आरती भारत की।।
गुरु गोविंद सिंह की वाणी सुनिए
देश की रक्षा का प्रश्न ले
मिट जाये सब ब्लैकआउट
ऐसा शिक्षा का दीप जला दे।।
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पागल चित्रकार
मैने तस्वीर बनाया था
देखा रूठ के चली गई
किन रंगो से भरा था उसको
जो आकर देखा औ चली गई ।।
कानो मे कुण्डल पहनाया
केशो की बेनी गुही थी मैने
अधरों पर लाली का रग देकर
फूल पाखुड़ी कर दी थी मैने ।।
हाथों मे चूड़ी कामदार
कंगन भी नग से जड़े हुए
कटि बनाई सुराही सी
नाभी कर दी गहरी मैने ।।
पैरो मे पायल पहनाकर
पाँवो मे रंग लगाया था ।।
बस , एक जगह मै चूक गया
माँग नही भर पाया था ।।
इसीलिये वो रूठी थी
बिन बोले वो चली गई
मै भी कितना पागल चित्रकार
जो माँग नही भर पाया था ।।
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ध्रुव तारा
बच्चो बच्चो देखो तारे
नीले पीले न्यारे तारे
दूर गगन मे प्यारे तारे
कितने सुन्दर लगते तारे
उनके बीच मे है ध्रुव तारा
कितना सुन्दर प्यारा तारा
माँ ने उसको उपदेश दिया था
तब उसने श्री विष्णु पद गहा था ।।
पा कर वर वो ध्रुव तारा बन बैठा
जा कर वो आसमान पर बैठा
सबसे सुन्दर और निराला
जग का सबसे सुन्दर तारा ।