सुशीला तिवारी , पश्चिम गांव, रायबरेली
इस आधुनिक युग में भागम-भाग ज़िन्दगी से अलग हटकर थोड़ा मन बहलाव के लिए कभी-कभार सैर सपाटा जरूर करना चाहिए । इसलिए हम भी चले बाबा विश्वनाथ की अध्यात्मिक नगरी काशी ,बनारस की ओर हृदय में आस्था विस्वास के साथ!
फरवरी का महीना था ,ठंडक थोड़ा कम हो चुकी थी ,हम दोपहर से तैयारी करने लगे ,घर से खाने के लिए भोजन और बोतल में पानी और कुछ जरूरत का सामान रखकर शाम होते ही आटो से निकटतम रेलवे स्टेशन बछरावां के लिए निकल पड़े।
दश बजे रात्रि की ट्रेन थी,हम समय से थोड़ा पहले पहुंच गए
अब वहां पर इन्तजार ट्रेन का
ट्रेन अपने नियत समय पर आई,रिजर्वेशन था नही चालू टिकट था हम लोग दौड़ने लगे जनरल डिब्बे की ओर क्योंकि जनरल डिब्बे पीछे रह गए थे ,हमारी तो सांस थक कर बेकाबू हो गई ,भला हो उस पुलिस वाले का हमसे कहा यहीं पास के डिब्बे( रिजर्वेशन )में बैठ जाओ अगले स्टेशन पर जनरल में चली जाना हम लोगों के बैठते ही ट्रेन चल पडी ।
वहाँ पर कुछ भले लोगों ने बैठने के लिए जगह दे दी हम आराम से तो नही कह सकते पर तकलीफ भी न थी बैठ गए,
ट्रेन अपनी रफ्तार से आगे बढ़ रही थी ,रात्रि होने की वजह से लोग ऊंघ रहे थे अजीब सन्नाटा पसरा हुआ था,पर मेरी आंखों से नींद कोसों दूर थी ।
सुबह होते -होते आहिस्ता -आहिस्ता हम अपने गन्तव्य काशी तक पहुँच गए ।
ट्रेन से उतरकर बनारस स्टेशन की खूबसूरती देखते ही बनती थी ,शाम- ए अवध सुबह बनारस की कहावत चरितार्थ करती हुई ।
आटो करके हम लोग सबसे पहले गंगा जी के दर्शन पूजन और स्नान के लिए निकल गए ,वहाँ पहुँच कर दातून नीम की अपने घर से ले गए थे उससे दांत साफ करके स्नान पूजा-पाठ आरती किया ।
मां कहती थी गंगा स्नान के लिए जाओ तो खिचड़ी घर से जरूर ले जाना चाहिए ,वहाँ पर बैठे पंडित जी को देना चाहिए ,सो हम ले गए थे ,
दान पुण्य करके आगे बढ गये ,,,,,,,
अब सवाल ये था कि बाबा के दर्शन करने के लिए सामान कहां रक्खा जाये,एक दुकान वाले ने कहा हमारे यहां सामान रख दो सामान व मोबाइल रख दिया गया ,अब उनकी शर्त ये कि पांच सौ की पूजन सामाग्री खरीदो
तब तक हमारी नजर गेट पर पड़ी जिसमें साफ शब्दों में लिखा था ,यहाँ पर सामान निशुल्क रखने की सुविधा है,हम दुकान वाले से अपना सामान लेकर अंदर पहुँच कर सामान रखकर दर्शन हेतु लाइन में लग गए ।
आठ बजे तक आराम से दर्शन पूजन हो गया ,बाहर निकल कर मणिकर्णिका घाट पर पहुँच कर बैठ गए ,वहाँ पर जीवन की सच्चाई से सामना हुआ, थोड़ा सा मन विचलित हुआ ।
कि सारी उम्र इन्सान तेरा मेरा करता है पर अंत यही होता है इस नश्वर काया का ।
अब हम लोग चल पड़े सैर सपाटे के लिए सीघे सारनाथ की तरफ आटो से वहाँ पर बुद्ध की प्रतिमा के दर्शन किये ।
अब बहुत जोरदार भूख लग रही थी ,मैं ,मेरा छोटा बेटा शिवम्,सोनू और आर्या कुल मिलाकर चार लोग साथ थे , भोजन घर से ले गए थे ,पर कहां खाया जाये सो एक होटल में जाकर सब्जी लेकर खाना खाया ।
फिर लौट कर बी,एच,यू होते हुए मानस मंदिर पहुँच कर दर्शन करके थोड़ा विश्राम किया ,चित्त में आत्मिक शान्ति की अनुभूति हुई, वहाँ की दीवारों पर पूरी रामचरितमानस की चौपाईयां लिखी हुई थी ,थोड़ी देर के लिए दुनिया-भर से मन विरक्त
हो गया।
फिर कुछ नाश्ता पानी करके आगे चले अस्सी घाट ,नमो घाट, दशाशवमेघ घाट होते हुए संकटमोचन मंदिर पहुँच गए ।
वहाँ पर बहुत लम्बी लाइन देख कर हम लोग हांथ जोड़कर प्रसाद लेकर वापस लौटकर रेलवे-स्टेशन की तरफ निकल पड़े क्योकि शाम की वापसी की ट्रेन थी ।
ट्रेन में बैठ कर अपने घर के लिए निकल गए, रात 10 बजे हमारी यात्रा पूरी होकर अपने गन्तव्य तक पहुँच कर विराम
ले लिया ।
तो ये रहा हमारे सैर सपाटे का आनन्दमय पलों का संस्मरण !
जय हो बाबा विश्वनाथ की !
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