रचनाकार : सुशीला तिवारी पश्चिम गांव, रायबरेली
जय वीणा वादिनी
माँ सरस्वती, हम आये शरण तेरी,
स्वर सरस का दान मुझे दे देना ।
गाकर वन्दना मां करें तुम्हारी हम ,
बस इतनी सी कृपा मुझे दे देना ।
गढ़ कर मन के शब्द भाव को
सुख – दुख में रख सम भाव को,
आशा का दीप जला मुझे दे देना ।
बस इतनी सी कृपा मुझे दे देना ।।
मातु शारदे ,हमें ज्ञान अपार दे,
शब्दो को स्वर अपना दें मइया
ऐसी झंकार भरी वीणा के तार दे ,
अज्ञान हरो मां ज्ञान मुझे दे देना
बस इतनी सी कृपा मुझे दे देना ।
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जय माँ सरस्वती
श्वेत वस्त्र धारणी , जय मातु हंस वाहिनी,
सरगम के सात स्वर से,नव चेतना संचार दे ।
आराधना करें मइया उपासना भी करते हैं,
वीणा के तार छेड़कर , जीवन मेरा संवार दे ।
मन शांत रहे हमेशा ,वाणी सहज सरल हो ,
अज्ञानता हटाकर मां, ज्ञान शक्ति अपार दे ।
वाणी की आप देवी, विद्या को देने वाली,
मति मंद मैं शरण अब,अवगुण मेरे सुधार दे ।
मन में न दम्भ-द्वेष हो,जीवन में न क्लेश हो,
है “सुशीला”चरण शरण में,माँ शारदे तार दे ।
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लो आ गया फिर बसंत
देखो फिर से !
मन में एक नव चेतना का संचार
चारो तरफ नवीनता का आगाज,
लहलहाते हुए पीले पीले खेत सरसो के
इनसे पहचान हमारी लग रही जैसे बरसों से ,
आम की अमराई बौर से लद गई
कोयलिया कूक सुना कर उड़ गई
मस्त बयार लहराई ,हौसले बढ़ गए भंवरों के
पक्षियों का कलरव ,शीत का अंत,
लो आ गया फिर से बसंत।
पतझड़, फिर प्रकृति का श्रृंगारित रूप
अमलतास के फूल, झूम उठी दिग्दिगंत,
लो आ गया फिर से बसंत।
उल्लास भरे मधुरिम पल अनन्त
लो आ गया फिर से बसंत!
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देख सखी!
मन में उमंग उठी कल परसों से ,
खेत अब भरे होंगे फूल सरसो से,
नही आये जिनके गये परदेश कंत ,
देख सखी!फिर लौट आया बसंत ।
धूप नम हुई,स्वछंद हुआ आकाश ,
चहुं ओर बढ़े आन्नद और उल्लास ,
अब हो गया है शीत ऋतु का अंत ,
देख सखी! फिर लौट आया बसंत ।
हरे बौर भर गई आम की अमराई ,
प्रकृति पल्लवित होकर मुस्कुराई ,
शीतल बयार बहे आसमान स्वछंद ,
देख सखी ! फिर लौट आया बसंत ।
2 Comments
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बहुत ही बेहतरीन
बहुत सुंदर